नई दिल्ली: मिलेट्री टेक्नोलॉजी की दिशा में भारत ने मील का पत्थर हासिल किया है. डीआरडीओ ने ऐसा स्टेल्थ मैटेरियल तैयार किया है जिससे भारत ऐसे लड़ाकू विमान और जंगी जहाज बना पाएगा जिनका पता दुश्मन के रडार भी नहीं लगा पाएंगे. यानि दुश्मन की सीमा में घुसकर आक्रमण करना अब भारत के लिए इस तकनीक के जरिए काफी आसान हो जाएगा. दुनिया के चुनिंदा देशों के पास ही स्टेल्थ मैटेरियल बनाने की काबलियत है. इस बारे में दुनिया के मशहूर साइंस-जर्नल, ‘साईंटेफिक-रिपोर्ट्स’ में लेख प्रकाशित कर भारत ने दुनिया को अपनी इस टेक्नोलॉजी से रुबरू कराया है.


अमेरिका, रुस और चीन के सिवाय दुनिया के किसी देश के पास नहीं


स्टेल्थ टेक्नोलॉजी एक ऐसी तकनीक है जिसके चलते भारत के लड़ाकू विमानों को पाकिस्तानी रडार तो क्या दुनिया के किसी भी शक्तिशाली देश की रडार को पकड़ना बेहद मुश्किल होगा. ये स्टेल्थ तकनीक अमेरिका, रुस और चीन के सिवाय दुनिया के किसी देश के पास नहीं है.


डीआरडीओ ने आधिकारिक तौर से एबीपी न्यूज से इस खबर पर मुहर लगाई है कि अब भारत भी स्टेल्थ मैटेरियल बनाने वाले देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है. डीआरडीओ की जोधपुर स्थित डिफेंस लैब ने आईआईटी के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एफएमएआर-80 (‘FMAR80’) नाम का स्टेल्थ मैटेरियल तैयार किया है.


दुश्मन के रडार को नहीं चल पाएगा पता


जानकारी के मुताबिक, एफएमएआर-80 नाम का ये स्टेल्थ मैटेरियल रडार से निकलने वाली हाई-फ्रिकयुंसी माइक्रोवेव-तरंगों को अपने अंदर खीच लेता है और बाहर नहीं निकलने देता है. जिसके चलते दुश्मन के रडार को पता ही नहीं चल पाएगा कि उसके इलाके में कोई स्टेल्थ लड़ाकू विमान, जंगी जहाज या फिर पनडुब्बी घुस आई है. डीआरडीओ के मुताबिक, ये स्टेल्थ मैटेरियल, निकिल-ज़िक फर्टाइल (NICKLE ZINC FERTILE)पाउडर को एक खास तरह की अक्राईलो-निटराइल ब्यूटेडाइन रबर (ACYRLO NITRILE BUTADINE)के साथ मिलकर तैयार किया गया है.


दरअसल, रडार एक ट्रांसमीटर द्वारा निकलने वाली माईक्रो-वेव्स के जरिए काम करती है. ये तरंगें लड़ाकू विमानों, युद्धपोत या फिर पनडुब्बी जैसे दूसरे टारगेट की सर्फेस यानि सतह से टकराती हैं और वापस रडार में लगे डिटेक्टर से आकर टकरा जाती हैं. इसी के जरिए दुश्मन के रडार किसी भी विमान या फिर जंगी जहाज का पता लगा लेते हैं. लेकिन डीआरडीओ द्वारा तैयार किए गए स्टेल्थ मैटेरियल से ऐसा नहीं हो पाएगा. क्योंकि वो रडार की तरंगों को अपने में सोख लेगा और तरंगे वापस रडार के डिटेक्टर तक नहीं पहुंच पाईगी.


आधुनिक युद्धशैली में किया जाता है एक्स-बैंड रडार का इस्तेमाल 


जानकारों के मुताबिक, मार्डन वॉरफेयर यानि आधुनिक युद्धशैली में एक्स-बैंड रडार का इस्तेमाल किया जाता है. क्योंकि इनमें हाई-फ्रीक्वेंसी माइक्रोवेव्स इस्तेमाल की जाती है. जिसके चलते हजारों मील दूर आसमान में कोई लड़ाकू विमान हो या फिर गहरे समंदर में कोई पनडुब्बी, एक्स-बैंड रडार उसका तुरंत पता लगा लेती है. लेकिन एफएमएआर80 मैटेरियल की कोटिंग वाले विमान या फिर पनडुब्बी को एक्स-बैंड रडार भी नहीं पकड़ पाएगी.


