नई दिल्ली: तीन तलाक़ पर जारी बवाल के बीच मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड की महिला विंग ने दावा किया कि दूसरे समुदायों की तुलाना में मसलमानों के यहां तलाक की दर कम है और तीन तलाक का मुद्दा ग़लत तरीके से पेश किया जा रहा है.


मुस्लिम आबादी वाले जिलों की फैमिली कोर्ट के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट का हवाला देते हुए महिला विंग की चीफ अस्मा जोहरा ने कहा कि इस्लाम में महिलाएं ज्यादा सुरक्षित हैं और यही वजह है कि मुसलमानों के यहां तलाक की दर कम है.


आपको बता दें कि ये रिपोर्ट ऐसे समय पर आई, जब तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में मई में सुनवाई होनी है.


आस्मा जोहरा का कहना है कि आरटीआई के जरिए बीते साल मई से ही 2011-2015 के बीच के आंकड़े इकट्ठा करने का काम शुरू किया गया. रिपोर्ट में मुस्लिम आबादी वाले इलाकों के 16 फैमली कोर्ट के आंकड़े इकट्टा किए गए.


उन्होंने कहा, "हमने जो आंकड़े इकट्टा किए हैं वो बताते हैं कि मुसलमानों के बीच तलाक की दर कम है. इसके साथ हम हमने विभिन्न दारूल कज़ा से भी आंकड़े इकट्ठा किए हैं और पाया कि उनमें सिर्फ 2-3 फीसदी तलाक के मामले हैं और जिनमें तलाक की मांग ज्यादातर महिलाओं की तरफ से की गई."


इस रिपोर्ट को मुस्लिम महिला रिसर्च केंद्र ने शरिया कमेटी फॉर वूमन के साथ मिलकर तैयार किया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक इन जिलों में जहां 1307 तलाक के मामले मुसलमानों के यहां पेश आए, वहीं हिंदुओं में ये संख्या 16,505 थी. ईसाइयों के यहां 4827 हैं, जबकि सिख के यहां 8 मामले मिले.


इस रिपोर्ट में 8 जिलों कैमूर (केरल) नासिक (महाराष्ट्र) करीमनगर (तेलंगाना) गुंंटुर ( आंध्र प्रदेश ) सिकंदराबाद (हैदराबाद), मल्लापुरम (केरल), एर्नाकुलम (केरल) और पलक्कड़ (केरल) को शामिल किया गया. अस्मा जोहरा का कहना है कि आंकड़ों के संकलन का काम जारी है.


उनका कहना है कि हाल के सालों में तीन तलाक के मुद्दे को जानबुझकर राजनीतिक रंग दिया गया है और इस मसले को सही दिशा में देखने की जरूत है. अस्मा जोहरा का कहना है कि देश में महिलाओं से जुड़े अनेक मुद्दे हैं, जिनमें दहेज़, घरेलू हिंसा, बाल विवाह और भूर्ण हत्या जैसे संगीत मुद्दे हैं. उनका कहना है कि इन मुद्दों को प्रमुखता से हल किए जाने की जरूरत है, जबकि सिर्फ मुसलमानों की तरफ ऊंगली उठाई जा रही है.


आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने समानता और धर्मनिरपेक्षता के आधार पर तीन तलाक का विरोध किया है, जबकि मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड तीन तलाक की सही ठहराता है. उनका कहना है कि तीन तलाक कुरान और शरियत के हिसाब से सही है.