Sanatana Dharma Row: द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (DMK) नेता उदयनिधि स्टालिन और ए राजा के सनातन धर्म पर दिए गए बयान को लेकर सियासत जारी है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) दोनों नेताओं के बयान को लेकर इंडिया गठबंधन पर हमलावर हो रही है. वहीं, दूसरी ओर गठबंधन में शामिल कई पार्टियों ने इन बयानों से किनारा कर लिया है. हालांकि, सनातन धर्म को लेकर डीएमके और बीजेपी दोनों पर राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं. 


बीजेपी जो इस विवाद को लेकर हमलावर हो रही है, उसे सनातन धर्म के खिलाफ बयान देने वाले डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन और ए राजा की मुखालफत करने के साथ-साथ द्रविड़ आंदोलन के जनक ईवी रामास्वामी पेरियार का समर्थन भी करना है, जिन्हें सनातन विरोधी माना जाता है. एक तरफ बीजेपी को डीएमके नेताओं के खिलाफ केस भी दर्ज करवाना है, लेकिन पेरियार की मूर्तियां तोड़े जाने का विरोध भी करना है. 


बीजेपी को सनातन धर्म के खिलाफ बयानबाजी करने वालों को सबक भी सिखाना है और इसके विरोध से ही पैदा हुए डीएमके और एआईडीएमके के साथ मिलकर सरकार भी चलानी है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर सनातन धर्म के नाम पर राजनीति कौन कर रहा है? क्या डीएमके, जिसका जन्म ही सनातन धर्म का विरोध करके हुआ था या फिर बीजेपी, जिसकी पूर्ववर्ती जनसंघ का जन्म ही सनातन धर्म के प्रति समर्पण को लेकर हुआ था. चलिए आज आपको बताते हैं कि आखिर क्या है सनातन धर्म के पक्ष और विपक्ष की राजनीति, जिसके एक सिरे पर डीएमके है तो दूसरे सिरे पर बीजेपी. 


सनातन विरोधी रही है डीएमके की विचारधारा
उदयनिधि स्टालिन और ए राजा के बयान सुनकर सनातन धर्म को मानने वालों का आहत होना स्वाभाविक है, लेकिन डीएमके के लिए सनातन का विरोध ही उनकी पार्टी की विचारधारा रही है. दरअसल, 1919 में ईवी रामास्वामी कांग्रेस में शामिल हुए थे. उन्होंने कुछ समय पहले ही दक्षिण भारत में 'आत्मसम्मान आंदोलन' का नेतृत्व किया था.


ईवी रामास्वामी का ब्राह्मण विरोध
परंपरावादी हिंदू धर्म को मानने वाले परिवार में पैदा हुए ईवी रामास्वामी को हिंदू धार्मिक ग्रंथों में कई कुरीतियां दिखीं, जिसे सुधारने के लिए वो मुखर होकर बोलने लगे. काशी में हुए एक निशुल्क खाने के पंडाल में उन्हें सिर्फ इसलिए खाना नहीं मिला कि वह ब्राह्मण नहीं थे. इसके बाद उन्होंने तय कर लिया कि अब ब्राह्मणों-गैर ब्राह्मणों के बीच की दूरी को खत्म करने के लिए सीधे तौर पर ब्राह्मण विरोध और हिंदू धर्म ग्रंथों का विरोध ही करना होगा. आत्मसम्मान आंदोलन ईवी रामास्वामी के इसी गुस्से का नतीजा था, जिसने दक्षिण भारत में ईवी रामास्वामी को पेरियार ईवी रामास्वामी बना दिया.


कांग्रेस में शामिल हुए पेरियार ईवी रामास्वामी
पेरियार ईवी रामास्वामी की इस प्रसिद्धि को तब कांग्रेस ने भी भुनाने की कोशिश की और सी राजगोपालाचारी के कहने पर पेरियार कांग्रेस में शामिल हो गए. तब तक कांग्रेस पर महात्मा गांधी का प्रभाव साफ तौर पर दिखने लगा था और पेरियार भी इससे खासे प्रभावित थे. कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्होंने केरल में शुरू हुए 'वैकोम आंदोलन' का भी नेतृत्व किया, जिसका मकसद त्रावणकोर राज्य में बने वैकोम मंदिर में उन जातियों के लोगों को भी दाखिला दिलाना था, जिन्हें समाज में अछूत समझा जाता था. तब मंदिरों की ओर जाने वाली सड़कों पर दलित समुदाय के लोगों को चलने की मनाही थी.


