West Bengal Less Districts: पश्चिम बंगाल (West Bengal) में देश की एक बड़ी आबादी रहती है, लेकिन यहां जिलों की संख्या बहुत ही कम है. पश्चिम बंगाल में देश के साढ़े सात फीसदी से ज्यादा लोग रहते हैं, लेकिन देश के तीन प्रतिशत से भी कम जिले पश्चिम बंगाल में हैं.
पश्चिम बंगाल की सरकार ने राज्य में 7 नए जिले बनाने की मंजूरी दी है. ममता बनर्जी सरकार की कैबिनेट ने अगस्त में 7 नए जिलों के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. फिलहाल पश्चिम बंगाल में 23 जिले हैं और 7 नए जिले बनने के बाद यहां कुल 30 जिले हो जाएंगे.
लोकसभा सीटों की तुलना में कम जिले
आपको जानकार हैरानी होगी कि बाकी बड़े राज्यों की तुलना में पश्चिम बंगाल में जिलों की संख्या बेहद ही कम है. चौंकाने वाली बात ये है कि अगर लोकसभा सीटों के अनुपात में बात की जाए तो पश्चिम बंगाल में जिलों की संख्या का अनुपात काफी कम है. आंकड़ों से समझें तो देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें उत्तर प्रदेश में है. उत्तर प्रदेश में कुल 75 जिले हैं. वहीं इसके बाद सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें महाराष्ट्र में है. यहां कुल 48 लोकसभा सीटें हैं और 36 जिले हैं.
बिहार में 40 लोकसभा सीटें और 38 जिले हैं. तमिलनाडु में 39 लोकसभा सीटें और 38 जिले हैं. मध्य प्रदेश में सिर्फ 29 लोकसभा सीटें हैं, लेकिन कुल 55 जिले हैं. आंध्र प्रदेश में भी जिलों की संख्या लोक सभा सीटों से ज्यादा है. यहां लोकसभा की 25 सीटें ही है, लेकिन जिलों की संख्या 26 है. अब बात पश्चिम बंगाल की करें तो लोक सभा सीटों के लिहाज से यह राज्य तीसरे पायदान पर है. पश्चिम बंगाल में कुल 42 लोकसभा सीटें है, लेकिन सिर्फ 23 जिले ही है.
पश्चिम बंगाल को छोड़ दें तो बड़े राज्यों में लोकसभा और जिलों के संख्या के आंकड़ों से एक ट्रेंड निकलकर सामने आता है. कमोबेश हर बड़े राज्यों में लोकसभा सीटों के आसपास ही जिलों की भी संख्या है. कुछ राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में जिलों की संख्या लोकसभा सीटों से भी ज्यादा है. मध्य प्रदेश में तो जिलों की संख्या लोकसभा सीटों के करीब दोगुनी है.
बाकी राज्यों ने तेजी से बनाए नए जिले
नवंबर 2000 में मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बनाया गया. छत्तीसगढ़ बनने से पहले मध्य प्रदेश में कुल 61 जिले थे. इनमें से 16 जिलों को अलग कर छत्तीसगढ़ बनाया गया. यानी छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद मध्य प्रदेश में 2000 में कुल 45 जिले रह गए. पिछले 22 सालों में मध्य प्रदेश में 11 नए जिले बने और अब यहां कुल 55 जिले हैं. अस्तित्व के वक्त 2000 में छत्तीसगढ़ में सिर्फ 16 जिले थे, जिनकी संख्या बढ़कर अब 33 हो गई है. स्पष्ट है कि पिछले 22 सालों में छत्तीसगढ़ में 17 नए जिलों का गठन किया गया. इस तरह से बाकी बड़े राज्यों में भी जिलों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है.
बीते 21 साल में देश में बने 187 नए जिले
पूरे देश की बात करें तो भारत में समय-समय पर जिलों की संख्या में इजाफा होता रहा है. 2001 में देश में कुल 593 जिले हुआ करते थे. 2011 में भारत में कुल 640 जिले थे और 2022 में जिलों की संख्या बढ़कर 780 हो गई. यानी पिछले 11 साल में देश में कुल 140 नए जिले बनाए गए हैं.
पश्चिम बंगाल में कम जिलों का गणित
इन सब आंकड़ों के विश्लेषण से एक बात तो साफ है कि पश्चिम बंगाल में जिलों की संख्या काफी कम है. पश्चिम बंगाल देश की चौथी बड़ी जनसंख्या वाला राज्य है. इससे ज्यादा आबादी सिर्फ उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार में है. क्षेत्रफल की बात करें तो बिहार 12वें और पश्चिम बंगाल 13वें नंबर पर है. आकार और जनसंख्या दोनों में पश्चिम बंगाल, बिहार से थोड़ा ही छोटा राज्य है, लेकिन जिलों की संख्या में जमीन-आसमान का फर्क है. सवाल उठता है कि पश्चिम बंगाल में इतने कम जिले क्यों हैं.
