सीमा पर भारत और चीन के बीच विवाद जारी, अब पैंगोंग त्सो लेक में दोनों देशों के सैनिकों में ठनी
पेंगोंग-त्सो लेक झील पर्यटकों के बीच बेहद आकर्षक का केन्द्र है. थ्री-ईडियट्स फिल्म के क्लाइमेक्स को यहां फिल्माए जाने से ये और भी पॉपुलर हुई है. पेंगोंग त्सो लेक की लंबाई 135 किलोमीटर है.
नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच सीमा पर विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है. अब नया विवाद विश्व-प्रसिद्ध पैंगोंग-त्सो लेक से जुड़ा है. लद्दाख में गलवान घाटी और फिंगर एरिया में विवाद के बाद जानकारी मिल रही है कि चीनी सैनिकों ने पैंगोंग लेक में अपनी बोट-पैट्रोलिंग बढ़ा दी है. खबर ये भी है कि चीनी सेना ने अपनी बोट्स की तादाद भी यहां बढ़ा दी है. भारतीय सेना ने फिलहाल इस मामले पर कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है.
जानकारी के मुताबिक, लद्दाख की पैंगोंग-त्सो लेक में चीन ने अपनी पैट्रोंलिंग बोट्स की तादाद बढ़ी दी है. पहले यहां चीन की पीएलए सेना की तीन बोट्स रहती थीं. लेकिन अब यहां 09 बोट्स हो गई हैं. साथ ही चीनी सेना ने पैट्रोलिंग भी यहां बढ़ा दी है. इस घटना को हाल ही में फिंगर एरिया में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई झड़प से जोड़कर देखा जा रहा है. खबर ये भी है कि चीनी सैनिक भारतीय सेना की बोट्स को फिंगर एरिया-2 तक ही पैट्रोलिंग करने पर जोर दे रहे हैं.
फिंगर एरिया दरअसल, दोनों देशों के बीच विवादित इलाका है और यहां पर अक्सर दोनों देशों की पेट्रोलिंग पार्टियां आमने सामने आ जाती है. लेकिन हाल के सालों में यहां मारपीट और पत्थरबाज़ी की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं. इससे पहले तक 'बैनर-ड्रिल' के जरिए मामला सुलझाया जाता था. इसी महीने की 5 तारीख की रात को लद्दाख के पेंगोंग-सो लेक (झील) के करीब विवादित फिंगर-एरिया में भी दोनों देशों के सैनिक आपस में भिड़ गए थे. इस भिड़ंत में दोनों देशों के बड़ी तादाद में सैनिक घायल हुए थे. हालांकि बाद में स्थानीय कमांडर्स ने मामला सुलझा लिया था. इससे पहले साल 2017 में दोनों देशों के सैनिकों के बीच मारपीट और पत्थरबाजी का वीडियो तो वायरल हो गया था.
ताज़ा विवाद माना जा रहा है कि भारत के सड़क बनाने को लेकर शुरू हुआ है. भारत इस सड़क को फिंगर एरिया तक पहुंचने के लिए बना रहा है. लेकिन चीन को इस पर भी आपत्ति है. इसी को लेकर दोनों तरफ के सैनिक बड़ी तादाद में यहां तैनात हैं. पेंगोंग लेक से सटी आठ पहाड़ियां हाथ की उंगलियों के आकार की हैं, इसलिए इन पहाड़ियों को 'फिंगर एरिया' कहा जाता है. एक से लेकर चार नंबर तक की फिंगर पर भारत का अधिकार है जबकि पांच से आठ पर चीन का कब्जा है.
ये पूरा फिंगर एरिया विवादित क्षेत्र है यानि मिलेट्री भाषा में कहें तो ये दोनों देशों के बीच एक बड़ा 'फ्लैश प्वाइंट' ( Flash-Point) है. लेकिन भारतीय सैनिक उनकी इस कोशिश को हर बार नाकाम कर देते हैं. चीनी सैनिक फिंगर नंबर चार में आकर पैट्रोलिंग करने की कोशिश करना चाहते है ताकि आने वाले दिनों में वे इसे अपना बताना कोशिश करने लगें (जैसाकि चीन की फितरत रही है). चीन की पीएलए सेना के जवान पांच नंबर फिंगर पार कर भारत की फिंगर नंबर चार में घुसने की कोशिश करते है. लेकिन भारतीय सैनिक जब रोकने की कोशिश करते हैं तो नौबत मारपीट तक आ जाती है.
