नई दिल्ली: भारत में ड्रग रेगुलेटर डीसीजीआई ने बेंगलुरु बेस्ड बायोटेक्नोलॉजी कंपनी बायोकॉन को अपनी दवा इटोलिजुमाब के फेज-3 के ट्रायल की मंजूरी दे दी है. इस दवा का प्रयोग कोरोना वायरस महामारी के मरीजों के इलाज के लिए किया जाएगा. पिछले शुक्रवार को केंद्रीय औषधि मानक और नियंत्रण संगठन की एक एक्सपर्ट कमेटी ने 30 रोगियों पर फेज-2 ट्रायल के आधार पर बायोकॉन दवा के लिए फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल से छूट देने की सिफारिश की थी.
बता दें कि पहले से बनी इस दवा को कोरोना के मरीजों के लिए इलाज के लिए फिर विकसित से किया गया है. इसमें कोरोनवायरस के कारण शरीर के अंदर उत्पन्न साइटोकिन स्ट्रॉम से लड़ने की क्षमता है.
सीडीएससीओ पैनल ने कोविड -19 के कारण "मध्यम से गंभीर" एक्यूट रेस्पायरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) के रोगियों में दवा के उपयोग की सिफारिश की. कंपनी ने एक प्रेस स्टेटमेंट में कहा कि इसको ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया द्वारा "रेस्ट्रीक्टड इमेरजेंसी यूज" के लिए अप्रूव किया है.
रेगुलेटरी पैनल ने कंपनी से सुरक्षा के मुद्दों और सहमति को से जुड़े मुद्दों के साथ डीजसीआई को रिस्क मैनेजमेंट प्लान प्रस्तुत करने के साथ फेज-4 के क्लीनिक ट्रायल (पोस्ट-मार्केटिंग सर्विलांस) करने के लिए कहा है.
छूट पर सवाल भी उठे
कुछ मेडिकल रिसर्चर ने छूट को लेकर नियामक पर सवाल उठाए हैं. इंटरनेशनल बायोटिक्स एशोसिएशन की पूर्व अध्यक्ष और ग्लोबल हेल्थ रिसर्चर अनंत भान के अनुसार, हमें इस बात की डिटेल पता होनी चाहिए कि इस तरह के निर्णय किस आधार पर किए जाते हैं. सिर्फ यह कहना ही पर्याप्त नहीं होना चाहिए कि विस्तृत विचार-विमर्श के बाद ही समिति ने आपातकालीन उपयोग की छूट की सिफारिश की है. एसईसी को इस पर व्यापक विचार-विमर्श करना चाहिए. फेज-3 की ट्रायल की फेज-2 के कम नंबर्स के आधार पर छूट देना चिंता को बढ़ाता है.
बायोकॉन के प्रवक्ता के अनुसार इलाज में 32,000 रुपये खर्च होते हैं. एक शीशी की कीमत 8,000 रुपये है और इलाज के लिए चार शीशियों की जरूरत होती है. उनके अनुसार मुंबई और दिल्ली के चार अस्पतालों में ट्रायल किया गया. 20 मरीजों को दवा दी गई और 10 की स्टैंड्रड केयर की गई. दवा लेने वाले सभी 20 मरीज पूरी तरह से ठीक हो गए और उन्हें छुट्टी दे दी गई. लेकिन केयर वाले 10 में से तीन मरीजों की मौत हो गई.
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