नई दिल्ली: राजस्थान के अलवर में गोतश्करी के आरोप में रकबर खान की मौत के बाद देश में एक बार फिर मॉब लिंचिंग को लेकर बहस शुरू हो गई है. सड़क से लेकर संसद तक मॉब लिंचिंग पर चर्चा हो रही है. इस बीच देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा है कि लिंचिंग की घटनाएं सोशल मीडिया पर अफवाह की वजह से बढ़ी हैं.


चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, ''हाल के दिनों में मॉब लिंचिंग की घटनाओं में इजाफा हुआ है. चीफ जस्टिस ने कहा कि कृपया मुझे गलत न समझे क्योंकि मैंने फैसला लिखा है। सोशल मीडिया पर वायरल टेक्स्ट के कारण मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ी हैं। कई मामलों में यह भीड़तंत्र में बदल जाता है और कुछ मामलों में जान तक चली जाती है. समाज में शांति व्यवस्था कायम रहे इसके लिए उनके पास जो टेक्स्ट आते हैं उनकी जांच उन्हें खुद करनी चाहिए।'' चीफ जस्टिस ने अपील की अगर आप कोई कोई आपत्तिजनक संदेश अपने सोशल पेज पर देखते हैं तो उसे तुरंत डिलीट कर दें, उसे आगे ना बढ़ने दें.


मॉब लिंचिंग पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
भीड़ की हिंसा पर 17 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कड़े निर्देश जारी किए. कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य 1 महीने में निर्देशों को लागू करें. कोर्ट ने संसद से भी आग्रह किया है कि वो इस मसले पर कानून बनाए. कोर्ट का फैसला गोरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा पर रोकथाम के लिए दायर याचिकाओं पर आया है. तीन जजों की बेंच का ये फैसला चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने पढ़ा. चीफ जस्टिस ने कहा, "भारत में बहुलतावादी संस्कृति की रक्षा करना सरकार की ज़िम्मेदारी है. भीड़ तंत्र की हमारे यहां जगह नहीं है."


20 अगस्त को इस बारे में हुई तरक्की की समीक्षा करेगा कोर्ट
कोर्ट ने कहा है कि सभी राज्य और केंद्र 1 महीने में उसके निर्देशों को लागू करें. वो 20 अगस्त को इस बारे में हुई तरक्की की समीक्षा करेगा. कोर्ट ने संसद से भी आग्रह किया है कि वो इस मसले पर अलग से कानून बनाने पर विचार करे. फैसले में लिखा गया है, "सभ्य समाज की स्थापना के लिए बहुत अहम है कि लोगों में कानून का डर हो."