संसद में पेश सरकारी जवाबों के पन्ने पलटें तो बासी कढ़ी का उबाल नजर आती है NPR-NRC की बहस
साल 2003 में नागरिकता अधिनियम 1955 को संशोधित किया गया और उसमें नागरिक रजिस्टर और नागरिकता पहचान पत्र जारी करने जैसे प्रावधान जोड़े गए.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर(NRC) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर(NPR) को लेकर इन दिनों सियासी घमासान मचा है. असम के NRC अनुभवों की कहानियों और अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश से आकर बसे धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने वेले नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA के प्रावधानों के घालमेल जानकारियों से उपजी प्रतिक्रियाएं और आशंकाएं सड़कों पर उबल रही हैं. ज़ाहिर है इस आंच के मद्देनजर वो लोग भी सरकार पर सवाल उठा रहे हैं जो कभी NPR या NRC की दिशा तय करने वाले फैसलों में शामिल थे.
जाहिर है, राजनीतिक पार्टियां अक्सर अपने सियासी नफे-नुकसान के आधार पर परिभाषाएं बनाती हैं और प्रावधान गढ़ती हैं. जब कोई कानून बनाया जाता है दो पहलू अहम होते हैं, उससे होने वाला प्रावधान और उसके पीछे की राजनीतिक मंशा. मगर अक्सर सत्ता की कुर्सी पर होने या न होने से तय होता कि राजनीतिक पार्टियां जनता के लिए बनाए जा रहे प्रावधानों को किस तरह परिभाषित करती हैं. बहरहाल हम यहां राजनीति पर नहीं बल्कि प्रावधानों के नज़रिए से बात करेंगे जिसका असर हर खास और आम पर पड़ता है. अपनी बात को आगे बढ़ाने के लिए हम उस किताब का सहारा लेंगे जो इस देश में शासन व्यवस्था की रीढ़ है, यानी भारत का संविधान. भारत के संविधान के खंड 2 में नागरिकता का जिक्र किया गया है. भारत में नागरिकता संबंधी प्रावधानों का नियमन नागरिकता अधिनियम 1955 करता है. इस कानून में व्याख्या की गई है कि कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक कब हो सकता है, कैसे हो सकता है, कब तक उसकी नागरिकता रह सकती है, कैसे उसकी नागरिकता खत्म हो सकती है आदि. साथ ही हम पलटेंगे संसद में सरकार की ओर से पेश उन दस्तावेजों औऱ जानकारियों के पन्ने जो समय समय पर सरकारों ने सदन में पेश किए.
वक्त जरूरत के मुताबिक नागरिकता कानून 1955 में बदलाव किए गए. ऐसा ही एक संशोधन साल 2003 में किया गया जिसमें नागरिक रजिस्टर और नागरिकता पहचान पत्र जारी करने जैसे प्रावधान जोड़े गए.बाद में इसके अधार पर ही Citizenship (Registeration of Citizens and Issue Of National Identity Card) Rules 2003 को नागरिकता कानून 1955 का हिस्सा बनाया गया. यानि सीधे शब्दों में कहें तो सरकार भारत के सभी नागरिकों को एक विशिष्ट पहचान-पत्र देगी और साथ ही उनकी जानकारियों का एक रजिस्टर बनायेगी. साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा की समीक्षा के लिए गठित मंत्री समूह की सिफारिश पर नागरिकता कानून 1955 में संशोधन कर धारा 14ए को जोड़ा गया जो 3 दिसंबर 2004 से लागू है. इसके तहत देश के सभी नागरिकों के पंजीकरण को अनिवार्य भी बनाया गया.
