किसानों के प्रदर्शन के चलते टिकरी बॉर्डर पर स्थित पेट्रोल पंप्स पर पसरा सन्नाटा, कर्मचारियों में बेरोजगार होने का डर
टिकरी बॉर्डर के पास दिल्ली की ओर पांच पेट्रोल पंप्स पड़ते हैं. पहले यहां हजारों का सेल होता था लेकिन किसानों के आंदोलन की वजह से सब कुछ ठप पड़ा हुआ है. यहां काम करने वाले कर्मचारियों ने अपना हाल बयां किया है.
नई दिल्ली: दिल्ली और हरियाणा को जोड़ने वाले टिकरी बॉर्डर पर 17 दिनों से किसान नए कृषि कानून के विरोध में बैठे हुए हैं. किसानों की प्रशासन के साथ हुई बातचीत का अब तक कोई हल नहीं निकला. दिल्ली के कई मुख्य बॉर्डर्स पर किसान पूरी तैयारियों के साथ पहुंचें हैं. अगर आंदोलन लम्बा चलता है तो किसानों के पास सारी व्यवस्था है. किसानों ने ठान ली है कि जब तक उनकी मांगे नहीं सुनी जाती, वे डटे रहेंगे.
इस बीच एनएच 10 पर आवाजाही बंद पड़ी है, जिसका प्रभाव टिकरी बॉर्डर पर स्थित पेट्रोल पंप्स पर भी पड़ रहा है. केवल दिल्ली की ओर पड़ने वाले ऐसे 5 पेट्रोल पंप्स हैं जो अब पूरी तरह से ठप पड़े हुए हैं. बिक्री बिलकुल ही बंद है. हालांकि कर्मचारी यहां आते हैं. मशीनों की देख रेख करते हैं और चले जाते हैं. जहां आम दिनों में इन पेट्रोल पंप्स पर एक लाख लीटर पेट्रोल और डीज़ल के साथ 60 हज़ार किलो सीएनजी बिक जाती थीं, वहीं अब प्रदर्शन की वजह से हर रोज़ का नुकसान हो रहा है.
अगर ऐसा ही आंदोलन आगे बढ़ा तो इन पेट्रोल पंप्स को बंद करने की नौबत आ जाएगी. पेट्रोल पंप पर ही सीएनजी बेचने वाले संदीप बताते हैं कि रोज़ाना लगभग 10 हज़ार की सेल होती थी. अब तक हमारा 60 लाख का नुकसान हो चुका है. सरकार किसानों की मांगें पूरी नहीं करती है तो हमारा काफ़ी नुकसान होगा. हमें कोई कमीशन भी नहीं मिल पा रहा है. घर पर बैठना पड़ जाएगा, नौकरियां रह भी नहीं गयी हैं. ढाई रुपये के हिसाब से कमिशन मिल रहा था वो भी नहीं मिल रहा है. डीलर सैलरी दे रहें हैं लेकिन वो भी कब तक सैलरी दे पाएंगे? यहां पर सुरक्षा के लिए रहना पड़ता है कि कहीं कोई हादसा ना हो जाए. काफ़ी लम्बा घूम कर यहां आना पड़ता है.
डीज़ल और पेट्रोल पर काम करने वाले विजय यादव बताते हैं कि रोज़ाना के 200-250 कस्टमर्स थे. अब कोई नहीं आ रहा है. हम पेट्रोल पंप पर आते हैं और बैठकर चले जाते हैं. सेल एक डेढ़ लाख की थी अब एक रुपया नहीं मिल पा रहा है. सैलरी भी सेल से ही निकलते हैं. फिलहाल तो तनख्वाह मिल रही है लेकिन आगे का नहीं पता. मालिक भी कहां से देंगे, जब सेल ही नहीं होगी. आम लोगों के लिए काफ़ी मुश्किल है. लोग पैदल चलते हैं. यहां पर जो दिल्ली की तरफ जो 5 पेट्रोल पंप हैं वो सब बंद हैं. पेट्रोल पंप के बाहर 24 घंटे पेट्रोल का बोर्ड तो लगा है लेकिन अब वहां पर किसानों के अलावा किसी और का आना जाना नहीं है.
दूसरे पेट्रोल के मैनेजर दर्शन सिंह कहते हैं कि 22 साल से वो यहां काम कर रहे हैं. अभी कोई कस्टमर नहीं आ रहा है. हमारे पेट्रोल पंप पर 10 हज़ार किलो गैस बिकती थी अब गैस बिलकुल भी नहीं आ रही है. पेट्रोल और डीज़ल डेली का 60 हज़ार रुपए का नुकसान है. टिकरी बॉर्डर पर जो पेट्रोल पंप हैं उन पर डेली का 1 लाख लीटर पेट्रोल बिकता था और 60 हज़ार किलो सीएनजी बिकती थी. सीएनजी की तो सप्लाई तक नहीं आ रही है. सभी पेट्रोल पंप पर 250 कर्मचारी हैं. उनके जीवन पर काफ़ी प्रभाव पड़ेगा. सरकार से यही अनुरोध है कि किसानों की समस्याओं का समाधान करें ताकि हमारी समस्या भी सुलझ जाए. हम ना पंप को बंद कर सकते हैं ना चला सकते हैं. अगर ये लम्बा खींचा तो बंद पड़ जाएगा. पहले लॉकडाउन था और अब अलग तरह का लॉकडाउन हो गया है.
मात्र पेट्रोल भरने वाले छोटे कर्मचारी इससे सबसे ज़्यादा चिंतित है. उनको इस बात की चिंता है कि अगर आंदोलन आगे बढ़ा और पेट्रोल पंप के मालिक के पास पैसे नहीं हो पाए तो वो अपना घर किस तरह से चलाएंगे?
नीरज श्रीवास्तव मात्र कुछ हज़ार की नौकरी करते हैं. घर में बच्चे छोटे हैं. उन्होंने कहा कि ना उनको किसानों से दिक्कत है ना सरकार से लेकिन उनकी समस्या दोनों ही पक्षों को सुननी चाहिए. आज एक भी कस्टमर नहीं आ रहा है हज़ारों का नुकसान हो रहा है. पेट्रोल पंप के मालिक फिलहाल 90 फीसदी सैलरी दे रहे हैं लेकिन उस पर भी बोझ है. वो भी आगे कैसे चलाएंगे, अपने पास से कब तक सैलरी देंगे? अब आज वो 10 फीसदी सैलरी काट भी रहे हैं तो बाहर बिकने वाला सामान, बच्चों के दूध, दवा और राशन थोड़ी 10 रुपये सस्ता मिल जाएगा. हम मज़दूरों के पास एक दिन का राशन भी नहीं है.
ऐसे ही हर पेट्रोल पंप पर काम करने वाले कर्मचारियों की परेशानी है. केवल दिल्ली की ओर ही लगभग 250-300 कर्मचारियों के बेरोज़गार होने का खतरा है. जहां सरकार और किसान एक समाधान पर नहीं पहुंच पा रहे हैं वहीं आम लोगों को उनकी पेट पर लात पड़ने का डर सता रहा है.
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