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क्या नेहरू ने सुभाष और उनकी बेटी की आर्थिक मदद की थी

1952 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भतीजे अमीय नाथ ने प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए पत्र लिखा, “मैं समय समय पर वियना में अपनी आंटी को कुछ छोटी-मोटी रकम भेजता हूं. अगर मैं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और आस्ट्रियन नेशनल बैंक से रकम भेजता हूं तो इसमें तमाम पेचिदगियां आती हैं. क्या कोई अलग और आसान व्यवस्था हो सकती है कि कोलकाता में फॉरेन ऑफिस में पैसा दिया जाए और वियना में भारतीय काउंसिल इसी के बराबर रकम आस्ट्रियाई करेंसी में आंटी को पहुंचा दे.”

जब-जब इतिहास की चर्चा होती है तो सर्वाधिक चर्चा सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी को लेकर होती है. उनकी जिंदगी, उन्की मृत्यु और उनकी जिंदगी के दौरान हुए कई वाकये को लेकर कई सवाल आज भी पूछे जाते हैं. अक्सर पूछा जाता रहा है कि हवाई हादसे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निधन के बाद क्या उनकी पत्नी एमिली शेंकल और बेटी अनिता की भारत सरकार ने कोई मदद की थी. उनका जीवन कैसे बीता था. चूंकि आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू बने, लिहाजा उनकी भूमिका पर सवाल उठे. कई लोग इस सवाल का जवाब ढ़ूढने की कोशिश करते हैं कि जवाहर लाल नेहरू ने सुभाषचंद्र बोस के परिवार की क्या मदद की थी.

इस सवाल और ऐसे कई सवाल जो सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी या उनके परिवार से संबधित हैं उनके जवाब संजय श्रीवास्तव द्वारा प्रकाशित उनकी नई किताब सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा मेंआपको मिलेगा. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निधन की खबर उनकी पत्नी शेंकल को रेडियो से मिली. वो 24 अगस्त 1945 में वियना में अपने घर पर थी. रेडियो पर खबर आई कि बोस ताइपेई में एयर क्रैश में मारे गए. पूरा परिवार स्तब्ध रह गया.

उनकी बेटी अनिता 04 साल की होने वाली थी. जब सुभाष जर्मनी से जापान के लिए निकले थे तब बेटी तीन महीने की भी नहीं हुई थी. दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने की ओर था. यूरोप के देशों में आमतौर पर लोग अभावों और असुरक्षा के बीच जीवन गुजार रहे थे. सुभाष की विधवा शेंकल के घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी. घर में छोटी बेटी के साथ एक बूढ़ी और बीमार मां थी.

शेंकल तब केवल 34 साल की थीं. दूसरी शादी के कई प्रस्ताव उनके सामने आए. लेकिन उनका मानना था कि सुभाष के बाद उनकी जिंदगी में अब कोई नहीं आ सकता. वो जीवन भर सुभाष की यादों और उनकी बेटी के साथ ही जीती रहीं. एमिली मजबूत चरित्र और दृढ़इच्छाशक्ति वाली महिला थीं. जिंदगी ने उन्हें संघर्ष ही दिया लेकिन वो डटी रहीं.

1952 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भतीजे अमीय नाथ ने प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए पत्र लिखा, “मैं समय समय पर वियना में अपनी आंटी को कुछ छोटी-मोटी रकम भेजता हूं. अगर मैं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और आस्ट्रियन नेशनल बैंक से रकम भेजता हूं तो इसमें तमाम पेचिदगियां आती हैं. क्या कोई अलग और आसान व्यवस्था हो सकती है कि कोलकाता में फॉरेन ऑफिस में पैसा दिया जाए और वियना में भारतीय काउंसिल इसी के बराबर रकम आस्ट्रियाई करेंसी में आंटी को पहुंचा दे.”

दो दिनों बाद नेहरू ने संबंधित अफसरों को लिखा, “कृपया फाइनेंस और विदेश मंत्रालय से पता करें कि क्या इस तरह वियना धन भेजा जा सकता है. क्या हम विशेष मामले की तरह इसे मानते हुए धन वियना भेज सकें. हमें इस तरह पैसा भेजकर उनकी मदद करनी चाहिए.”

मंत्रालय और रिजर्व बैंक ने मिलकर रास्ता निकाल लिया. उन्होंने ऐसी व्यवस्था कर दी कि अमीय कोलकाता के विदेश विभाग के आफिस में पैसा जमा करें और ये वियना में एमिली शेंकल तक पहुंच जाए. विदेश विभाग ने अमीय को बता दिया कि वो इस तरह का आसान ट्रांजिक्शन शुरू कर सकते हैं.

अमीय के अनुरोध के बाद कुछ दूसरी बातों या मदद का रास्ता भी तैयार हुआ. नेहरू ने वियना जा रहे अपनी सरकार के मंत्री आसफ अली से कहा कि वो वहां सुभाष की विधवा और बेटी से मिलें. अली मिले और बताया, “ वो एमिली से मिल आए हैं लेकिन वो सरकार की कोई मदद लेने पर राजी नहीं हैं. हालांकि मैं कोशिश करता हूं कि वो कुछ मदद स्वीकार करने पर तैयार हो जाएं. अगर अपने लिए नहीं तो बच्ची के लिए ही सही.”