पेरियार ने दलितों-पीड़ितों के लिए मांगा आरक्षण
आगे चलकर उन्हें कांग्रेस में भी वही गैर-बराबरी दिखी, जिसके लिए वह संघर्ष कर रहे थे. उन्होंने दलितों-पीड़ितों के लिए अलग से आरक्षण की मांग की, जिसे कांग्रेस नेतृत्व ने खारिज कर दिया. लिहाजा पेरियार ने कांग्रेस छोड़ दी. पेरियार अपने संबोधनों में गैर-ब्राह्मणों को द्रविड़ कहते थे. उन्होंने कांग्रेस छोड़ने के बाद इन्हीं द्रविड़ों के मन में आत्म-सम्मान पैदा करने के उद्देश्य से आत्म सम्मान आंदोलन भी चलाया और एक गैर-ब्राह्मण संगठन दक्षिण भारतीय लिबरल फेडरेशन या जस्टिस पार्टी में शामिल हो गए और उसके अध्यक्ष भी बन गए. यह संगठन 1916 में बनाया गया था.


अलग देश द्रविड़नाडु की मांग
मद्रास के विक्टोरिया हॉल में 20 नवंबर, 1916 को डॉक्टर सी नतेशा मुदलियार, टीएम नायर, पी थेगराया चेट्टी और आलामेलू मानागेयी थायरामल के नेतृ्त्व में इस पार्टी का गठन हुआ था, जिसका मकसद गैर ब्राह्मणों को नेतृत्व देना था. अपने गठन के वक्त से ही ये पार्टी ब्राह्मण विरोधी, जाति विरोधी और उत्तर भारत विरोधी विचारों के लिए जानी जाती थी. इस पार्टी ने शुरुआत में अंग्रेजी शासन से सिर्फ इस बात की मांग की कि सरकारी नौकरियों में गैर-ब्राह्मणों की संख्या में इजाफा किया जाए. अपनी इन्हीं मांगों के साथ आगे बढ़ते हुए इस पार्टी ने तमिलों के लिए अलग देश द्रविड़नाडु की मांग कर दी और अपने इस काल्पनिक देश में उन्होंने तमिलनाडु के अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल के भी कुछ हिस्सों को शामिल कर लिया. 


1937 में कांग्रेस की बड़ी जीत
इसी दौरान मद्रास प्रेसिडेंसी में 1937 में हुए चुनाव में जस्टिस पार्टी चुनाव हार गई और सी राजगोपालाचारी के नेतृत्व में कांग्रेस ने वहां जीत दर्ज की. जीतने के बाद सी राजगोपालाचारी ने स्कूलों में हिंदी की पढ़ाई अनिवार्य कर दी. इसकी वजह से पेरियार और उनके साथियों ने हिंदी विरोधी आंदोलन शुरू कर दिया. अगस्त 1944 में पेरियार जस्टिस पार्टी से अलग हो गए और नई पार्टी बनाई द्रविड़ार कषगम. इस पार्टी का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था. पार्टी का इकलौता मकसद अलग देश द्रविड़नाडु था, जिसमें हर तरह की गैरबराबरी और असमानता का विरोध किया जाना था. 


द्रविड़नाडु राज्य बनाने की मांग
1947 में भारत के आजाद होने के बाद भी द्रविड़ार कषगम अलग द्रविड़नाडु राज्य बनाने की मांग उठाती रही, लेकिन फिर द्रविड़ार कडगम के एक और नेता सीएन अन्नादुरई का पेरियार से वैचारिक मतभेद हो गया. 1948 में पेरियार की दूसरी शादी के बाद तो ये मतभेद इतना बढ़ गया कि 1949 में सीएन अन्नादुरई अलग हो गए और उन्होंने एक नई पार्टी बनाई डीएमके. पेरियार अपनी सनातन विरोधी और हिंदू विरोधी बयानों के लिए देश में कुख्यात तो तमिलनाडु में ख्यात होते रहे. उनका प्रभाव यहां तक बढ़ गया कि खुद देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने के कामराज को पत्र लिखकर उन्हें अपराधी तक कह दिया था.


द्रविड़ आंदोलन की देन डीएमके और एआईएडीएमके 
आज जिन डीएमके नेताओं को लेकर सियासी घमासान मचा है. ये वही डीएमके है, जो पेरियार के सनातन और हिंदुत्व का विरोध कर अलग द्रविड़नाडु देश के लिए बनाई गई द्रविड़ार कषगम से निकली है. रही बात एआईएडीएमके की तो ये पार्टी भी डीएमके से टूटकर ही बनी है और इसकी वजह डीएमके मुखिया रहे करुणानिधि और एमजी रामचंद्रन की अदावत थी. ऐसे में डीएमके हो या फिर एआईएडीएमके दोनों ही पार्टियां द्रविड़ आंदोलन की ही देन हैं, जिसके केंद्र में पेरियार का सनातन धर्म का विरोध और हिंदू धर्म का विरोध रहा है.


