नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस जयशंकर के एक ट्वीट ने राजनीतिक दलों, सोशल मीडिया में एक नयी बहस को जन्म दे दिया है. एस जयशंकर ने एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने लिखा कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सरदार वल्लभभाई पटेल को अपनी कैबिनेट में शामिल नहीं करना चाहते थे? नेहरू ने कैबिनेट की लिस्ट से पटेल का नाम बाहर भी कर दिया था. विदेश मंत्री एक किताब के हवाले से ट्वीट किया था. इस ट्वीट लेकर एस जयशंकर और इतिहासकार रामचंद्र गुहा के बीच ट्विटर पर जंग छिड़ गई है.
एस जयशंकर के ट्वीट पर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने इस दावे को पूरी तरह गलत बताते हुए एक पत्र शेयर किया है जो नेहरू द्वारा माउंटबेटन को लिखा गया था और उसमें पटेल का नाम लिस्ट में सबसे उपर है.
दरअसल एस जयशंकर ने वीपी मेनन की जीवनी का विमोचन किया, जिसे इतिहासकार नारायणी बसु ने लिखा है. इस किताब के हवाले से विदेश मंत्री ने ट्वीट किया था. जयशंकर ने अपनी ट्वीट में लिखा कि यह किताब 'नेहरू के मेनन' और 'पटेल के मेनन' के बीच के अंतर को बताती है. विदेश मंत्री ने कहा कि इस पुस्तक के जरिए एक सच्ची ऐतिहासिक हस्ती के साथ बहुप्रतीक्षित न्याय किया गया है. उन्होंने आगे कहा कि राजनीतिक इतिहास लिखने का काम ईमानदारी के साथ किया जाना चाहिए. निश्चित तौर पर इस मुद्दे पर बहस की जरूरत है.
इसी ट्वीट में जयशंकर ने कहा कि वीपी मेनन के किताब में इस बात का जिक्र है, ''जब सरदार पटेल की मौत हुई तो उनकी स्मृतियों के मिटाने के लिए बड़े स्तर पर अभियान चलाए गए. मैं यह जानता हूं. क्योंकि, मैंने यह देखा है. मैं खुद इसका शिकार हुआ हूं.''
एस जयशंकर और रामचंद्र गुहा के बीच बहस यहीं नहीं रुकी. विदेश मंत्री को झवाब देते हुए रामचंद्र गुहा ने लिखा, ''यह एक मिथ है, प्रोफेसर श्रीनाथ राघवन अपने लेख में इस दावे को गलत ठहरा चुके हैं. इस बारे में झूठ का प्रचार करना विदेश मंत्री का काम नहीं है उन्हें यह काम भाजपा के आईटी सेल के लिए छोड़ देना चाहिए.
इसके जवाब में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने लिखा कि कुछ विदेश मंत्री किताबें भी पढ़ते हैं, अच्छा हो कि प्रोफेसर भी ऐसा काम करें. मैं आपको मेरे द्वारा कल रिलीज की गयी किताब पढ़ने की सलाह देता हूं.
कौन थे वीपी मेनन?
वीपी मेनन का पूरा नाम वाप्पला पंगुन्नि मेनन था. मेनन एक भारतीय प्रशासनिक सेवक थे, जो भारत के अन्तिम तीन वाइसरायों के संविधानिक सलाहकार और राजनीतिक सुधार आयुक्त थे. भारत के विभाजन के काल में और उसके बाद भारत के राजनीतिक एकीकरण में उनकी अहम भूमिका रही. बाद में वे स्वतंत्र पार्टी के सदस्य बन गए थे. मेनन ने ही जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल और माउन्ट बैटन को मुहम्मद अली जिन्ना के मांग के हिसाब से बंटवारे का प्रस्ताव रखा. मेनन की कुशलता से सरदार पटेल काफी प्रभावित थे. स्वतंत्रता के बाद मेनन सरदार पटेल के अधिन राज्य मंत्रालय के सचिव बनाए गए थे. पटेल के साथ मेनन का काफी गहरा संबंध था.