हालांकि अब भी ये बात विवाद का विषय थी कि एमिली से सुभाष शादी की थी या वो उनकी कंपेनियन थीं. नेहरू का दो टूक जवाब था, जहां तक हमारी बात है तो हम उन्हें सुभाष की पत्नी मानते हैं. इसके बाद ये मामला यहीं खत्म हो जाता है. शेंकल ने आसफ अली से भविष्य में बच्ची की मदद के लिए कहा. नेहरू का जवाब था, “कोई भविष्य की गारंटी नहीं ले सकता. मैं चाहता हूं कि बच्ची की मदद के लिए उन्हें कुछ धनराशि दी जाती रहे.”

इस बारे में शेंकल को आखिरी जवाब देना था. नेहरू ने कहा, “अगर वो तैयार नहीं हों तो ये मामला वहीं खत्म हो जाएगा.” इस बीच शेंकल के सामने मदद का प्रस्ताव फिर रखा गया, “आपको 100 डॉलर बच्चे के लिए समय-समय पर वियना ऑफिस के जरिए दिए जा सकते हैं. ये धन भारत सरकार की ओर से नहीं बल्कि उस कांग्रेस पार्टी के जरिए दिये जाएंगे, जिसके आपके पति सदस्य और अध्यक्ष थे. उन्होंने खुद को हमेशा कांग्रेसी माना.”

नेहरू उस समय अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष थे, उन्होंने कांग्रेस नेताओं को लिखा, “मैं सोचता हूं कि हमें उनके लिए 100 डॉलर की व्यवस्था करनी चाहिए और क्रिसमस पर उपहार के रूप में भेजने चाहिए.”

प्रधानमंत्री के आदेश के बाद अक्टूबर 1952 में वियना में भारत के राजनयिक केवी रामस्वामी को आधिकारिक तौर पर सूचना दी गई कि इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया लंदन में आपके नाम के एक 100 डॉलर का ड्रॉफ्ट भेजा गया है. प्रधानमंत्री की इच्छा है कि इस धन को आधिकारिक अकाउंट से अलग रखा जाए और इसे मिसेज शेंकल को नकद या उपहार के रूप में दे दिया जाए.

नेहरू केवल यहीं नहीं रुके, उन्होंने वित्तीय मदद के अलावा 15 अगस्त 1952 को विदेश सचिव को पत्र लिखकर पूछा, क्या ये संभव है कि वियना में हमारे प्रतिनिधि के जरिए सुभाष चंद्र बोस की पत्नी के लिए कुछ चाय भेजी जा सके.

ये व्यवस्था 1953 में एक साल तक चलती रही. उसी समय नेहरू को पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर बीसी राय से एक मदद मिली. उन्होंने सुभाष बोस के नाम से एक ट्रस्ट बनाया, जिससे सुभाष की विधवा के जरिए उनकी बच्ची के लिए धन भेजा जा सके. वर्ष 2016 में नेताजी संबंधी जो फाइलें केंद्र सरकार ने जारी कीं, उसमें एक तथ्य और था. वो ये था कि नेहरू ने बोस के वियना स्थित परिवार यानि उनकी पत्नी और बेटी को लगातार वित्तीय मदद देने का प्रयास किया. इसके लिए सरकारी स्तर पर बाधाएं दूर की गईं. इन फाइल्स में 1952 से लेकर 1954 तक के वो पत्राचार भी हैं, जो भारत सरकार ने वियना में रह रहे बोस के परिवार से किये थे.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर जो ट्र्स्ट बनाया गया था, उसके लिए धन जुटाया गया. ट्रस्ट ने करीब दो लाख रुपए एक मोटी धन राशि बैंक में जमा कर दी. इससे दो काम होने थे, पहला काम था सुभाष की बेटी को लगातार आर्थिक मदद. दूसरा काम ये कि जब वो 21 साल की हो जाए तो उसे पूरी रकम मिल जाए.

इस संबंध में नेहरू और बंगाल के मुख्यमंत्री बीसी राय ने एक करार तैयार किया. जिसमें प्रावधान किया गया कि 21 साल की होने पर ये रकम अनिता को मिलेगी लेकिन अगर इस बीच उनकी मृत्य हो जाती है तो रकम उनकी मां शेंकल को मिल जाएगी, लेकिन अगर दोनों ही इस दुनिया में नहीं रहीं तो ये रकम आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के पास लौट जाएगी, क्योंकि इस ट्रस्ट के धन को कांग्रेस के नेताओं से ही जुटाया गया था. 1966 का एक दस्तावेज कहता है कि 1965 तक कांग्रेस और ट्रस्ट के जरिए अनिता को मदद की गई. इसके बाद उनका विवाह हो गया. एक अच्छे एकेडमिक करियर के बाद वो जर्मनी के किसी कॉलेज में इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर बन चुकी थीं.

दस्तावेज कहते हैं कि बोस के परिवार ने कुछ समय तक 200 से 300 रुपया (उस समय के लिहाज से ये बड़ी रकम थी) शेंकल को भेजी लेकिन फिर ये सहायता बंद कर दी. नेहरू ने बोस की पत्नी को भारत आने का न्योता भी दिया लेकिन उन्होंने मां की तबीयत खराब होने के कारण इस आमंत्रण को स्वीकार नहीं किया.
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