पेंगोंग लेक की दूरी लद्दाख के प्रशासनिक मुख्यालय, लेह से 150 किलोमीटर है. यहां तक पहुंचने के लिए दुनिया की दूसरे सबसे उंचाई वाली सड़क, चांगला पास (दर्रे) से गुजरना पड़ता है, जो करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर है. पेंगोंग लेक से गुजरने वाली एलएसी भी क्योंकि 'डिमार्केटेड' नहीं है इसलिए कई बार चीनी सैनिक अपनी बोट्स को जानबूझकर भारत की तरफ लेकर आने की कोशिश करते हैं. यही वजह है कि भारतीय सैनिक और आईटीबीपी के जवान भी लेक में अपनी बोट्स से यहां गश्त लगाते हैं. एक बार तो दोनों देशों की बोट्स के टकराने की खबर आई थी.
करीब चौदह हजार (14300) फीट की उंचाई पर पेंगोंग-त्सो लेक की लंबाई 135 किलोमीटर है. बेहद सुंदर ये झील पर्यटकों के बीच बेहद आकर्षक का केन्द्र है. थ्री-ईडि़यट्स फिल्म के क्लाईमेक्स को यहां फिल्माए जाने से ये और भी पॉपुलर हुई है. लेकिन ये खूबसूरत झील भी चीन के अडियल रवैये के चलते विवादित हो गई है. भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा यानि लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल, जिसे एलएसी भी कहा जाता है इसी विश्व-प्रसिद्ध झील के बीच से गुजरती है. 135 किलोमीटर लंबी इस झील का दो-तिहाई हिस्सा चीन के पास है और एक-तिहाई यानि 30-40 किलोमीटर भारत के पास है.
तिब्बत की राजधानी, ल्हासा यहां से करीब डेढ़ हजार किलोमीटर की दूरी पर है तो चीन की राजधानी तीन हजार छह सौ किलोमीटर. पैंगोंग लेक पर बाकयदा एक माईल-स्टोन लगा है जिसपर ये लिखा है. फिंगर एरिया और पेंगोंग लेक सहित चीन से सटे पूरे लद्दाख इलाके की सुरक्षा की जिम्मेदारी भारतीय सेना की उत्तरी कमान की 14वीं कोर की है. लेह स्थित 14वीं कोर को 'फायर एंड फ्यूरी' के नाम से भी जाना जाता है. अक्साई-चीन से सटे गलवान घाटी में भी विवाद अभी तक नहीं सुलझा है. यहां पर चीन ने भारत की नई डिफेंस-फैसेलिटी तैयार करने के खिलाफ 80 टेंट (तंबू) गाड़ लिए हैं. जवाब में भारतीय सेना ने भी इस सेक्टर में अपने सैनिकों को मोबिलाइज़ किया है.
पूर्व थलसेना प्रमुख ने कही ये बात
भारत और चीन के बीच सीमा पर हो रहे विवाद पर पूर्व थलसेना प्रमुख, लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने एबीपी न्यूज को बताया कि लद्दाख सेक्टर में झड़पें इसलिए ज्यादा होती हैं क्योंकि दोनों देशों ने अपने अपने मैप्स (नक्शें) एक्सचेंज नहीं किए हैं. इसके चलते दोनों देशों की सेनाओं का वास्तविक नियंत्रण रेखा को देखने का अपना अपना नजरिया है.
लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत भारतीय सेना के उस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे जो साल 2002 में चीन की राजधानी बीजिंग गया था. उस दौरान दोनों सेनाओं को अपने-अपने मैप एक्सचेंज करने थे. लेकिन गुरमीत सिंह बताते हैं कि दोनों देशों के लद्दाख को लेकर जो नक्शे थे वो इतने अलग थे कि दोनों देशों ने नक्शे एक्सचेंज ही नहीं किए. जबकि सेंट्रल सेक्टर यानि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड को लेकर दोनों देश मैप एक्सचेंज कर चुके हैं. उस वक्त गुरमीत सिंह सेना मुख्यालय के डीजीएमओ यानी डायरेक्टरेट ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स में डायरेक्टर के पद पर तैनात थे.
लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह के मुताबिक, पूर्वी लद्दाख में गर्मियों के दिनों में दोनों देशों के सैनिकों के बीच फेसऑफ और झड़प हो जाती हैं. लेकिन इस बार चिंता का विषय ये है कि पूरी दुनिया में कोरोना महामारी फैली हुई है और चीन दक्षिण चीन सागर से लेकर वियतनाम और डब्लूएचओ में अपनी दादागिरी दिखाने की कोशिश कर रहा है.
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