नागरिकता कानून में करीब 16 साल पहले जोड़े गए प्रावधानों पर हमने जब संसद में पेश गृहमंत्रालय के जवाबों को खंगाला तो एक रोचक तस्वीर सामने आई. देश में रहने वालो निवासियों की पहचान करने और उनकी संख्या पता लगाने की कवायद बीते करीब डेढ़ दशक से चल रही है. इस प्रक्रिया में जहां कई जगह नीतियों पर भ्रम का नजारा दिखाई देता है तो साथ ही यह भी साफ होता है कि सरकारें एनडीए की रही हो या यूपीए की, देश में रहने वालों का बही-खाता बनाने की मशक्कत बदस्तूर चलती रही है. इतना ही नहीं साल 2011 में हुई जनगणना के साथ देश में पहली बार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर बनाने और प्रयोग के तौर पर कुछ नागरिकों को विशिष्ट पहचान पत्र देने की भी पहल हुई. ध्यान रहे कि नागरिकता कानून 2003-04 में हुए बदलावों के बाद देश में पहली जनगणना 2011 में ही हुई थी.
नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 14A के तहत भारत के प्रत्येक नागरिक के अनिवार्य पंजीकरण और एनआरआईसी के रखरखाव का प्रावधान है. एनआरआईसी को तैयार करने और उसके रखरखाव की प्रक्रिया को नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना ) नियम, 2003 में निर्धारित किया गया है. गृह मंत्रालय ने नागरिकता कानून 1955 का हवाला देते हुए कहा है कि एनआरआईसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीजन) एक रजिस्टर है जिसमें सभी भारतीय नागरिकों का ब्यौरा रखा जाना है.
अगस्त,10, 2011 को संसद में पूछे एक सवाल के जवाब में तत्कालीन गृहराज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा, सरकार ने देश में रहने वाले सभी लोगों की विशिष्ट जानकारियों को जमा कर एक राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR)बनाने का फैसला किया है. एनपीआर में निवासियों के डेमोग्राफिक और बायोमेट्रिक आंकड़े जमा करना निर्धारित है. इसके तहत 5 वर्ष से अधिक आयु वाले हर निवासी के परिवार से जुड़ी जानकारी, फोटोग्राफ ,10 उंगलियों के निशान, आइरिस (आंखों की पहचान) डेटा आदि जमा करना शामिल है. देश में 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी निवासियों को रेसिडेंट आईडेंटिटी( स्मार्ट) कार्ड देने की प्रक्रिया को भी इसी एनपीआर योजना का हिस्सा बनाया गया. सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों की सरकारों के साथ मशवरा कर राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में निवासियों से जुड़ी सूचनाओं के सामाजिक मूल्यांकन की प्रक्रिया भी तय की गई. यानि NPR की सूचनाओं पर आपत्तियों की समाहित करने के लिए समाज के स्तर पर उनका मूल्यांकन किया जाए. यह काम ग्राम सभाओं और वार्ड कमेटियों को दिया गया कि वो एनपीआर में निवासियों से जुड़ी जानकारियों की जांच करें. सदन में दिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के इस जवाब के मुताबिक राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर किसी भी एक वक्त पर देश में रहने वाले लोगों का ब्यौरा है. एनपीआर प्रक्रिया के तहत दिए जाने वाला निवासी प्रमाण-पत्र नागरिकता का प्रमाण नहीं होगा. नागरिकता का निर्धारण राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर बनाते समय किया जाएगा जो एनपीआर प्रक्रिया की ही कड़ी है.
फरवरी 23, 2011 को राज्यसभा में दिए एक जवाब में गृह मंत्रालय ने बताया कि बहुउद्देशीय राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने की एक पायलट परियोजना 12 राज्यों और एक संघ शासित प्रदेश में चलाई गई. इसके तहत आंध्र प्रदेश, असम,दिल्ली, गोवा, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुदुचेरी के करीब 30.96 लाख आबादी पर इस तरह की तकनीक के साथ परीक्षण किया गया. इस प्रक्रिया में 18 वर्ष से अधिक आयु के उन सभी नागरिकों को स्मार्ट कार्ड दिए गए जो अपनी नागरिकता का प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर पाए. पायलट परियोजना में 12.50 लाख स्मार्ट पहचान पत्र जारी किए गए. बहुउद्देशीय राष्ट्रीय पहचान कार्ड के इस डेटाबेस को 1 साल तक अपडेट भी किया गया और 31 मार्च 2009 को यह पायलट परियोजना बंद कर दी गई.
