UNHRC: भारत ने गुरुवार (23 मार्च) को संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान को जमकर लताड़ लगाई. भारत ने मानवाधिकार परिषद के सत्र में कहा कि दुनिया को उस पाकिस्तान से लोकतंत्र और मानवाधिकार पर सीखने की जरूरत नहीं है. जो आतंकवाद और हिंसा का सबसे बड़ा निर्यातक है और इसमें उसका योगदान की कोई बराबरी नहीं कर सकता. जहां आतंकवादी फलते-फूलते हैं और सड़कों पर बेखौफ घूमते हैं.


मानवाधिकार परिषद के 52वें सत्र में राइट ऑफ रिप्लाई का इस्तेमाल करते हुए भारत के अपर सचिव डॉ. पीआर तुलसीदास ने पाकिस्तान से भारत के खिलाफ फर्जी एजेंडा चलाने और सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिशों की जगह अपने देश में अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा से जुड़ी चिंता करने को कहा. 


'आतंकियों का पनाहगाह है पाकिस्तान'


भारत के अंडर सेकेट्री डॉ. पीआर तुलसीदास ने कहा कि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र की ओर से आतंकवादी घोषित किए गए 150 आतंकियों की पनाहगाह है और ये लोग वहां चुनाव लड़ने के साथ प्रचार करते हुए भी नजर आते हैं. उन्होंने कहा कि क्या पाकिस्तान इस तथ्य को नकार सकता है कि 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमलों के अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं, क्योंकि वहां ऐसे अपराधों पर सजा नहीं दी जाती है.


उन्होंने कहा कि पाकिस्तान इनकार कर सकता है क्या कि दुनिया का सबसे बड़ा आतंकी ओसामा बिन लादेन एक सैन्य ठिकाने के पास रहता था, जिसे सुरक्षा और पनाह वहां के लोगों ने ही दी थी. उन्होंने जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताते हुए कहा कि केंद्रशासित राज्य अब पूरे देश के साथ शांति और विकास की ओर आगे बढ़ रहा है. पाकिस्तान की ओर से लगातार माहौल बिगाड़ने की कोशिशों के बावजूद ये हो रहा है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की ओर से जम्मू-कश्मीर में आतंकी समूहों को समर्थन दिया जाता है और भारत के खिलाफ भ्रामक खबरों का कैंपेन चलाया जाता है.


'प्रोपेगेंडा नहीं चलने से बढ़ी पाकिस्तान की खीझ'


भारत के अंडर सेकेट्री तुलसीदास ने कहा कि पाकिस्तान के डेलीगेट अपने देश का भारत के खिलाफ चलाए जाने वाले प्रोपेगेंडा के असफल होने से खीझ रहे हैं. भारत का बहुलतावादी लोकतंत्र किसी भी मुद्दे पर बोलने के लिए परिपक्व है, जिसमें बाहरी उकसावे वाले मुद्दे भी शामिल हैं.


उन्होंने कहा कि भारत एक सेकुलर देश है और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा करना हमारी मुख्य नीति है. इसके उलट पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को ईशनिंदा कानून, व्यवस्थाजनित उत्पीड़न, भेदभाव, बुनियादी अधिकारों की स्वतंत्रता न मिलने, गायब होने और हत्याओं जैसी चीजों को झेलना पड़ता है. धार्मिक आधार पर भेदभाव के चलते लोगों की जान पर बन आती है.


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