आईये अब आपको बताते हैं कि ये स्टेल्थ टेक्नोलॉजी भारत के लड़ाकू विमानो के लिए क्यों जरुरी है. दरअसल, अमेरिका अस्सी के दशक से ही स्टेल्थ लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल करते आया है. इस वक्त भी अमेरिका के पास एफ-35, बी-2 स्प्रिट और एफ-22 रैपटर जैसे स्टेल्थ फाइटर प्लेन हैं. जिन्हें फिफ्थ-जेनेरशन फाइटर प्लेन भी कहा जाता है. चीन का दावा है कि उसका जे-20 चेंगदु लड़ाकू विमान भी स्टेल्थ विमान है. हालांकि अभी दुनिया चीन के दावे पर कम ही यकीन कर रही है. लेकिन अगर वाकई जे-20 स्टेल्थ लड़ाकू विमान है तो भारत को इसके लिए तैयार रहना होगा. लेकिन सबसे मुश्किल भारत के लिए ये है कि रशिया पाकिस्तान के लिए एक ऐसा लड़ाकू विमान तैयार कर रहा है. जबकि रशिया की मदद से बनने वाले फिफ्थ-जेनरेशन फाइटर एयरक्राफ्ट यानि एफजीएफए प्रोजेक्ट अभी तक नहीं शुरु हो पाया है.


स्टेल्थ हेलीकॉप्टर के चलते ही पाकिस्तान को कानोंकान नहीं लगी थी खबर 


यहां आपको ये भी बताते चलें कि साल 2011 में अमेरिका ने ओसाना बिन लादेन को मारने के लिए अपने सील-कमांडोज़ को पाकिस्तान के एबेताबाद में स्टेल्थ-हेलीकॉप्टर में भेजा था. माना जाता है कि इन स्टेल्थ हेलीकॉप्टर के चलते ही पाकिस्तान को कानोंकान खबर नहीं लगी कि अमेरिकी हेलीकॉप्टर उसकी सीमा में पहुंच गए हैं और सर्जिकल-मिशन को अंजाम दे रहे हैं.


भारत के पास फिलहाल, लाइट कॉम्बेट एयरक्राफ्ट, तेजस ही ऐसा विमान है जो सेमी-स्टेल्थ लड़ाकू विमान है. इसके विंग स्टेल्थ मैटेरियल से बने हैं. लेकिन फीफ्थ जेनरेशन लड़ाकू विमान को पूरी तरह स्टेल्थ बनना होगा. फिलहाल, एचएएल, एरोनोटिकल डिजाइन एजेंसी और डीआरडीओ मिलकर एडवांस मीडियम कॉम्बेट एयरक्राफ्ट यानि एएमसीए पर काम कर रहे हैं जो कि पूरी तरह से स्टेल्थ एयरक्राफ्ट है. ऐसे में डीआरडीओ द्वारा तैयार किया गया एफएमएआर80 नाम का मैटेरियल भारत के स्टेल्थ लड़ाकू विमानों को तैयार करने में मील का पत्थर साबित होगा.


प्रोजेक्ट का नाम 'घातक'


गुरूवार को ही रक्षा राज्यमंत्री सुभाषराव भामरे ने लोक सभा को बताया कि भारत स्टेल्थ-यूएवी यानि ड्रोन दिया कर रहा है. इस प्रोजेक्ट का नाम 'घातक' है.


अगर जंगी समुद्री जहाजों की बात करें तो अमेरिका ही अकेला ऐसा देश है जिसने पूरा स्टेल्थ जहाज अभी तक तैयार किया है. भारत के पास भी शिवालिक-क्लास के स्टेल्थ-फ्रिगेट हैं, लेकिन वे पूरी तरह स्टेल्थ युद्धपोत की श्रेणी में नहीं आते हैं. इन स्टेल्थ फ्रिगेट के लिए भी भारत को दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता था. लेकिन अब जब स्टेल्थ मैटेरियल भारत में ही बनना शुरु हो गया है, तो भारत अमेरिका की तर्ज पर इस तरह के पूरी तरह स्टेल्थ जहाज बनाने की दिशा में काम कर सकेगा.