देश में शहरी और ग्रामीण उपभोक्ता खर्च में अंतर घटा, औसत मासिक खर्च बढ़ा, सामने आए आंकड़े
HCES 2023-24: घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey) के आंकड़े भारत के बदलते खर्च के पैटर्न को दिखाते हैं.
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HCES 2023-24: देश में शहरी और ग्रामीण इलाकों के लोगों के खर्च में अंतर लगातार घट रहा है. 2023-24 में यह अंतर और कम हुआ है. हर तरह के परिवारों के औसत मासिक उपभोक्ता खर्च (MPCE) में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. यह जानकारी भारत सरकार द्वारा जारी किए गए ताजा उपभोक्ता खर्च सर्वेक्षण (HCES 2023-24) में सामने आई है.
सर्वेक्षण के मुताबिक शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च का अंतर जहां साल 2011-12 में 84% था. वहीं, साल 2022-23 में घटकर 71% हो गया और अब साल 2023-24 में यह और घटकर 70% रह गया है. देश के 18 बड़े राज्यों में इस अंतर को देखा जा रहा है. जहां सबसे कम अंतर केरल में 18% है तो सबसे ज्यादा अंतर झारखंड में 83% दर्ज किया गया है.
जानें क्या कहते हैं आंकड़े
भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 2023-24 में ग्रामीण इलाकों में औसत मासिक उपभोक्ता खर्च 4,122 रुपये दर्ज किया गया और शहरी क्षेत्रों में औसत मासिक उपभोक्ता 6,996 रुपये रहा. आंकड़ों के यह भी बताया गया कि अगर सरकारी योजनाओं के तहत मुफ्त मिलने वाली चीजों का मूल्य भी जोड़ दें, तो ग्रामीण भारत में प्रति व्यक्ति खर्च 4,247 रुपये हर महीने का दर्ज हुआ है और शहरी क्षेत्रों एक व्यक्ति औसतन 7,078 रुपये हर महीने खर्च कर रहा है.
राज्यों की बात करें तो ग्रामीण क्षेत्रों में ओडिशा में खर्च में सबसे ज्यादा 14% की वृद्धि हुई, जबकि शहरी क्षेत्रों में पंजाब में सबसे अधिक 13% का इजाफा हुआ. भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र और कर्नाटक में सबसे कम वृद्धि देखी गई.
उपभोक्ता खर्च की असमानता भी घटी
सरकारी आंकड़ों में Gini coefficient का सहारा लेकर यह भी दावा किया गया कि देश में उपभोक्ता खर्च की असमानता भी घटी है. जहां ग्रामीण भारत Gini Coefficient 0.266 से घटकर 0.237 हो गया, तो शहरी भारत में 0.314 से घटकर 0.284 हो गया.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक आज ग्रामीण इलाकों में कुल खर्च का 47% हिस्सा खाने-पीने पर खर्च होता है, जबकि शहरों में यह 40% है. ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे ज्यादा खर्च प्रोसेस्ड फूड (9.84%) और दूध उत्पादों (8.44%) पर होता है, जबकि शहरी क्षेत्रों में प्रोसेस्ड फूड (11.09%) और दूध उत्पादों (7.19%) पर ज्यादा खर्च किया जाता है.
'सामान्य वर्ग का औसत मासिक खर्च सबसे ज्यादा'
आंकड़ों के मुताबिक, सामाजिक वर्गों के हिसाब से देखा जाए तो सामान्य वर्ग का औसत मासिक खर्च सबसे ज्यादा है, उसके बाद ओबीसी (OBC) का नंबर आता है. अनुसूचित जनजाति (ST) और अनुसूचित जाति (SC) वर्गों का खर्च इनसे कम है. वहीं, रोजगार के हिसाब से देखा जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे ज्यादा खर्च नियमित वेतनभोगी (गैर-कृषि) परिवारों का है, जबकि शहरी क्षेत्रों में 'अन्य' श्रेणी के परिवारों का खर्च सबसे ज्यादा है.
अगर सरकारी योजनाओं के तहत मुफ्त मिली चीजों को भी खर्च में जोड़ा जाए, तो उपभोक्ता खर्च के आंकड़ों में थोड़ा बदलाव आता है और इससे शहरी-ग्रामीण अंतर भी थोड़ा कम हो जाता है. हालांकि, सरकार द्वारा मुफ्त दी जाने वाली स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं को इस गणना में शामिल नहीं किया गया है.
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