बीजेपी के साथ डीएमके का गठबंधन
फिलहाल तमिलनाडु में डीएमके इंडिया गठबंधन के साथ है तो एआईएडीएमके एनडीए के साथ और चूंकि सनातन धर्म के खिलाफ हालिया बयान डीएमके नेताओं की ओर से आया है तो एआईएडीएमके के साथ साझीदारी कर रही बीजेपी के नेताओं को ये बात भले ही चुभ रही है, लेकिन पूर्व में बीजेपी का इसी डीएमके साथ गठबंधन भी रहा है.


वाजपेयी सरकार गिराने में जयललिता की अहम भूमिका
1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिनों की सरकार गिराने में एआईएडीएमके की नेता रहीं जे जयललिता की अहम भूमिका रही थी. इस गठबंधन के टूटने के बाद 1999 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वाजपेयी के नेतृत्व वाली बीजेपी ने इसी डीएमके साथ गठबंधन भी किया था, चुनाव में जीत भी दर्ज की थी और फिर वाजपेयी प्रधानमंत्री भी बने थे. 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले तक बीजेपी और डीएमके का गठबंधन चलता ही रहा था. 


ब्राह्मणों की पार्टी मानी जाती थी बीजेपी
हालांकि ये गठबंधन आसान नहीं था, क्योंकि बीजेपी की हिंदुत्व वाली छवि किसी से छिपी नहीं थी और डीएमके की हिंदू विरोध वाली छवि से कोई इनकार नहीं कर सकता था. तब बीजेपी को ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी कहा जाता था तो डीएमके ब्राह्मण विरोध की पुरजोर आवाज हुआ करती थी. बीजेपी उत्तर भारत की पार्टी थी तो डीएमके दक्षिण भारत की. तब डीएमके मुखिया करुणानिधि के सबसे खास नेता मुरोसिली मारन और वाजपेयी के सबसे खास नेता प्रमोद महाजन के बीच कुछ ऐसी बातचीत हुई कि बात बन गई और गठबंधन भी. 


1999 में चुनाव जीतने के बाद वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो उनकी कैबिनेट में मुरोसिली मारन और टीआर बालू के अलावा ए राजा को भी जगह दी गई, जिनके सनातन वाले बयान पर आज बीजेपी के तमाम नेता हंगामा काटे हुए हैं.


करुणानिधि को वोट बैंक में सेंध लगने का खतरा
हालांकि, 2002 में हुए गुजरात दंगे और उसके बाद हुए चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत से करुणानिधि को अपने वोट बैंक में सेंध लगने का खतरा महसूस हुआ और मुस्लिम-ईसाई वोटरों को अपने साथ जोड़े रखने के लिए करुणानिधि ने दिसंबर 2003 में बीजेपी से समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद भले ही बीजेपी और डीएमके के बीच चुनावी गठबंधन न हुआ हो, लेकिन साल 2028 में जब तमिलनाडु में कुछ लोगों ने पेरियार की मूर्ति खंडित कर दी थी तो तब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अभी के गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर कहा था कि एक पार्टी होने के नाते बीजेपी इस बात पर यकीन करती है कि अलग-अलग विचार और अलग-अलग विचारधाराएं इस देश में एक साथ सहअस्तित्व में रह सकती हैं. हमारे संविधान निर्माताओं ने भी हमारे देश को ऐसा ही बनाया था. भारत की विविधता और विमर्श और तर्क करने की प्रवृत्ति ही हमें मजबूत करती है.


डीएमके का विरोध कर रही है बीजेपी
अब जबकि चुनावी समीकरण बदल गए हैं तो जिन पेरियार ने ताउम्र सनानत और हिंदू धर्म का विरोध किया, जिन पेरियार ने हिंदू धर्म ग्रंथों को जलाने से कभी परहेज नहीं किया, उन्हीं पेरियार की मूर्ति खंडित होने पर उसका विरोध करने वाले और पेरियार के जन्मदिन से लेकर उनकी मृत्यु की तारीख तक पर पेरियार को समाज सुधारक और महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बताने वाले पीएम मोदी की पार्टी के नेता पेरियार और उनकी विचारधारा से उपजी डीएमके और उसके नेताओं का इस कदर विरोध करने लगे हैं कि बात केस-मुकदमे तक आ गई है और जिसका असर अब तमिलनाडु से आगे बढ़कर एनडीए बनाम इंडिया की लड़ाई में तब्दील हो गया है.


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