कश्मीर: क्या धारा 370 को खत्म किए जाने के बाद जम्मू कश्मीर में युवाओं के आतंक के रास्ते जाने पर लगाम लगी है? सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से जारी किये गए आंकड़ों की मानें तो इसमें 48 प्रतिशत तक की कमी आई है, लेकिन यह प्रक्रिया पूरी तरह ख़त्म नहीं हो सकी है. पिछले साल 5 अगस्त को धारा 370 जम्मू कश्मीर से हटाई गई थी और इसके बाद से अब तक 85 युवाओं के विभिन्न आतंकी संगठनों में शामिल होने की खबर है, जो पिछले साल के 114 के आंकड़े से कम हैं.


जम्मू कश्मीर पुलिस के अनुसार जनवरी 2020 से लेकर अब तक पूरी कश्मीर घाटी में 67 नए लड़के विभिन्न आतंकी संगठनों में शामिल हुए जिनमें से 80 प्रतिशत को या तो मार गिराया गया या फिर गिरफ्तार कर लिया गया. सुरक्षा बलों की चौकसी और ऑपरेशन ऑल आउट का ही नतीजा है कि 30 सालो में पहली बार दक्षिण कश्मीर का त्राल, आतंकी मुक्त हो गया. त्राल हिज्बुल के पोस्टर बॉय बुरहान वाणी का पैतृक गांव था और हमेशा से ही आतंक का गढ़, लेकिन आज इस इलाके में एक भी सक्रिय आतंकी नहीं बचा है.


जम्मू कश्मीर पुलिस के महानिदेशक दिलबाग सिंह के अनुसार जम्मू कश्मीर में बड़ी संख्या में आतंकियों का सफाया हो चुका है, लेकिन अभी आतंकवाद पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है. इसके लिए वह बड़ी संख्या में आतंकियों का ओवर ग्राउंड वर्कर के सक्रिय नेटवर्क को ज़िम्मेदार बता रहे है.


पुलिस के अनुसार यह OGW ही युवाओं को भटकाने में लगे हैं और आतंक के रास्ते पर ले जा रहे हैं, लेकिन पिछले एक साल में अब आतंक के रास्ता लेने वालों की उम्र बहुत कम हो गयी है.


DGP के अनुसार जहां 2018 से पहले एक सक्रिय आतंकी की उम्र 2-3 साल तक थी, वहीं यह अभ घट कर तीन महीने से लेकर 24 घंटे तक हो चुकी है. जिस का सबूत 2018 और 2019 में मारे गए आताकियों के आंकड़ें हैं.


जहां 2017 में 126 स्थनीय युवा विभिन्न आतंकी संगठनों में शामिल हुए वहीं, 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर 218 तक पहुचं गया था, लेकिन सुरक्षा बलों के ऑपरेशन ऑल आउट में मारे जाने वाले 257 आतंकियों में से 142 स्थानीय थे.


इसी तरह 2019 में 139 स्थानीय युवा आतंकी बनें तो मारे जाने वाले 152 आतंकियों में से 120 स्थानीय आतंकी थे और 2020 के पहले चार महीनों में शामिल होने वाले 24 में से 21 आतंकी सुरक्षा बलों की गोली का शिकार बने.


लेकिन जहां एक तरफ आतंक के खिलाफ कश्मीर घाटी में ऑपरेशन तेज़ हुए और बड़ी संख्या में आतंकी मारे गए वहीं, सीमाओं पर सीजफयर की घटनाओं में कई गुना बढोतरी हुई है. जहां 2019 में 3168 घटनाए हुई. वहीं जुलाई तक यह आंकड़ा 2200 के पार जा चुका है. जिससे साफ़ हो जाता है कि पाकिस्तान कश्मीर में शांति नहीं चाहता.


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