Political Storis Of DK Shivkumar: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत हासिल होने के बाद भी मुख्यमंत्री के नाम को लेकर चार दिनों तक मंथन चलता रहा. सीएम रेस में डीके शिवकुमार का नाम शामिल होना कांग्रेस के आगे एक बड़ी चुनौती रही. डीके शिवकुमार को कांग्रेस का संकटमोचक कहा जाता है. उनकी कई रणनीतियों ने पार्टी को कामयाबी दिलाने का काम किया है. आखिर कैसे शिवकुमार पार्टी के लिए इतने महत्वपूर्ण हो गए, ये जानने के लिए उनके सियासी सफर पर नजर डालना बेहद जरूरी है.


डीके शिवकुमार की नाराजगी को दूर करने लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी समेत सोनिया गांधी तक को उन्हें मनाना पड़ा. कांग्रेस को मिली जीत के बाद से ही शिवकुमार का नाम सुर्खियों में रहा. क्यों पार्टी हाईकमान इन्हें नाराज नहीं करना चाहता था. इन सबके पीछे इनका सियासी रसूख ही है जो इन्हें इतनी अहमियत देता है. साल 1985 में दक्षिण का द्वार कहे जाने वाले कर्नाटक में विधानसभा चुनाव थे. कांग्रेस ने चार बार के विधायक और दो बार विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे एसडी देवगौड़ा के सामने 23 साल के नौजवान लड़के को खड़ा कर दिया था. चुनाव के वक्त उस समय एक एफिडेविड के जरिए अपनी उम्र बतानी होती है, जिसे स्वीकार कर लिया जाता था.


ये लड़का और कोई नहीं बल्कि डीके शिवकुमार थे. सियासत का तजुर्बा न होने के बावजूद उन्होंने देवगौड़ा को कड़ी टक्कर दी. भले ही 15 हजार वोट से चुनाव हारे हों लेकिन इसके बाद कांग्रेस के नेताओं में उनकी अच्छी पकड़ हो गई. राजनीतिक गलियारों में तभी से चर्चा होने लगी थी जब उनका नाम देवगौड़ा को टक्कर देने में शामिल हुआ था. अब यही शिवकुमार कांग्रेस के लिए कर्नाटक में मैन ऑफ द कर्नाटक बन चुके हैं. 


डीके शिवकुमार की रणनीति 


डीके शिवकुमार को कांग्रेस का पॉलिॉटिकल मैनेजर कहा जाता है. पिछले ढाई दशक के दौरान कर्नाटक ही नहीं देश के किसी भी राज्य में कांग्रेस के सामने जब भी मुश्किल आई तब शिवकुमार संकटमोचक की तरह खड़े रहे. साल 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिली थी. 104 सीट जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. बहुमत न होने के बावजूद 17 मई 2018 को येदियुरप्पा ने सबसे बड़ी पार्टी बनाई. राज्यपाल ने येदियुरप्पा को 19 मई तक बहुमत साबित करने के लिए कहा था . 


कैसे बने कांग्रेस के संकटमोचक?


2018 में सरकार बचाने के लिए बीजेपी को 9 विधायकों की जरूरत थी. इस दौरान कांग्रेस ने अपने विधायकों को एकजुट रखने की जिम्मेदारी डीके शिवकुमार को दी थी. उन्होंने विश्वास मत से पहले ही कह दिया था कि येदियुरप्पा की सरकार गिर जाएगी और यही हुआ भी. कांग्रेस का एक भी विधायक बीजेपी में शामिल नहीं हुआ. इसका पूरा श्रेय शिवकुमार को जाता है. यह पहला मौका नहीं था जब वह कांग्रेस के लिए संकटमोचक बने. गुजरात में साल 2018 में हुए राज्यसभा चुनाव के बाद भी विधायकों को एकजुट रखने का जिम्मा शिवकुमार को ही दिया गया था. 


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