पश्चिम बंगाल में 75 साल में बने सिर्फ 9 जिले
1947 में जब भारत को आजादी मिली, तब ब्रिटिश भारत के तत्कालीन बंगाल प्रांत की विभाजन योजना के मुताबिक पश्चिम बंगाल राज्य का गठन किया गया. उस वक्त 14 जिलों के साथ पश्चिम बंगाल राज्य बनाया गया. यानी आजादी के बाद 75 साल में पश्चिम बंगाल में आबादी चार गुनी से भी ज्यादा हो गई, लेकिन जिलों की संख्या सिर्फ 9 ही बढ़े. बाकी बड़े राज्यों में तो आबादी बढ़ने के साथ तेजी से जिलों की संख्या में बढ़ोत्तरी देखने को मिली. आपको जानकार हैरानी होगी की 2011 में पश्चिम बंगाल की आबादी 9 करोड़ से ज्यादा थी, जिसके अब तक 11 करोड़ से ज्यादा होने का अनुमान है.
दिलचस्प बात ये है कि 24 जून 2014 तक 42 लोक सभा सीटों के बावजूद इस राज्य में सिर्फ 19 जिले थे. 2017 में यह संख्या 23 हो गई जो वर्तमान में भी यही है. यानी पिछले पांच साल में कोई नया जिला नहीं बन पाया. 7 नए जिले बनने के बाद इनकी संख्या 30 हो जाएगी. भविष्य में जो 7 नए जिले बनने वाले हैं, उनके नाम हैं बेहरामपुर, कांडी, सुंदरबन, बशीरहाट, इच्छामति, राणाघाट और विष्णुपुर.
हर जिले में औसतन 40 लाख लोग रहने को मजबूर
पश्चिम बंगाल के हर जिले में औसतन 40 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं. देश में हर जिले में औसतन आबादी के लिहाज से पश्चिम बंहाल पहले नंबर पर है. प्रशासनिक मामलों के एक्सपर्ट का मानना है कि एक जिले के लिए आदर्श आबादी करीब 20 लाख होनी चाहिए. बंगाल बिहार के बाद दूसरा सबसे घनी आबादी वाला राज्य है. जिस हिसाब से पश्चिम बंगाल की जनसंख्या है, उसे देखते हुए कम से कम 50 जिले होने चाहिए. गौर करने वाली बात है कि कम आबादी वाले पश्चिम बंगाल के कुछ पड़ोसी राज्यों में भी ज्यादा जिले हैं. असम में 35 तो ओडिशा में 30 जिले हैं.
जिला बनाने का अधिकार किसे है ?
जिला बनाने का अधिकार पूरी तरह से राज्य सरकार के पास है. आम तौर से प्रशासनिक कामकाज को आसान बनाने के लिए नए जिलों का गठन किया जाता है. राज्य सरकार या तो विधानमंडल से कानून पारित कर या कार्यकारी आदेश के जरिए नए जिले का निर्माण कर सकती है. इसमें एक दिलचस्प पहलू यह है कि राज्य सरकार को नए जिले बनाने के लिए उस राज्य की हाईकोर्ट से स्वीकृति लेनी पड़ती है.
इसकी वजह ये है कि नए जिलों में निचली अदालतों का गठन करना होता है. हालांकि एक बार राज्य सरकार नए जिले बनाने का फैसला कर लेती है तो फिर हाईकोर्ट से मंजूरी मिलने में कोई ख़ास परेशानी नहीं होती है. नए जिले के गठन में केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है. अगर किसी जिले का नाम बदलना हो तो इसमें केंद्र सरकार की भूमिका होती है. इससे जुड़े अनुरोध को केंद्र सरकार के कई विभागों के पास भेजना पड़ता है और उन विभागों से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना पड़ता है.
छोटे जिलों से लोगों को होता है फायदा
राज्य सरकारें समय-समय पर नए जिलों का गठन करते रहती हैं. माना जाता है कि प्रशासनिक इकाई जितनी छोटी होगी, प्रशासन संभालना उतना ही आसान होगा और उस जिले के लोगों तक प्रशासनिक सेवाओं को पहुंचाने में भी सहूलियत होगी. कभी-कभी स्थानीय लोगों की मांग और राजनीतिक वजहों से भी नए जिलों का गठन किया जाता है. अप्रैल 2022 में, आंध्र प्रदेश (Andra Pradesh) के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने 13 नए जिलों का गठन किया. छोटी प्रशासनिक इकाइयों से सत्ता का विकेंद्रीकरण होता है और इससे शासन को बेहतर और पारदर्शी बनाने में मदद मिलती है.