हालांकि इस जवाब में गृहमंत्रालय ने पायलट परियोजना से मिले अनुभवों का हवाला देते हुए संसद को यह ज़रूर बताया कि नागरिकता के निर्धारण की प्रक्रिया काफी जटिल, समय खपाऊ और पेचीदा है. इसकी बड़ी वजह यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में शादीशुदा महिलाओं और भूमिहीन कामगारों से जुड़ा दस्तावेजी आधार बहुत कमजोर है. बहुउद्देशीय राष्ट्रीय पहचान कार्ड संबंधी पायलट परियोजना से मिले अनुभवों के बाद ही सरकार ने देश में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर बनाने का फैसला किया जिसमें विशिष्ट पहचान वाले सभी निवासियों से जुड़ी जानकारियां होंगी. इस कड़ी में जनगणना 2011 से पहले अप्रैल से सितंबर 2010 के बीच एनपीआर के लिए जरूरी हाउसिंग और हाउस लिस्टिंग का डाटा जमा कर लिया गया.
मार्च 12, 2012 को सदन में दी जानकारी में गृह राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया कि जनसांख्यिकीय और बायोमेट्रिक जानकारियों वाले एनपीआर डेटाबेस में दोहराव को रोकने के लिए इसे भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को भेजा जाएगा ताकि आधार से इसका मिलान हो सके. इसके साथ ही एनपीआर पर आपत्तियों और दावे आमंत्रित करने के लिए आधार नम्बर सहित सामान्य निवासियों के स्थानीय रजिस्टर (एलआरयूआर) को स्थानीय क्षेत्रों में प्रकाशित करना भी शामिल है. एलआरयूआर को सामाजिक पड़ताल के लिए ग्राम सभा/वार्ड समिति के समक्ष रखने का प्रावधान है. साथ ही दावों और आपत्तियों से संबंधित कार्य पटवारी, तहसीलदारों और कलेक्टरों/डीएम जैसे राजस्व अधिकारी द्वारा देखे जाने की भी व्यवस्था की जाएगा जिन्हें क्रमश: स्थानीय रजिस्ट्रारों, उप जिला रजिस्ट्रारों और जिला रजिस्ट्रारों के रुप में पदनामित किया गया है. संवेदनशील क्षेत्रों में राज्य/संघ राज्यक्षेत्र की सरकारें जांच के लिए अतिरिक्त उपाय कर सकती हैं तथा वे सत्यापन की प्रक्रिया में स्थानीय पुलिस थानों या ग्राम चौकीदारों को शामिल करने के लिए स्वतंत्र हैं . निवासी पहचान (स्मार्ट) कार्डों में यह डिस्क्लेमर भी होगा कि यह कार्ड कार्डधारक को नागरिकता का आधार प्रदान नहीं करता है .
इतना ही नहीं मार्च 6, 2013 को संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में गृहमंत्रालय की ओर से बताया गया कि एनपीआर की स्कीम के अन्तर्गत देश के सभी सामान्य निवासियों को तटीय क्षेत्रों की तर्ज पर निवासी पहचान पत्र जारी किए जाने संबंधी एक प्रस्ताव का व्यय वित्त समिति (ई.एफ.सी.) द्वारा मूल्यांकन किया गया है तथा इसकी सिफारिश की गई है . केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 31.01.2013 को आयोजित अपनी बैठक में इस प्रस्ताव पर विचार किया है तथा इसे मंत्रियों के एक समूह (जी.ओ.एम.) के पास भेजा है . मंत्रियों के समूह का गठन किया जा चुका है .
