Dhirubhai Ambani and Ratan Tata Special: दिल में जज्बा हो तो इंसान के लिए कोई भी काम मुश्किल नहीं है... ये कहावत धीरूभाई अंबानी और रतन टाटा पर बिल्कुल सटीक बैठती है. भारतीय उद्योग जगत सबसे मजबूत स्तंभों में धीरूभाई अंबानी और रतन टाटा का नाम हमेशा सबसे ऊपर ही जाएगा. दोनों ने अपनी मेहनत से शून्य से शिखर तक सफर तय किया. ये महज इत्तेफाक है कि दोनों का जन्मदिन 28 दिसंबर को हुआ. 


सॉल्ट से सॉफ्टवेयर तक टाटा की धमक है तो वहीं रिलायंस ने दूरसंचार से लेकर पेट्रोलियम तक अपनी जड़ें जमा ली है. धीरूभाई अंबानी एक जमाने में 300 रुपये की नौकरी करते थे, लेकिन जब उनका देहांत हुआ तो उनके पास 62 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा की संपत्ति थी. रतन टाटा का जन्म भले ही एक राजकुमार के रूप में हुआ हो, लेकिन उनकी परवरिश एक आम इंसान के रूप में ही हुई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने रेस्तरां में बर्तन भी धुले हैं. 


मुफलिसी में गुजरा बचपन


28 दिसंबर 1937 में पैदा हुए रतन टाटा की निजी जिंदगी काफी उथल-पुथल भरी रही. बचपन में ही उनके माता-पिता का तलाक हो गया था. इस घटना ने उनको बुरी तरह से तोड़ दिया था. वह लोगों से मिलने में डरने लगे थे. इस मोड़ पर उनके दादा ने उन्हें संभाला था. उधर धीरूभाई अंबानी का जन्म 28 दिसम्बर 1932 को हुआ था. उनके पिता एक शिक्षक थे. चार भाई-बहन के कारण उन्हें काफी कम उम्र से ही नौकरी करनी पड़ गई थी. स्कूली शिक्षा भी पूरी नहीं हो सकी थी. 


5 स्टार होटल चाय पीते थे धीरूभाई


काफी छोटी उम्र में धीरूभाई अंबानी फुटपाथ पर फल बेंचने लगे थे. जवानी में पेट्रोल पंप पर 300 रुपये महीने की नौकरी मिल गई. उनकी मेहनत और लगन को देखते हुए 2 साल बाद मालिक ने उन्हें मैनेजर बना दिया. यहां से उन्हें भी बिजनेस करने का आइडिया मिला. इतनी कम सैलरी में भी वह चाय पीने के लिए 5 स्टार होटल जाते थे. जब उनसे कारण पूछा गया तो बताया कि वहां पर बड़े-बड़े लोगों से बिजनेस का आइडिया मिलता है. 


ऐसे हुई रिलायंस की शुरुआत


1950 के दशक के शुरुआत में उन्होंने अपने चचेरे भाई चम्पकलाल दमानी के साथ मिलकर रिलायंस कमर्शियल कारपोरेशन कंपनी के तहत पॉलिएस्टर धागे और मसालों के आयात-निर्यात का व्यापार प्रारंभ किया. यहीं से जन्म हुआ रिलायंस कंपनी का. 1965 में चम्पकलाल ने साझेदारी खत्म कर दी, लेकिन धीरुभाई अंबानी ने पीछे मूड़कर नहीं देखा. उन्होंने कपड़ा/टेक्सटाइल के बाद दूरसंचार, ऊर्जा और कई सेक्टर में हाथ आजमाए और रिलायंस का दायरा बढ़ता चला गया. 


मार्केट में है टाटा का दबदबा


उधर रतन टाटा 1962 में टाटा समूह से जुड़े. उन्हें पहली नौकरी टेल्को (अब टाटा मोटर्स) के शॉप फ्लोर पर मिली. धीरे-धीरे अपनी योग्यता के दम पर वह टाटा समूह में एक-एक पायदान ऊपर चढ़ते गए. वह 1981 में टाटा इंडस्ट्रीज के चेयरमैन बनाए गए और उन्हें जेआरडी का उत्तराधिकारी चुन लिया गया. उनकी अगुवाई में टाटा समूह का रेवेन्यू 100 बिलियन डॉलर के पार निकल गया. नमक और चाय के घरेलू उत्पादों से लेकर एयर इंडिया तक उन्होंने अपनी जड़ें जमा दीं.


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