नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हुंकार के मात्र तीन दिनों के भीतर ही खबर आई है कि चीनी सेना ने गलवान घाटी में अपने कैंप पीछे हटाने शुरू कर दिए हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि लाइन लॉफ एक्चअल कंट्रोल यानी एलएसी पर डिसइंगेजमेंट-प्रक्रिया शुरू हो गई है. हालांकि, सरकार के उच्चपदस्थ सूत्रों ने साफ किया कि अभी चीनी सेना की सभी मूवमेंट्स पर 72 घंटे तक नजर रखी जाएगी, उसके बाद ही डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया को सफल माना जाएगा. हालांकि साफ कर दें कि अभी डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया शुरू हुई है यानी सेनाएं पीछे हटाना शुरू हुई हैं, डिएसक्लेशन यानी विवादित इलाकों से सैनिकों की संख्या कम करना शुरू नहीं हुआ है.
जानकारी के मुताबिक, रविवार को गलवान घाटी की पैट्रोलिंग पॉइंट (पीपी) नंबर-14 से चीनी सेना ने अपने टेंट और दूसरे स्ट्रक्चर पीछे हटाने शुरू कर दिए हैं. चीनी सेना ने अपने कैंप को करीब डेढ़ किलोमीटर पीछे हटा लिया है. सूत्रों की माने तो ये डिसइंगेजमेंट, 30 जून को भारत और चीन के कोर कमांडर स्तर की बातचीत में जो सहमति बनी थी उसके तहत हुआ है.
गलवान नदी में पानी का बहाव है बहुत तेज
लेकिन जानकारी ये भी मिल रही है कि चीनी सेना पीपी नंबर 14 से इसलिए डिसइंगेजमेंट के लिए तैयार हो गई है, क्योंकि इन दिनों गलवान नदी में पानी का बहाव बहुत तेज है. ऐसे में चीनी सेना के टेंट इत्यादि का पानी की रफ्तार में बहने का खतरा था. यही वजह है कि चीनी सेना डिसइंगेजमेंट के लिए तैयार हुई है. सूत्रों के मुताबिक, क्योंकि चीन की पीएलए सेना ने अपना कैंप डेढ़ किलोमीटर पीछे कर लिए हैं, इसलिए भारतीय सेना भी अपना तैनाती से पीछे हट गई है.
आपको बता दें कि गलवान घाटी की पीपी नंबर-14 वहीं पैट्रोलिंग प्वाइंट है जहां 15-16 जून की दरमियानी रात दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ था. इस खूनी झड़प में भारत के एक कमांडिंग ऑफिसर समेत कुल 20 सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए थे. लेकिन माना जा रहा है कि इस झड़प में चीनी सेना को भी बड़ा नुकसान हुआ था. केंद्रीय मंत्री और पूर्व थलसेनाध्यक्ष, जनरल वी के सिंह ने दावा किया था कि इस संघर्ष में चीन के कम से कम 40 सैनिक मारे गए थे और 100 से ज्यादा सैनिक घायल हुए थे. हालांकि चीन ने आधिकारिक तौर से मारे गए सैनिकों की संख्या का खुलासा नहीं किया है.
इस बीच सूत्रों ने बताया कि गलवान घाटी में कैंप पीछे ले जाने के साथ-साथ चीन की पीएलए सेना ने हॉट-स्प्रिंग और गोगरा जनरल एरिया से भी अपनी गाड़ियों को पीछे हटाना शुरू कर दिया है. हालांकि अभी तक ये साफ नहीं है कि चीन की सैन्य गाड़ियां कितना पीछे हटी हैं.
लेकिन भारत सरकार के सूत्रों ने कहा कि गलवान घाटी में चीनी सेना द्वारा टेंट पीछे ले जाना हो या सैन्य-गाड़ियों को पीछे ले जाना, इस बारे में पुख्ता तौर पर पुष्टि 'वेरीफिकेशन' के बाद ही होगी. दरअसल, 30 जून की मीटिंग में दोनों देशों के सैन्य-कमांडर्स इस बात पर राजी हो गए थे कि डिसइंगेजमेंट के 72 घंटे तक दोनों देशों की सेनाएं एक दूसरी के मूवमेंट की निगरानी करेंगी, उसके बाद ही डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया को सफल माना जाएगा.
'यह डिसइंगेजमेंट की शुरुआत मात्र है'
सेना मुख्यासय के सूत्रों ने एबीपी न्यूज से साफ किया कि यह डिसइंगेजमेंट की शुरुआत मात्र है. पूर्वी लद्दाख से सटी 856 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कई ऐसे फ्लैश-प्वाइंट हैं जहां पिछले दो महीने से भारत और चीन के सैनिकों के बीच तनातनी और टकराव की स्थिति बनी हुई है. इनमें गलवान घाटी की पीपी-14 के अलावा पीपी-15 और 17 पर भी भारी तनाव है.
गलवान घाटी के अलावा पैंगोंग-त्सो लेक से सटे फिंगर एरिया में टकराव की स्थिति बनी हुई है. चीनी सेना फिंगर 4 से 8 के बीच जमकर बैठ गई है और भारतीय सेना को पैट्रोलिंग करने नहीं दे रहा है. चीनी सेना का कहना है कि भारतीय सेना को पीपी-2 तक जाना होगा. फिलहाल भारतीय सेना फिंगर एरिया नंबर-4 पर डटी हुई है. पैट्रोलिंग विवाद को लेकर 5-6 मई को दोनों देशों के सैनिकों में फिंगर एरिया में जबरदस्त भिड़ंत हुई थी जिसमें दोनों तरफ के दर्जनों सैनिक घायल हुए थे.
इस बीच खबर ये भी आई है कि चीनी सेना ने फिंगर4-5 से अपने सैनिकों को पीछे हटा लिया है. लेकिन अभा तक इसकी जमीनी तौर पर वेरीफिकेशन नहीं हो पाई है.
फिंगर एरिया और गलवान घाटी की घटना के बाद से ही भारत और चीन दोनों ने ही एलएसी पर हैवी बिल्ट-अप किया हुआ था. यानि एलएसी के 30-40 किलोमीटर पीछे दोनों देशों की सेनाओं ने बड़ी तादाद में सैनिकों, टैंक और तोपों का जमावड़ा कर रखा है.
इसके अलावा दौलत बेग ओल्डी यानि डीबीओ के करीब डेपसांग प्लेन्स में भी पैट्रोलिंग प्वाइंट नंबर 10 से 13 तक दोनों देशों के बीच तनातनी चल रही है.
यहां पर आपको ये भी बताना जरूरी है कि शुक्रवार यानि 6 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लेह-लद्दाख का दौरा किया था. दौरे के दौरान सैनिकों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने नाम लिए बगैर चीन की विस्तारवादी नीति पर कड़ा प्रहार किया था. चीन की डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया को उसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है.
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