बाढ़ के चलते इस बार केरल में ओणम का त्योहार रहेगा फीका
इस बार भीषण बाढ़ की त्रासदी झेल रहे केरल में ओणम की रौनक फीकी रहने वाली है. यही नहीं, बाढ़ के चलते सबरीमला मंदिर को भी बंद कर दिया है.
नई दिल्लीः ओणम केरल राज्य का प्रमुख त्योहार और मलयाली हिन्दुओं का नव वर्ष है. यह एक कृषि पर्व है, जिसे हर समुदाय के लोग उत्साह और धूमधाम के साथ मनाते हैं. यह उत्सव राजा बलि के स्वागत में हर साल मनाया जाता है, जो कि पूरे 10 दिन तक चलता है. हालांकि इस बार भीषण बाढ़ की त्रासदी झेल रहे केरल में ओणम की रौनक फीकी रहने वाली है. यही नहीं, बाढ़ के चलते सबरीमला मंदिर को भी बंद कर दिया है. आपको बता दें कि हर साल इस मंदिर में ओणम के दौरान विशेष पूजा-अर्चना होती है.
राज्य का कृषि पर्व कहलाने वाला ओणम मलयालम कैलेंडर के पहले माह चिंगम के शुरू में पड़ता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हर साल अगस्त-सितंबर में इस त्योहार को मनाया जाता है. वैसे तो ओणम का जश्न 10 दिनों तक मनाया जाता है, लेकिन इसमें पहले दो दिन सबसे महत्वपूर्ण होते हैं. ओणम के पहले दिन को उथ्रादम कहा जाता है, जबकि दूसरा दिन मुख्य ओणम यानी कि थिरूओणम कहलाता है. उथ्रादम के दिन घर की साफ-सफाई करने के बाद सजावट की जाती है. फिर थिरूओणम की सुबह पूजा की जाती है. मान्यता है कि थिरूओणम के दिन राजा बलि पधारते हैं. इस बार 24 अगस्त को उथाद्रम है जबकि 25 अगस्त को थिरूओणम मनाया जाएगा.
हालांकि इस बार यह पर्व हर किसी के लिए फीका ही दिख रहा है. हर साल जहां रौनक अलग ही होती है वहीं इस साल यह बाढ़ के कारण लोगों के दुख दर्द के बीच मनाया जा रहा है.
अलापुला के रहने वाले इंदिरा पिल्लई और रामचंद्र पिल्लई की मानें तो हर साल वे घर में नए कपड़े और अलग अलग तरह के पकवान बनाकर मानते हैं लेकिन इस बार बाढ़ के कारण यह त्योहार बहुत ही कम पकवान के साथ मनाया जा रहा है. वहीं कई ऐसे लोग भी है जिनका बाढ़ में इतना सब कुछ तबाह हो गया कि कुछ नहीं बचा, ऐसे में बाढ़ के हालात के बीच वे ओणम मना नहीं सकते. अमूमन लोग घर पर पकवान बनाते है लेकिन इस बार हालात ऐसे ही कि लोग बाहर से बांटे जा रहे खाने को लेने के लिए मजबूर है.
दूसरी ओर सरकार और एनजीओ से भी कोशिश की जा रही है कि कैंप में मौजूद लोगों को कुछ देकर इस फ़ीके त्योहार में कुछ रंग भरा जाए. लेकिन दर्द के सामने इस बार कुछ नहीं. रिलीफ कैंप में लोगों को बांटने के लिए तैयारियां जोरों पर है.
क्यों मनाया जाता है ओणम बता दें कि ओणम राजा बलि के स्वागत में मनाया जाता है. मान्यता है कि राजा बलि कश्यप ऋषि के पर पर पोते, हृणियाकश्यप के पर पोते और महान विष्णु भक्त प्रह्लाद के पोते थे. वामन पुराण के अनुसार असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था. राजा बलि के आधिपत्य को देखकर इंद्र देवता घबराकर भगवान विष्णु के पास मदद मांगने पहुंचे. भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए. वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि मांगी. पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया. अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं थी तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें. भगवान वामन ने ऐसा ही किया. इस तरह राजा बलि के आधिपत्य में जो कुछ भी था वह देवताओं को वापस मिल गया. वहीं, भगवान वामन ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह साल में एक बार अपनी प्रजा और राज्य से मिलने जा सकते हैं. राजा बलि के इसी आगमन को ओणम त्योहार के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि राजा बलि हर साल ओणम के दौरान अपनी प्रजा से मिलने आते हैं और लोग उनके आगमन पर उनका स्वागत करते हैं.
इस बार कई जगह पर पानी भर जाने के कारण नुकसान कुछ ज्यादा हुआ है लेकिन बाज़ार में बावजूद उसके लोग पहुंच रहे हैं. इस त्योहार में तरह-तरह के व्यंजन, लोकगीत, नृत्य और खेलों का आयोजन इस पर्व को अनूठी छटा दे देता है.