नई दिल्ली: वायुसेना के बाद अब थलसेना में भी महिलाओं का कॉम्बेट रोल में आने का रास्ता खुल गया है. थलसेना प्रमुख बिपिन रावत ने आज देहरादून में घोषणा की कि महिलाओं को जल्द ही सेना में शामिल किया जायेगा. शुरुआत में महिलाओं की भर्ती मिलेट्री पुलिस में की जायेगी. उसके बाद उन्हें सेना में दूसरे लड़ाकू पदों पर तैनात किया जायेगा.


महिलाओं को सेना में शामिल करने के पीछे देश में महिला सशक्तिकरण तो है ही, कश्मीर में सेना को अपने ऑपरेशन्स में आ रही दिक्कतें भी शामिल हैं. देहरादून में आज इंडियन मिलेट्री एकडेमी में कैडेट्स की पासिंग आउट परेड के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा कि कश्मीर में सेना जब ऑपरेशन्स करने जाती है तो वहां पर महिलाएं और बच्चे सामने आ जाते हैं. जिसके चलते (पुरुष) जवानों को उनसे सामना करने में दिक्कत आती है. यही वजह है कि अब महिलाओं को सेना में भर्ती करा जायेगा.


सेना में महिलाएं पहले से ही हैं


आपको यहां बता दें कि सेना में महिलाएं पहले से ही हैं. लेकिन ये महिलाएं अधिकारी रैंक पर हैं और साथ ही नॉन-काम्बेट पदों पर तैनात हैं. यानि ये महिला अधिकारी सेना की सिग्नल कोर, इंजीनियिरिंग विंग, एवियेशन, एयर-डिफेंस, एजुकेशन कोर में हैं. लेकिन इन विभागों में भी जवान के पद पर उनकी भर्ती नहीं की जाती है. लेकिन सेना प्रमुख के बयान के बाद अब सेना के सभी विंग्स में महिलाओं की भर्ती की जा सकेगी. साथ ही सेना की सबसे अह्म कॉम्बेट-आर्म्स जैसे इंफेंट्री, आर्मर्ड (ARMOURED) और आर्टेलेरी में भी उन्हें मौका दिया जा सकेगा.


वायुसेना में महिलाएं कॉम्बेट रोल में हैं


वायुसेना ने भी महिलाओं को कॉम्बेट रोल में शामिल कर लिया है. पहली बार वायुसेना ने तीन महिलाओं को फायटर पायलट के पद पर तैनात किया है. फ्लाईट ऑफिसर अवनी चतुर्वेदी, फ्लाईट ऑफिसर भावना कांत और फ्लाईट ऑफिसर मोहना सिंह. ये वे तीनों महिलाएं हैं जिन्होनें एक नया इतिहास रचा है. ये तीनों महिलाएं पहली बार वायुसेना के लड़ाकू बेड़े में शामिल होने के लिए तैयार हैं. यानि तीनों कमिश्नड ऑफिसर कुछ ही महीनों की ट्रैनिंग के बाद देश के सुपरसोनिक लड़ाकू विमान उड़ाने के लिए तैयार हो जायेंगी. यानि जरुरत हुई तो ये अपने फाइटर-एयरक्राफ्ट से दुश्मन पर बम, रॉकेट और मिसाइल से हमला कर कहर बरपा सकतीं हैं. लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए देश की महिलाओं को काफी मुश्किल का सामना करना पड़ा.


हालांकि भारतीय सेनाओं में महिला अधिकारियों की शुरुआत 90 के दशक में हो गई थी. लेकिन उस वक्त महिलाओं को सिर्फ शार्ट सर्विस कमिशन के लिए ही रखा जाता था. यानि की महिला अधिकारी मात्र पांच (05) साल की ही नौकरी कर पाती थी. इस शार्ट सर्विस को महिलाओं बढ़वाकर 14 साल तक नौकरी कर सकती थीं. उसके बाद उन्हें हर हालात में फौज की सेवा छोड़नी पड़ती थी. इन शार्ट सर्विस कमिश्नड महिला अधिकारियों को भी कॉम्बेट रोल यानि की सीधे युद्ध-क्षेत्र में लड़ने वाली जिम्मेदारी नहीं दी जाती थी.


नौसेना में भी महिलाओं को अभी कॉम्बेट रोल नहीं दिया गया है. यानि की वे अभी युद्धपोत और पनडुब्बियों में तैनात नहीं की जाती है. नौसेना में भी मेडिकल, कम्युनिकेशन्स, ईजुकेशन विंग ही महिलाओं के लिए खुली हुई हैं.


लेकिन हमारे देश में महिलाओं का सशस्त्र सेनाओं में इतिहास बेहद उतार-चढ़ाव भरा रहा है. 90 के दशक में जब दुनियाभर में महिलाएं लड़ाकू विमान उड़ा रहीं थी, तब हमारे देश में महिलाओं को सेनाओं में शार्ट सर्विस के लिए उपयुक्त माना जाता था. यहां तक की 2011 तक भी रक्षा मंत्रालय की हाई-पॉवर कमेटी ने महिलाओं को कॉम्बेट रोल के लिए मना कर दिया था. लेकिन 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक नया आयाम लिखा गया और महिलाओं को पहली बार लड़ाकू योद्धाओं के तौर पर पहचान मिली.