राज्यसभा में 8 मई 2013 को एनपीआर परियोजना की प्रगति के बारे में पूछे गए सवाल पर तत्कालीन गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह का जवाब था कि, पूरे देश के लिए एनपीआर तैयार करने हेतु घर-घर जाकर गणना करने के माध्यम से जनसांख्यिकीय आंकड़ों के संग्रहण का कार्य पहले ही पूरा किया जा चुका है. एनपीआर की सभी भरी हुई अनुसूचियां अर्थात लगभग 27 करोड़ पन्नों की स्कैनिंग का कार्य कर लिया गया है. इसमें 117.3 करोड़ से अधिक जनसंख्या के आंकड़ों के डिजिटाइजेशन का काम भी पूरा किया जा चुका है. इस कड़ी में 14.05 करोड़ से अधिक जनसंख्या के बायोमेट्रिक नामांकन का कार्य पूरा हो गया है. साथ ही 9.73 करोड़ व्यक्तियों के बायोमेट्रिक आंकड़े भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण को भेजे जा चुके हैं तथा एनटीआर के तहत नामांकित 5.5 करोड़ व्यक्तियों के आधार संख्या अंक भी तैयार कर लिए गए हैं. तत्कालीन गृह राज्य मंत्री के अनुसार एनपीआर( राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर) देश के सभी सामान्य निवासियों का एक ऐसा रजिस्टर है जिसमें नागरिकों और अनागरिकों का ब्यौरा होगा. यह भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार करने की दिशा में पहला कदम है. इसी जवाब में मंत्रालय ने सदन को बताया कि पूरे देश में एनपीआर तैयार करने के लिए 6649.05 करोड़ रुपये की राशि के लिए स्वीकृत प्रदान की जा चुकी है और इस काम के 2014-15 में पूरा हो चुका है.
साल 2015 से बाद के जवाबों में केंद्रीय गृह मंत्रालय संसद को एनपीआर सूचनाओं को अद्यतन बनाने यानी अपडेट करने के बारे में भी बताता रहा. मतलब साफ है कि, साल 2003 से लेकर अब तक एपीआर की कवायद का एक बड़ा हिस्सा पहले ही पूरा किया जा चुका है जिसे 2015 में अपडेट भी किया गया. इसके अलावा 2003 से लेकर अब तक जहां निवासी पहचान पत्र की पायलट परियोजना में लाखों स्मार्ट कार्ड बांटे गए वहीं देश में विशिष्ट पहचान पत्र यानी आधार का ढांचा भी खड़ा किया गया. साथ ही यह सारी कवायद देश के नागरिकों का एक पहचान रजिस्टर बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है.
बहरहाल, हर दस वर्ष में होने वाली जनगणना की कड़ी में एक बार फिर भारत में महागिनती की तैयारी हो रही है. लिहाजा गृह मनंत्रालय ने जनगणना 2021 से पहले राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को अपडेट करने की प्रक्रिया भी शुरु कर दी है.
दिसंबर 4 2019 को राज्यसभा में दिए एक जवाब में गृह मंत्रालय ने बताया Citizenship( Registeration of Citizens and Issue Of National Identity Card) Rules 2003, जो कि नागरिकता कानून 1955 का हिस्सा है, के तहत राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अपडेट करने का काम एक अप्रैल 2020 से सितंबर 2020 के बीच किया जाएगा. इसमें जनगणना 2021 के लिए हाउसिंग और हाउस लिस्टिंग अभियान को भी पूरा किया जाएगा.
वहीं लोकसभा में 3 दिसंबर 2019 को दिए जवाब में गृह मंत्रालय ने बताया कि गनगणना 2021 पर जहां 8754.23 करोड़ रुपए का खर्च आएगा. वहीं राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अपडेट करने के लिए 3941.35 करोड़ रुपए का खर्च आएगा.
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