Dr.Babasaheb Ambedkar Jayanti 2020: भारत रत्न बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का बचपन बहुत ही संघर्षों में गुजरा. उन्हें सामाजिक कुरितायों का भी सामना करना पड़ा. उनके जीवन में कई ऐसी घटनाएं घटित हुईं जो उनके सामने बाधा बनकर आई लेकिन डा अंबेडकर ने हर चुनौती का डटकर सामना किया. वह बचपन से ही बहुत मेधावी थे. इसके बाद भी उन्हें स्कूल में भेदभाव का शिकार होना पड़ा.
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 मध्यप्रांत जिसे अब मध्य प्रदेश कहा जाता है के महू नगर स्थित सैन्य छावनी में हुआ था. वे अपने माता पिता की 14 वीं संतान थे. उनके माता पिता मराठी मूल के थ और कबीर पंथ को मानते थे. डा अंबेडकर हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे. इसके चलते उन्हें भेदभाव सहन करना पड़ा. उनके पिता का नाम रामजी सकपाल था जो महू छावनी में सेनिक थे. डा. अंबेडकर का विवाह रमाबाई से हुआ था.
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का बचपन
डॉक्टर आंबेडकर का बचपन बहुत गरीबी में बीता. जब उन्हें पढ़ने के लिए स्कूल में भेजा गया तो उनके साथ भेदभाव किया गया. सबसे होशियार होने के बाद भी उन्हें क्लास के बाहर खड़े होकर पढ़ना पढ़ता. जातीय भेदभाव के कारण उनके मन पर इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा. डॉक्टर आंबेडकर ने बचपन में यह जान लिया था कि इस व्यवस्था को शिक्षा से दूर किया जा सकता है. इसके लिए उन्होंने देश विदेश में उच्च शिक्षा ग्रहण की. बाद में डॉक्टर अंबेडकर ने तत्कालीन जातीय-सामाजिक व्यवस्था और व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ लोगों को जागरुक करने का कार्य किया.
डॉक्टर अंबेडकर की शिक्षा
डॉक्टर अंबेडकर ने बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक किया. इसके बाद उन्होने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से भी उच्च शिक्षा प्राप्त की थी.
भेदभाव के खिलाफ आंदोलन किया
डॉक्टर अंबेडकर ने भेदभाव को समाप्त करने के लिए 1924 में ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ का गठन किया. डॉक्टर आंबेडकर ने 1927 में 19-20 मार्च को सत्याग्रह करते हुए महाराष्ट्र के महाड में करीब पंद्रह हजार दलितों के साथ तालाब में प्रवेश कर दोनों हाथों से जल ग्रहण किया. ऐसा उन्हें इसलिए करना पड़ा क्योंकि इससे पहले दलितों के लिए ऐसा करना प्रतिबंधित था. इस अधिकार को दिलाने के लिए डॉक्टर आंबेडकर ने लंबी लड़ाई लड़ी. आखिर में 17 मार्च 1937 को तालाबों को दलितों के लिए भी खोल दिया गया.
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के विचार
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