पश्चिम बंगाल में क्यों नहीं बन पाए ज्यादा जिले
जिस तरह से बाकी राज्यों ने प्रशासनिक सुविधा के लिए लगातार नए जिलों का गठन किया, उसी तर्ज पर ये काम पश्चिम बंगाल में भी होना चाहिए था. इसके बावजूद पश्चिम बंगाल में आजादी के बाद से ही नए जिलों के गठन में राज्य सरकारों ने ज्यादा रुचि नहीं ली. इसके पीछे कई कारण रहे हैं. राज्य सरकार के लिए स्थानीय लोगों की नाराजगी एक बड़ा मुद्दा है. पश्चिम बंगाल में स्थानीय लोग इसे पहचान की संकट से भी जोड़ते हैं.
पश्चिम बंगाल के इलाकों का देश की आजादी में ख़ास महत्व रहा है. यहां के लोग अपनी विरासत को लेकर भी बेहद संजीदा होते हैं. जब भी राज्य सरकार नए जिले बनाने की बात करती है तो जिन जिलों से काटकर नया जिला बनना होता है, वहां के लोग इसे अपनी विरासत और संस्कृति पर हमला मानते हैं. कई लोगों का तर्क होता है कि हर इलाके का अपना ऐतिहासिक महत्व है और नया जिला बनने से उसका महत्व कम हो जाता है.
बंगाल में कम जिलों के लिए राजनीति भी जिम्मेदार
पश्चिम बंगाल में कम जिले होने का एक बड़ा एक बड़ा फैक्टर रहा राजनीति. हर इलाके के दिग्गज नेताओं को ये डर सताता रहा है कि नए जिले बनने से उनके वोट बैंक के आधार को नुकसान पहुंचेगा. आजादी के बाद से ही पश्चिम बंगाल में नए जिले बनाने के किसी भी प्रयास को लेकर राजनीतिक विरोध भी देखने को मिला है. राजनीतिक विरोध विपक्षी पार्टियों की ओर से ज्यादा होता है. कभी कभी सत्ता पक्ष के नेता भी नए जिले के गठन के खिलाफ आवाज उठा देते हैं.
नए जिलों से सरकारी खजाने पर पड़ता है बोझ
नए जिले नहीं बनाने को लेकर पश्चिम बंगाल के मामले में सरकारी खजाने पर पड़ने वाला असर भी एक बड़ा कारण है. पश्चिम बंगाल की गिनती अमीर राज्यों मे नहीं होती है. बंगाल के ऊपर पहले से कर्ज का बड़ा बोझ है. ऐसे में नए जिले बनने से राज्य का वित्तीय बोझ बढ़ जाता है. पश्चिम बंगाल सरकार को प्रत्येक जिला बनाने के लिए कम से कम 200 करोड़ रुपये का खर्च उठाना होगा. इस कठिनाई की वजह से भी पश्चिम बंगाल में नए जिले बनने की रफ्तार बेहद धीमी रही है.
पश्चिम बंगाल में 6 महीने में बनेंगे 7 नए जिले
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अब राज्य में जिलों की संख्या को बढ़ाने को लेकर सख्त मूड में दिख रही हैं. 2011 से ममता बनर्जी यहां की मुख्यमंत्री हैं. बीते कुछ सालों में उन्होंने कई बार कहा है कि बंगाल के आकार और जनसंख्या को देखते हुए, प्रशासनिक कामकाज को आसान बनाने के लिए जिलों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है. इसी पहलू पर आगे बढ़ते हुए उनकी सरकार ने अगस्त में 7 नए जिले बनाने का फैसला किया, जिसे अगले 6 महीने में धीरे-धीरे अमलीजामा पहनाया जाएगा. नदिया से राणाघाट, मुर्शिदाबाद जिले से बेहरामपुर और जंगीपुर, बांकुरा से बिष्णुपुर और इच्छामती जिले बनाए जाएंगे. वहीं दक्षिण 24 परगना से सुंदरबन और उत्तर 24 परगना से बशीरहाट जिले बनाए जाएंगे.
जिन जिलों के इलाकों से नए जिले बनाए जाने हैं, उनमें विरोध भी शुरू हो गया है. खासकर नदिया और मुर्शिदाबाद के लोग इसे ऐतिहासक महत्व की जगह से छेड़छाड़ बता रहे हैं. कुछ जगहों पर लोग विरासत को खतरा बताकर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं और नए जिले बनाने के फैसले को वापस लेने की मांग कर रहे हैं.
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