पुलवामा जैसे हमलों को रोकने के लिए DRDO ने बनाया मानव रहित वाहन, इन सुविधाओं से है लैस
यह वाहन करीब 1600 किलो वजनी है. जिसे तीन तरीके से चलाया जा सकता है. पहला खुद चलाकर, दूसरा टेली ऑपरेशन, तीसरा ऑटोनोमस. यह वाहन समतल रास्ते पर करीब 25 किमी की रफ्तार पर चल सकता है. वहीं ऑटोनोमस पर 40 किमी प्रति घंटे रफ्तार से चल सकता है.
नई दिल्ली: पिछले साल 14 फरवरी को कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद जवानों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल उठाए गए थे. वहीं डीआरडीओ ने अब पुलवामा जैसे हमले या किसी भी तरह के नक्सली हमले से बचने के लिए एक खास वाहन बनाया है. डीआरडीओ के वीआरडीई (व्हीकल रिसर्च डेवलंपमेंट एस्टेब्लिशमेंट) ने पुलवामा जैसे खतरनाक हमले को रोकने के लिए एक ऐसे मानव रहित वाहन को लॉन्च किया है, जो ना सिर्फ खुद रेकी कर सकता है बल्कि राह पर आने वाली किसी भी तरह की चुनौती का सामना कर सकता है.
ये वाहन कई तरह की खुफिया सुविधाओं से लैस है. यह क्रूज नियंत्रण, हर प्रकार की बाधा से बचाने में सहायक होगा. साथ ही चुनौती भरी राह पर योजना बनाना और खुद ही नेवीगेट करना इसकी खूबी है. इतना ही नहीं वाहन पर एक ऐसा विशेष सेंसर भी लगा है, जो कि राह पर आने वाली बाधा को भांप कर उस से बच निकलने में सक्षम है. यह वाहन करीब 1600 किलो वजनी है. जिसे तीन तरीके से चलाया जा सकता है. पहला खुद चलाकर, दूसरा टेली ऑपरेशन, तीसरा ऑटोनोमस. यह वाहन समतल रास्ते पर करीब 25 किमी की रफ्तार पर चल सकता है. वहीं ऑटोनोमस पर 40 किमी प्रति घंटे रफ्तार से चल सकता है.
डीआरडीओ के वीआरडीई लैब के तकनीक अधिकारी अभिषेक दुबे ने बताया, "यह वाहन बिना किसी व्यक्ति के बैठे चलाया जा सकता है. इसका इस्तेमाल हमारे सीआरपीएफ और सेना के जवान कर सकते हैं. इसका इस्तेमाल रोड क्लियरिंग पार्टी या बार्डर पर रेकी के लिए भी किया जा सकता है. इसके अलावा बार्डर की सुरक्षा में इसका प्रयोग हो सकता है।.हथियारों और गोला बारूद को ले जाने के लिए और आस-पास कोई आतंकी छुपा है तो उसे खोज निकालने में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है."
उन्होंने बताया, "इस तकनीकी को हमने पूरी तरह से ऑटोनोमस बनाया है और इतना ही नहीं कोई भी वाहन जो सेना इस्तेमाल कर रही है. उसे भी ऑटोनोमस में तब्दील किया जा सकता है." दुबे ने बताया, पुलवामा जैसा हमला दोबारा न हो पाए इसकी सजगता के लिए इसे तैयार किया गया है. रेकी के अलावा इस वाहन में गन भी लगाई जा सकती है. जिससे फायरिंग भी की जा सकती है. इस वाहन का नाम एयूजीवी (ऑटोनॉमस अनमेंड ग्राउंड व्हेकिल) है."
बता दें जिस तरह छत्तीसगढ़ में आए दिनों नक्सली हमलों की खबरें मिलती रहती है और आईडी से बचने के लिए अमूमन ग्राउंड को भेदने वाले राडर का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन उस राडर को चलाने के लिए किसी व्यक्ति या वाहन की जरूरत पड़ती है. उस जगह पर हम इस मानव रहित एयूजीवी वाहन का इस्तेमाल कर सकते हैं. जिसको रिमोट के जरिए या पूरी तरह से आटोनॉमस चलाया जा सकता है. जो कि रास्ते में बिछे किसी भी तरह के आईइडी को खोज निकालने और रास्ते को पूरी तरह स्कैन करने में सक्षम है. जिससे जवानों के जान-माल का नुकसान न हो.
दिखने में यह बिल्कुल समान्य वाहन जैसा ही है. इसको देखकर कोई भी यह अंदाजा नहीं लगा सकता है कि यह मानव रहित है. इसमें सामन्य गाड़ी की तरह स्टेयरिंग व्हील ब्रेक पैडल और एक्सीलेटर लगा है. इसे चलाने के लिए जो भी ओटोमोनस सिस्टम लगा है वह बहुत ही गुप्त तरीके से लगाया है. गाड़ी आटोनोमस मोड पर चलते हुए खुद ही फैसला लेने में सक्षम है कि उसे किस राह पर जाना है. उसे किन-किन मुसीबतों से बचना है. ऑपरेटर की जरूरत तब होगी जब इसे टेली ऑपरेशन मोड पर चलाया जा रहा है. यानी रिमोट के माध्यम से इसे चलाया जा रहा हो. इसके लिए ऑपरेटर कन्ट्रोल यूनिट भी बनाया गया है। जो 25 किमी रेंज तक इसे ऑपरेट कर सकता है.
वाहन में एक विशेष अमेरिकी सेंसर लगा है जो हर चुनौती को भांप सकता है. इसके अलावा वाहन को नेवीगेट करने के लिए जीपीएस भी इसमें लगा है. हालांकि डीआरडीओ के वीआरडीई की मानें तो वाहन में भारत का अपना देशी नेविगेशन सिस्टम 'नाविक' भी लगाया जा सकता है. खासतौर पर युद्ध या किसी विशेष आपरेशन के दौरान नाविक का इस्तेमाल किया जा सकता है, क्योंकि ऐसे हालात में अमेरिका अपना जीपीएस देने से मना कर सकता है. जैसा कि अमेरिका ने कारगिल के दौरान मना किया था.
आपको बता दें कि नाविक भारत का अपना नेविगेशन सिस्टम है जिसे हाल ही के सालों में पूरा किया गया है. इसरो द्वारा भेजे गए आईआरएनएसएस सीरीज के उपग्रहों द्वारा इस सिस्टम को तैयार किया गया है जिसका नाम नाविक रखा गया था.
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