मथुरा में शाही ईदगाह और श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद मामले में 20 मार्च को सुनवाई हुई. श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष महेंद्र प्रताप सिंह की रिवीजन याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायालय ने अगली तारीख 25 मार्च मुकर्रर की है.
शाही ईदगाह का सर्वे कराए जाने को लेकर सिविल जज सीनियर डिवीजन की कोर्ट में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष महेंद्र प्रताप सिंह ने वाद दाखिल किया जिसे निचली अदालत में वाद को खारिज कर दिया था. इसके बाद जिला जज की कोर्ट में रिवीजन दाखिल कराया गया था.
जिला जज की अदालत ने केस की सुनवाई के लिए एडीजे 6th की कोर्ट में भेज दिया था. एडीजे 6th की कोर्ट में सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट अब इस मामले में फैसला सुना सकती है. मुस्लिम पक्ष की तरफ से ADJ-6 की अदालत में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की कुछ रूलिंग दाखिल की गई है.
अब तक हुई सुनवाई में क्या हुआ
8 फरवरी 2023 को दोनों पक्षों के बीच हुई बहस में ये मांग की गई थी कि शाही ईदगाह का सर्वे कोर्ट कमीशन में कराया जाना जरूरी है. श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष महेंद्र प्रताप सिंह का ये कहना था कि सारे सबूत कोर्ट को सौंपे जाने की जरूरत है.
सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष का ये आरोप था कि मुस्लिम पक्ष के लोग शाही ईदगाह का विस्तार करने के साथ वहां पर मौजूद सबूतों को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं. मस्जिद का सरकारी अमीन की मदद से सर्वे कराए जाने की मांग भी रखी गई थी. मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में इस अपील का विरोध किया था. 23 फरवरी को दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए अगली सुनवाई 15 मार्च को करने का फैसला सुनाया.15 मार्च की सुनवाई के बाद कोर्ट ने 20 मार्च को इस मामले में फैसला सुनाने की तारीख तय की थी. सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया और अगली सुनवाई 25 मार्च तय की गई है. हालांकि मुस्लिम पक्ष का तर्क है कि केस सुनने योग्य है या नहीं, इसकी सुनवाई पहले की जानी चीहिए.
श्रीकृष्ण जन्मभूमि देती है ईदगाह की जमीन का टैक्स
महेंद्र प्रताप सिंह के वकील के मुताबिक राजस्व अभिलेख खसरा खतौनी में 13.37 एकड़ जमीन जन्म-भूमि ट्रस्ट के नाम पर है. वकील का कहना है कि नगर निगम में भी मुस्लिम पक्ष का नाम दर्ज नहीं है. ईदगाह वाली जमीन का टैक्स आज भी जन्मभूमि ट्रस्ट ही देता है. महेंद्र प्रताप सिंह का ये दावा है कि हमारी जीत तय है. हार के डर से मुस्लिम पक्ष बहाने बनाकर सुनवाई को टलवाने की कोशिस कर रहा है.
अब तक 13 मुकदमे
मथुरा की अदालतों में अलग-अलग याचिकाकर्ताओं ने इस मामले पर 13 मामले दायर किए हैं. सभी याचिकाओं ने 13.77 एकड़ में बनी मस्जिद को हटाने के लिए प्रार्थना पत्र दिया है.
याचिका नंबर 1
पहली याचिका श्रीकृष्ण विराजमान मामला से जुड़ा है. इस याचिका में श्री कृष्ण विराजमान की जमीन को मुक्त कराने की मांग की गई है.
याचिका नंबर 2
दूसरी याचिका में शाही ईदगाह का सर्वे कराए जाने की मांग रखी गई है. हालिया हुई सुनवाई में हिंदू पक्ष ने मुस्लिम पक्ष पर सबूत मिटाने की कोशिश करने का आरोप लगाया.
याचिका नंबर 3
तीसरी याचिका में आगरा कोर्ट में बनी मस्जिद में प्राचीन मूर्तियों के दबे होने का दावा किया गया है. वादी महेंद्र प्रताप का दावा है कि मथुरा के मंदिर को तोड़कर वहां से मिली भगवान की प्रतिमाओं को आगरा किले में बनी मस्जिद में दबाया गया है. पुरातत्व विभाग से इसकी जांच करने की मांग की गई.
याचिका नंबर 4
इसमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि को मुक्त कराने की मांग के अलावा अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष दिनेश शर्मा ने शाही ईदगाह के सर्वे की मांग रखी है.
याचिका नंबर 5
अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष दिनेश शर्मा का दावा है कि मीना मस्जिद के पूर्वी दरवाजे पर बनी मीना मस्जिद को विस्तार दिया जा रहा है. इसके अमीन सर्वे कराने की मांग रखी गई है.
याचिका नंबर 6
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति निर्माण ट्रस्ट के अध्यक्ष आशुतोष पांडेय ने भगवान श्रीकृष्ण की जमीन को मुक्त कराने की मांग रखी है.