90 के दशक में जब भारत में महिलाओं को सेनाओं में जाने के रास्ते खुल, तबतक यूरोप और दूसरे पश्चिमी देशों में महिलाएं फाइटर प्लेन तक उड़ान लगीं थीं. जबकि भारतीय वायुसेना में महिलाओं को शुरुआत में ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर उड़ाने की ही इजाज़त थी. अमेरिकी महिला फाइटर पायलट तो ईराक में जाकर युद्ध के मैदान में अपनी शक्ति का लोहा तक मनवा रही थी. वर्ष 2004 में तो एक अमेरिकी महिला लड़ाकू पायलट क्रैश का शिकार हुई और उसकी ईराक में ही जंग के मैदान में मौत हो गई थी.


हमारे देश में महिला अधिकारी सेनाओं में नॉन-कॉम्बेट रोल यानि प्रशासन, शिक्षा, सिग्नल्स, इंटेलीजेंस, इंजीनियरिंग, एटीसी इत्यादि में ही काम कर सकती थीं. वायुसेना में महिला अधिकारी विमान तो उड़ा सकती थीं. लेकिन वे सिर्फ ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर ही उड़ा सकतीं थीं. उन्हें मिग, जगुआर और मिराज जैसे लड़ाकू विमान उड़ाने की इजाजत नहीं थी. वहीं पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान तक ने 2013 में महिलाओं के लिए लड़ाकू बेड़े में शामिल होने के दरवाजे खोल दिए थे.


काफी समय से उठ रही थी आवाज


हमारे देश में महिलाओं को सेनाओं में कॉम्बेट रोल देने के लिए काफी समय से आवाज उठ रही थी. लेकिन सेनाएं खुद महिलाओं के रोल को लेकर संशय में थी. यहां तक की रक्षा मंत्रालय के नेतृत्व में तीनों सेनाओं की एक हाई-लेवल कमेटी बनाई गई. लेकिन पहले 2006 में और फिर 2011 में भी इस कमेटी ने महिलाओं को लड़ाकू बेड़े में शामिल करने से साफ इंकार कर दिया. लेकिन 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से ही महिलाओं को सेनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका देने के लिए एक बार फिर जोर दिया जाने लगा. और इसकी शुरुआत हुई 2015 के गणतंत्र दिवस परेड से.


महिलाओं को सशस्त्र सेनाओं में पुरुषों के बराबर का हक मिलने की शुरुआत हुई वर्ष 2014 में जब केंद्र में मोदी सरकार काबिज हुई. प्रधानमंत्री बनने के कुछ महीने बाद ही पीएम मोदी ने तीनों सेनाओं को साफ आदेश दिया कि वर्ष 2015 की गणतंत्र दिवस परेड में महिलाएं ही सेनाओं के दस्ते की अगुवाई करेंगी. इस परेड में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा मुख्य-अतिथि के तौर पर आए थे. और फिर 2015 में वायुसेना दिवस के मौके पर तत्कालीन वायुसेना-प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरुप राहा ने राजधानी दिल्ली के करीब हिंडन एयरबेस पर इस बात की घोषणा कर दी कि महिलाओं को फाइटर-स्ट्रीम में शामिल किया जायेगा. यानि उन्हें लड़ाकू विमान उड़ाने का मौका दिया जायेगा. इसके मायने ये थे कि महिलाएं अब युद्धक्षेत्र में सीधे दुश्मन पर हमला बोलने के लिए तैयार हैं.


जब महिलाओं से लड़ी कानूनी लड़ाई


महिलाओं को सेनाओं में हक के लिए एक लंबी और कानूनी लड़ाई तक लड़नी पड़ी. वर्ष 2010 में वायुसेना की महिला ऑफिर्सस ने परमानेंट कमिशन के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. तब जाकर महिला अधिकारियों को वायुसेना में स्थायी कमिशन का मौका मिला. इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने नौसेना में भी महिलाओं को परमानेंट कमिशन का हक दिलया है. थलेसना ने महिला अधिकारियों को स्थायी कमिशन के लिए मंजूरी दे दी है लेकिन अभी तक इसपर अमल किया जाना बाकी है. लेकिन अभी भी महिलाओं को अपने हक के लिए लंबा सफर तय करना है. एक बार जरा इन आंकड़ो पर नजर डालिए.


कहां हैं कितनी महिलाएं


1. हमारे देश की थलसेना में भर्ती लोगों की संख्या है करीब 13 लाख. लेकिन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी फौज में महिलाओं की संख्या है मात्र 1450. ये महिलाएं भी मात्र ऑफिसर-लेवल पर हैं. जेसीओ और नॉन-कमिश्नड ऑफिसर यानि जवान (निचले स्तर) के स्तर पर महिलाओं की भर्ती सेना में अभी तक नहीं होती है.


2. वायुसेना की कुल संख्या है करीब डेढ़ लाख. लेकिन महिला अधिकारियों की संख्या है मात्र 1300. इन 1300 महिलाओं में से 94 पायलट हैं.


3. नौसेना में करीब 70 हजार नौसैनिक और अधिकारी हैं. लेकिन महिलाओं की संख्या है मात्र 400.


पैरामिलेट्री—


सीआरपीएफ—महिलाएं हर स्तर पर हैं. अलग से महिलाओं की बटालियन हैं.


बीएसएफ—पहली बार किसी महिला को अधिकारी (कमांडेंट) पद पर शामिल किया गया है. अभी इस महिला अधिकारी की ट्रैनिंग जारी है. हालांकि आईपीएस अधिकारी जरूर डेप्यूटेशन पर आ सकती हैं.


आईटीबीपी---आईटीबीपी पहली पैरामिलेट्री फोर्स है जिसमें महिलाओं का ना केवल जवान के पद पर नियुक्त किया है बल्कि चीन सीमा पर तैनात किया गया है.