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डॉ होमी जहांगीर भाभा जयंती: 18 महीने में परमाणु बम बनाने का किया था दावा, अमेरिका भी खाता था खौफ

होमी जहांगीर भाभा भारत की ऐसी महान शख्सियत थीं जिन्हे पूरी दुनिया में उनके काम और स्वभाव के लिए अलग पहचान मिली थी. भाभा उन वैज्ञानिकों में शुमार थे जिनके नाम भर से दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका भी खौफ खाता था.

प्रसिद्ध परमाणु ऊर्जा वैज्ञानिक और पद्म भूषण डॉ होमी जहांगीर भाभा की आज जयंती है. 30 अक्टूबर 1909 को भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम के जनक डॉ होमी जहांगीर भाभा का जन्म मुंबई के एक समृद्ध पारसी परिवार में हुआ था. डॉ. होमी जहांगीर भाभा भारत की ऐसी महान शख्सियत थी जिन्हें पूरी दुनिया में उनके काम और स्वभाव के लिए अलग पहचान मिली थी. भाभा उन वैज्ञानिकों में शुमार थे जिनके नाम भर से दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका भी खौफ खाता था.

यह भी कहा जाता है कि डॉ होमी जहांगीर भाभा की मौत के पीछे अमेरिका की खुफिया एजेंसी का हाथ है. फ्रास के माउंट ब्लैंक के आसमान में 24 नवंबर 1966 को एक विमान क्रैश हो गया था जिसमें मौजूद सभी यात्री मारे गए थे इन यात्रियों में डॉ. होमी जहांगीर भाभा भी शामिल थे. वह इस विमान में सवार होकर वियना एक कांफ्रेस में जा रहे थे.

भारत के परमाणु कार्यक्रम के भावी स्वरूप की मजबूत नींव रखी

डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने ही भारत के परमाणु कार्यक्रम के भावी स्वरूप की मजबूत नींव रखी थी जिसकी बदौलत आज विश्व के परमाणु संपन्न देशों की फेहरिस्त में भारत भी स्थान रखता है. भाभा ने 1944 में कुछ वैज्ञानिकों की सहायता से न्यूक्लियर एनर्जी पर शोध कार्यक्रम शुरू किया था. कहा जाता है कि भाभा ने उस समय न्यूक्लियर साइंस पर शोध करना शुरू किया था जब दुनिया को इसकी चैन रिएक्शन के बारे में ज्यादा जानकारी भी नहीं थी. इतना ही नहीं उस दौरान न्यूक्लियर एनर्जी से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानना ही नहीं चाहता था. भाभा को ‘आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम’ भी कहा जाता है.

1945 में ‘ टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’ की स्थापना की

डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने नोबेल विजेता वैज्ञानिक सी.वी. रमण और महान व्यवसायी जेआरडी टाटा की मदद से 1945 में मुंबई में ‘ टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’ की स्थापना की और इसके निदेशक बने. साल 1948 में एक कदम और आगे बढ़ते हुए डॉ. भाभा ने भारतीय परमाणु उर्जा आयोग की स्थापना की और अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करना शुरू कर दिया.

वैज्ञानिक होने के साथ ही कई और कलाओं में भी रखते थे रूचि

नोबेल पुरस्कार विजेता सर सी.वी.रमण डॉ. भाभा को उनकी बहुमुखी प्रतिभा के कारण भारत का लियोनार्दो द विंची पुकारा करते थे. भाभा वैज्ञानिक होने के साथ ही कई और कलाओं में भी पारंगत थे. उन्हे शास्त्रीय संगीत, नृत्य और चित्रकला भी गहरी रूचि थी और इन कलाओं की अच्छी समझ व परख भी थी.

डॉ. भाभा को 5 बार भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए भी नॉमिनेट किया गया था लेकिन अफसोस की विज्ञान जगत का सबसे बड़ा सम्मान भाभा को नहीं मिल सका. लेकिन भारत सरकार द्वारा डॉ. भाभा को पद्म भूषण से जरूर सम्मानित किया गया.

1950 से 1966 तक परमाणु उर्जा आयोग के अध्यक्ष रहे

डॉ भाभा ने ऑल इंडिया रेडियो से अक्टूबर 1965 में एक घोषण कर सभी को हैरान कर दिया था. दरअसल उन्होने कहा था कि अगर उन्हें छूट दी जाए तो भारत मात्र 18 महीनों में परमाणु बन बनाकर दिखा सकता है. उनका मानना था कि ऊर्जा, कृषि और मेडिसन जैसे क्षेत्रों में शांतिपूर्ण उर्जा कार्यक्रम होने चाहिए. डॉ भाभा ने ही पंडित जवाहर लाल नेहरू से परमाणु आयोग की स्थापना के लिए हामी भरवाई थी. वह 1950 से 1966 तक परमाणु उर्जा आयोग के अध्यक्ष रहे, उस समय वह भारत सरकार के सचिव भी हुआ करते थे. भारत सरकार द्वारा डॉ भाभा के अद्भुत योगदान को देखते हुए भारतीय परमाणु रिसर्च सेंटर का नाम भाभा परमाणु रिसर्च सेंटर कर दिया गया था.

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