याचिका नबंर 7
लखनऊ के मनीष यादव खुद को भगवान श्रीकृष्ण का वंशज बताते हैं, उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर करके ये मांग रखी है कि भूमि को मुक्त कराया जाए. इसके अलावा 6 वाद और दाखिल कराए गए हैं.
क्या है मामला?
श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और अन्य निजी पक्ष उस जमीन का स्वामित्व मांग रहे हैं, जिस पर शाही ईदगाह मस्जिद बनी है. मस्जिद श्री कृष्ण जन्मभूमि स्थल के बगल में है. यहीं पर भगवान कृष्ण का जन्म माना जाता है.
याचिका के मुताबिक, 13.37 एकड़ भूमि पर मालिकाना हक है. यहीं पर हिंदुओं के भगवान श्री कृष्ण विराजमान हैं. याचिकाओं के मुताबिक हिंदू पक्ष का कहना है कि 1669-70 में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेशों का पालन करते हुए शाही ईदगाह मस्जिद बनाई गई थी. ये मस्जिद भगवान कृष्ण के जन्मस्थान के पास कटरा केशव देव मंदिर के परिसर में बनाई गई थी. हिंदू पक्ष की मांग है कि मस्जिद को शिफ्ट किया जाए.
इस मामले में याचिकाकर्ता कौन हैं?
साल 2021 में वकील रंजना अग्निहोत्री ने छह लोगों के साथ सबसे पहले सिविल जज की अदालत में इस मामले में दावा दायर किया था. तब सिविल जज ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह विचार योग्य नहीं है क्योंकि याचिकाकर्ताओं में से कोई भी मथुरा से नहीं है. कोर्ट का ये कहना था कि याचिका दायर करने वालों में से किसी की भी वैध हिस्सेदारी नहीं हो सकती है.
बता दें कि साल 2021 में ही शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने के लिए दायर मामले में अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा, माथुर चतुर्वेदी परिषद और हिंदू महासभा सहित विभिन्न संगठन पक्षकार बनना चाहते थे.
अदालत ने यह भी कहा था कि इस मामले को 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के तहत स्वीकार नहीं किया जा सकता है. इसके मुताबिक किसी भी पूजा स्थल की धार्मिक स्थिति को बनाए रखना है. इसके बाद फैसले को जिला अदालत में चुनौती दी गई. यहां पर ट्रस्ट और मंदिर प्रबंधन प्राधिकरण को मुकदमे में पक्षकार बनाया गया.
याचिकाकर्ताओं ने कहा था 'भगवान कृष्ण के भक्त के रूप में, हमें उनकी संपत्ति की बहाली की मांग करते हुए मुकदमा दायर करने का अधिकार है. कृष्ण जन्मभूमि पर गलत तरीके से मस्जिद बनाई गई थी'. याचिकाकर्ता के वकील गोपाल खंडेलवाल ने 1968 के समझौते का हवाला देते हुए कहा, "संपत्ति के बंटवारे पर कई साल पहले एक समझौता हुआ था, लेकिन वह समझौता अवैध था.
क्या है 1968 का समझौता?
दरगाह और ईदगाह जिस 13.37 एकड़ जमीन पर स्थित हैं. करीब 11 एकड़ में श्री कृष्ण जन्मस्थान मंदिर है. 2.37 एकड़ पर शाही ईदगाह मस्जिद बनी हुई है. इस पूरी जमीन के मालिकाना हक को लेकर आठ दशक से ज्यादा समय से विवाद चलता आया है. 1935 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वाराणसी के राजा के स्वामित्व अधिकारों को बरकरार रखा था. यहीं पर मंदिर के खंडहरों के बगल में मस्जिद थी ,जिसे भगवान कृष्ण का जन्मस्थान माना जाता था.
साल 1944 में उद्योगपति युगल किशोर बिड़ला ने कृष्णजन्म भूमि पर श्री कृष्णभूमि ट्रस्ट की शुरुआत की. जिसका मकसद कृष्ण जन्मभूमि पर मंदिर बनवाना था. 1958 में उद्योगपति युगल किशोर बिड़ला ने श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ का गठन किया. 1964 में संस्था पर मुस्लिम पक्ष ने दिवानी मामला दायर किया. चार साल बाद मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता हो गया.
1968 में कानून के तहत एक पंजीकृत सोसायटी श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान मंदिर प्रबंधन प्राधिकरण, और ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुआ. इसमें मंदिर प्राधिकरण ने भूमि के विवादास्पद हिस्से को ईदगाह को दे दिया था. अब 1968 में हुए इसी जमीन के समझौते को रद्द करने की मांग रखी गई है.
संस्थान और ईदगाह समिति मंदिर ट्रस्ट को भूमि का स्वामित्व देने के लिए एक समझौते पर सहमत हुए थे. जबकि मस्जिद के प्रबंधन के अधिकार ईदगाह समिति पर छोड़ दिए गए थे. इस तरह इस समझौते ने ट्रस्ट को मस्जिद पर दावा करने के कानूनी अधिकार से वंचित कर दिया.