विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने बताया है कि डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद जो सबसे पहली तीन कॉल की थीं उनमें से एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी की गई थी. वह इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि ट्रंप के सत्ता में आने के बाद अमेरिका और भारत के रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा. रविवार (10 नवंबर, 2024) को वह मुंबई में आदित्य बिरला स्कॉलरशिप प्रोग्राम में हिस्सा लेने पहुंचे थे. 


इस कार्यक्रम में हारवर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और पॉलिटिकल फिलॉसफर मिशेल जे. सेंडल और आदित्य बिरला ग्रुप के चेयरमैन कुमार मंगलम बिरला भी मौजूद थे. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद इस बात की चर्चा सबसे ज्यादा है कि किन देशों की चिंता बढ़ गई है और कौन से मुल्कों को उनकी सत्ता से फायदा मिल सकता है. इस बीच भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ कर दिया है कि भारत उन देशों में नहीं हैं जो अमेरिका को लेकर चिंता में हैं.


एस. जयशंकर ने कहा, 'मैं जानता हूं कि आज बहुत से देश अमेरिका को लेकर घबराए हुए हैं, लेकिन भारत उनमें से नहीं है.' उनसे पूछा गया कि क्या अमेरिकी चुनावों के नतीजे यूएस और भारत के रिश्तों को प्रभावित कर सकते हैं, जिस पर जयशंकर ने कहा कि भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के कई राष्ट्रपतियों के साथ अच्छे संबंध बनाए हैं.    उन्होंने वैश्विक शक्ति की गतिशीलता के बारे में पूछे जाने पर कहा, 'हां, बदलाव हुआ है. हम खुद इस बदलाव का उदाहरण हैं... अगर आप हमारे आर्थिक वजन को देखते हैं तो आप हमारी आर्थिक रैंकिंग को देखते हैं, आप भारतीय कॉरपोरेट जगत, उनकी पहुंच, उनकी मौजूदगी, भारतीय पेशेवरों को देखते हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि पुनर्संतुलन हुआ है.'


उन्होंने कहा, 'औपनिवेशिक काल के बाद देशों को स्वतंत्रता मिली और उन्होंने अपनी नीतियां खुद चुननी शुरू कर दी थीं. फिर उनका आगे बढ़ना भी तय था. इनमें से कुछ तेजी से बढ़े, कुछ धीमी गति से बढ़े, कुछ बेहतर तरीके से बढ़े, और वहां शासन की गुणवत्ता और नेतृत्व की गुणवत्ता आई.' 


विदेश मंत्री ने अपने संबोधन में कहा, 'अधिक विविधतापूर्ण, बहुध्रुवीय दुनिया की ओर रुझान है, लेकिन, एक ऐसा दौर भी है जब देश वास्तव में आगे बढ़ते हैं. मेरा मतलब है, यह वैसा ही है जैसा कॉरपोरेट जगत में भी हुआ.' इसके साथ ही एस. जयशंकर ने इस बात पर बल दिया कि पश्चिम में औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और वे प्रमुख निवेश लक्ष्य बने हुए हैं.


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