नई दिल्ली: सोमवार को कांग्रेस ने नागरिकता कानून के विरोध में महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर धरना दिया. जिसके पीछे का कारण बताया जा रहा है कि कांग्रेस, छात्रों और उन सभी धर्म के लोगों के साथ खड़ी है जो नागरिकता कानून के खिलाफ हैं.


राहुल गांधी के व्यवहार और भाषण में कल पहली बार राष्ट्रवाद की झलक दिखायी दी. वह राष्ट्रवाद जो कभी इंदिरा गांधी के जमाने में कांग्रेस में दिखता था. राहुल गांधी ने अपने भाषण में कहा, “मोदी जी गलतफहमी में मत रहो, ये कांग्रेस पार्टी नहीं है ये देश की आवाज है और देश की आवाज के खिलाफ आप खड़े हो. मैं आपको और आपके मित्र अमित शाह को बताना चाहता हूं ये आवाज कांग्रेस की नहीं ये आवाज भारत माता की आवाज है और यह मत भूलो अगर आप भारत माता की आवाज के सामने खड़े होंगे तो भारत माता आपको जबरदस्त जवाब देने वाली है.”


इतना ही नहीं जब राजघाट पर संविधान की प्रस्तावना पढ़ी जा रही थी तो राहुल गांधी ने मंच के पास पहुंचकर पार्टी के सीनियर नेताओं को यह कहकर सुनिश्चित किया की सभी भाषाओं में प्रस्तावना पढ़ी जानी चाहिए. किसी भी राजनीतिक कार्यक्रम में इससे पहले कभी नहीं देखा गया कि राहुल गांधी ने भारत माता जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया हो या फिर कार्यक्रम के बीच में ही अपने हाथ में तिरंगा लेकर ऐसे विरोध प्रदर्शन किया हो. सत्याग्रह के दौरान राहुल गांधी ने तिरंगा झंडा मंगवाया. साथ ही खुद भी पकड़ कर तिरंगा झंडा लहराने लगे और पार्टी के सीनियर नेताओं को भी ऐसा करने को कहा.


दरअसल, राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के सामने सबसे बड़ी मुश्किल मोदी सरकार है, जो कि राष्ट्रवाद का प्रतीक मानी जाती है. ऐसे में राहुल गांधी को अपना राजनीति करने का तरीका बदलने ही होगा क्योंकि इंदिरा गांधी अपने दौर में राष्ट्रवाद की प्रतीक मानी जाती थी. इंदिरा गांधी ने ही बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद करवाया और इंदिरा के दौर में ही संविधान में “धर्मनिरपेक्ष” शब्द को जोड़ा गया और आज धर्मनिरपेक्ष होने कारण ही कांग्रेस पर पीछले कुछ सालों से किसी विशेष धर्म की पार्टी होने आरोप लगता रहा है.


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