(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
राज की बात: दिनेश त्रिवेदी को बीजेपी में स्वीकार्यता के लिए पहले साबित करनी होगी अपनी उपयोगिता
तृणमूल कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले दिनेश त्रिवेदी ने राज्यसभा भी छोड़ दी फिर भी उन्हें अभी तक बीजेपी में मौका नहीं मिला ना ही उनको राज्यसभा में जगह मिल पाई.
चौबे जी बनने गए थे छब्बे बनकर दुबे बनकर लौटे. ये कहावत आपने सुनी ही होगी. मगर अभी इसमें थोड़ी सी तब्दीली करते हैं. त्रिवेदी जी बनने गए थे चतुर्वेदी मगर ठनठन बनकर लौटे. जी बात हो रही है दिनेश त्रिवेदी की. तृणमूल कांग्रेस से इस्तीफ़ा दिया. राज्यसभा भी छोड़ दी. फिर भी अभी बीजेपी के झंडे तले न आ पाए और न ही उनको राज्यसभा मिल पाई.
सब मानकर चल रहे थे कि ममता पर सवाल उठाकर जिस तरह से पार्टी छोड़ी. उससे एक दिन पहले राज्यसभा में अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूरि-भूरि प्रशंसा भी की थी. तभी कुछ सियासी घटनाक्रम के संकेत मिलने लग गए थे. जब त्रिवेदी का इस्तीफा हुआ तो मान लिया गया कि वो बीजेपी के झंडे तले हैं और उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा. गुजरात से दो सीटें थीं, जिसमें से एक उनके खाते में जाना तय मानी जा रही थी.
पश्चिम बंगाल में हिंदीभाषियों के चेहरे के रूप में पेश कर रहे हैं खुद को त्रिवेदी
सारे कयास और संभावनाएं धूल-धूसरित हो गईं. गुजरात से एक दिनेश भेजे तो गए राज्यसभा, लेकिन वो त्रिवेदी नहीं प्रजापति थे. आख़िर ऐसा क्यों हुआ? अभी तक त्रिवेदी बीजेपी में भी शामिल नहीं हुए हैं. तो क्या ये सिर्फ कयास थे? राज की बात यहीं छिपी है कि दिनेश त्रिवेदी के लिए उच्च सदन का रास्ता बीजेपी की तरफ से साफ हो गया था. मगर पश्चिम बंगाल के तृणमूल से आए अन्य छत्रपों की तरफ से उठाए गए कुछ सवाल और शक्ति प्रदर्शन में त्रिवेदी का कमजोर पड़ जाना भारी पड़ गया.
राज की बात ये है कि दिनेश त्रिवेदी को राज्यसभा भेजे जाने पर तृणमूल से आए दिग्गजों को रास नहीं आ रहा था. उन्होंने इसको लेकर कुछ सवाल भी उठाए थे. उनका कहना था कि पश्चिम बंगाल में हिंदीभाषियों के चेहरे के रूप में त्रिवेदी अपने को पेश कर रहे हैं. जबकि वह गुजरात मूल के हैं. साथ ही वोटों के प्रतिशत में उनका क्या योगदान होगा? उनके साथ और कौन लोग आ रहे हैं? वैसे त्रिवेदी की ख़ासियत तृणमूल के लिए फंड रेज़र होना था. बीजेपी को इस समय फंड रेजर नहीं बल्कि वोट रेजर चाहिये.
त्रिवेदी को आते ही राज्यसभा भेजने का औचित्य क्या है?
इस कसौटी पर त्रिवेदी को खरा उतरना होगा. उनके साथ बीजेपी में आने के लिए ऐसे कोई चेहरे भी नहीं थे, जिससे इस दिशा में फर्क पड़ता. चूंकि बीजेपी में तृणमूल से आए लोगों का सवाल यह भी था कि वो अपने साथ काफी लोगों को लाए. अरसे से काम भी कर रहे हैं जमीन पर. ऐसे में त्रिवेदी को आते ही राज्यसभा भेजने का औचित्य क्या है?
राज की बात ये है कि आलाकमान ने भी इन सवालों को गंभीरता से लिया. त्रिवेदी से ही उनकी उपयोगिता सिद्ध करने को कहा गया. साथ ही थोड़ा समय बीत जाने की बात भी हुई. हालांकि, दिनेश त्रिवेदी बंगाल में बीजेपी के साथ जाएंगे, इसमें कोई भ्रम नहीं है. मगर कुछ उन्हें स्वीकार्यता बढ़ती होगी और अपनी उपयोगिता भी दिखानी होगी.