यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन (यूजीसी) ने मंगलवार को डुअल डिग्री प्रोग्राम से जुड़े कई संशय और कंफ्यूजन को दूर कर दिया. यूजीसी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर जॉइंट, डुअल और ट्विनिंग प्रोग्राम को शुरू करने की घोषणा की. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूजीसी के चेयरमैन प्रोफेसर ममीडाला जगदीश कुमार, UGC के सेक्रेटरी प्रोफेसर रजनीश जैन और प्रोफेसर यूजीसी सेक्रेटरी प्रोफेसर रजनीश जैन भी जुड़े थे. इस दौरान इन लोगों ने बताया कि UGC द्वारा जारी जॉइंट डिग्री और डुअल डिग्री प्रोग्राम हाल ही में जारी किए गए टू डिग्री प्रोग्राम से अलग है. छात्रों को इस बात का ध्यान रखना होगा. दरअसल नए प्रोग्राम के जरिए भारतीय छात्रों को विदेशी संस्थानों से क्रेडिट लेने की अनुमति दी जाएगी.


मिलेगा 30 प्रतिशत स्कोर


यूजीसी ने यह स्पष्ट किया कि इस प्रोग्राम के तहत इंडियन स्टूडेंट्स को विदेशी संस्थानों से क्रेडिट लेने की अनुमति दी जाएगी. यह क्रेडिट 30 प्रतिशत की ऊपरी सीमा तक विदेशी संस्थान से लिया जा सकेगा. वहीं विदेशी छात्र भी भारतीय विश्वविद्यालय से 30 प्रतिशत क्रेडिट प्राप्त कर सकते हैं. इसके तहत भारतीय उच्च शिक्षा संस्थान डिग्री देगा जबकि छात्रों को एक या दो सेमेस्टर के लिए विदेश में अध्ययन करने का मौका मिलेगा.


कौन से संस्थान ऐसा करने के लिए क्वॉलिफाई करते हैं ?


इस सवाल को लेकर भी काफी कंफ्यूजन की स्थिति थी, जिसे यूजीसी ने सपष्ट किया. भारतीय संस्थान संयुक्त डिग्री के लिए टॉप 1,000 क्यूएस या टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग में किसी भी विदेशी संस्थान के साथ सहयोग कर सकते हैं. जो इंस्टिट्यूट इसके लिए क्वॉलिफाई करते हैं, वो इस प्रकार हैं.


1. NAAC ग्रेडिंग में 3.01 या उससे अधिक लाने वाले कॉलेज


2. NIRF रैंकिंग या QS रैंकिंग या टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग टॉप 1000 विश्वविद्यालय


3. NIRF रैंकिंग या टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग या QS रैंकिंग के अनुसार टॉप 1000 कॉलेज


इस सुविधा, प्रोग्राम को कॉलेज/विश्वविद्यालय सांविधिक बॉडी में चर्चा करने के बाद और मंजूरी लेकर लागू कर सकते हैं.  


ये है सबसे खास बात


इस प्रोग्राम की सबसे खास बात ये है कि इससे स्टूडेंट्स किसी भी विदेशी संस्थान से 30% की ऊपरी सीमा तक क्रेडिट पा सकते हैं. विदेशी छात्र भी भारतीय विश्वविद्यालय से 30% क्रेडिट अर्जित कर सकते हैं. भारतीय उच्च शिक्षा संस्थान डिग्री देगा, जबकि छात्रों को एक या दो सेमेस्टर के लिए विदेश में अध्ययन करने का अवसर मिलेगा. विदेशी संस्थान एक प्रमाण पत्र देगा जो यह दर्शाएगा कि छात्र को इतने क्रेडिट दिए गए हैं. डिग्री भारतीय संस्थान द्वारा दी जाएगी जिसके लिए छात्र ने नामांकन किया है. यूजीसी ने ये भी स्पष्ट किया कि प्रवेश नीति में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा.


गौरतलब है कि वर्तमान में भारतीय संस्थानों में 4 करोड़ स्टूडेंट्स उच्च शिक्षा की पढ़ाई कर रहे हैं, जिनकी संख्या अब 10 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है. इन प्रोग्राम के सफल क्रियान्वयन के जरिए छात्रों की रोजगार क्षमता बढ़ सकती है. वहीं अंतर्राष्ट्रीयकरण से शिक्षा में सुधार होने की उम्मीद है. भारतीय छात्र विदेश में पढ़ेंगे, जबकि विदेशी छात्र भारत में पढ़ सकेंगे. इन नियमों के माध्यम से बड़े लाभ हो सकते हैं. यह जानना जरूरी है कि पहले जॉइंट डिग्रियां नहीं होती थीं, लेकिन अब इसे मंजूरी दे दी गई है. वर्ष 2012, 2016 में भी इसी तरह की व्यवस्था थी. लेकिन अब नई शिक्षा पॉलिसी के अंतर्गत शिक्षा को और समग्र बनाने के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं. 


ऑनलाइन क्यों नहीं?


यह सवाल पूछने पर कि आखिर इन प्रोग्राम के लिए ऑनलाइन मोड की सुविधा क्यों उपलब्ध नहीं की गई है. इस पर प्रोफेसर जगदीश कुमार कहते हैं कि "इसके लिए कोई ऑनलाइन मोड नहीं है. भारतीय/विदेशी छात्रों को क्रेडिट के लिए शारीरिक रूप से संस्थान में जाना होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि विदेशी छात्र हमारे देश आकार और हमारे छात्र दूसरे देश जाकर ज्यादा अच्छी तरह से एक-दूसरे को समझ सकते हैं. यह भारतीय और विदेशी छात्रों को एक दूसरे के साथ सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित करेगा." प्रोफेसर मामीडाला के अनुसार ऑनलाइन मोड के माध्यम से सीखने के तुलना में फिजिकली कॉलेज जाकर देश और स्थान से अनुभवात्मक शिक्षा बेहतर होती है.


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