'छुट्टियों की सैलरी लेना कितना मुश्किल होता है, और आप...', जस्टिस नागरत्ना के जवाब ने कर दी सिविल जज की बोलती बंद
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि नौकरी पर वापस लौटने के बाद बर्खास्तगी के दिनों की सैलरी की मांग नहीं कर सकते हैं क्योंकि उस दौरान जज के तौर पर काम ही नहीं किया गया.
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सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने छुट्टियों में मिलने वाली सैलरी को लेकर बड़ी बात कही है. मंगलवार (3 सितंबर, 2024) को जस्टिस नागरत्ना एक सिविल जज की याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिन्होंने बर्खास्तगी के दौरान की सैलरी और भत्ते की मांग करते हुए अर्जी दी थी. कोर्ट ने सिविल जज की अर्जी खारिज करते हुए कहा कि जिस वक्त में आप कोर्ट का काम ही नहीं कर रहे होते हैं, उस वक्त की सैलरी लेना बहुत अजीब लगता है और अंतरात्मा के लिए काफी मुश्किल होता है.
मध्य प्रदेश के सिविल जज को राज्य सरकार ने बर्खास्त कर दिया था, लेकिन हाईकोर्ट के दखल के बाद उन्हें वापस नियुक्ति मिल गई. नियुक्ति के बाद सिविल जज ने बर्खास्तगी के दिनों के वेतन और भत्ते की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी. उनकी इस अर्जी पर सुनवाई करते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, 'मुझे गर्मियों के दौरान मिलने सैलरी को लेकर बड़ा अजीब लगता है. ऐसा इसलिए क्योंकि उस दौरान हम कोर्ट का कोई काम नहीं कर रहे होते हैं.'
जस्टिस बीवी नागरत्ना के साथ जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह भी मामले पर सुनवाई कर रहे थे. इस दौरान वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 4 जजों की बर्खास्तगी खत्म करने के बावजूद 2 जज अभी भी टर्मिनेट ही हैं. इस पर सीनियर एडवोकेट आ. बसंत ने कहा कि कोर्ट को जजों की बर्खास्तगी के दौर की सैलरी और भत्ते दिलाने पर भी विचार करना चाहिए.
वकील की इस दलील पर जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि ऐसे समय की सैलरी और वेतन भत्ते जजों को नहीं दिए ज सकते हैं क्योंकि वे सर्विस में ही नहीं थे. उन्होंने कहा, 'जज जिस तरह काम करते हैं. आप जानते हैं कि बहाली के बाद उस दौर की सैलरी की उम्मीद नहीं की जा सकती है, जबकि आप सर्विस में थे ही नहीं. उन्होंने उस दौर में जज के तौर पर काम ही नहीं किया, तब की सैलरी वापस नहीं मांग सकते. हमारी अंतरात्मा इसकी परमिशन नहीं देती.'
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