नई दिल्ली: दिल्ली में कोरोना के हालातों और लगातार बढ़ते ब्लैक फंगस के मामले पर सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि मौजूदा हालात ऐसे हैं, जैसे हम नर्क में रह रहे हों. हम चाह कर भी किसी की मदद नहीं कर पा रहे हैं. हालात ऐसे हैं कि एक महीने पहले तक किसी को ब्लैक फंगस के बारे में पता तक नहीं था. लेकिन आज वह महामारी है. हालांकि केंद्र सरकार कोशिश इसके इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा की उपलब्धता बढ़ाने की कर रही है. लेकिन उसके बावजूद आज भी इंजेक्शन की भारी किल्लत है और इस वजह से हम चाह कर भी जरूरतमंदों को यह दवा उपलब्ध करवाने का आदेश नहीं दे सकते. कोर्ट ने ब्लैक फंगस के साथ ही दिल्ली के अस्पतालों में बेड्स की ताजा स्थिति और ऑक्सीजन की स्थिति को लेकर भी सुनवाई की.
दिल्ली में ब्लैक फंगस मामले पर सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया कि फिलहाल आज की तारीख में दिल्ली में ब्लैक फंगस के 411 मरीज मौजूद हैं, और केंद्र सरकार से इस बीमारी के इंजेक्शन कुल 1020 मिले हैं. इस हिसाब से हर मरीज को कुछ ना कुछ मिल जाएगा. दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि हम कुछ मरीजों को उपलब्ध करवाएं और कुछ को नहीं, यह भी ठीक नहीं है इस वजह से हमने तय किया है कि हम अस्पतालों को दे देंगे और वह अपने हिसाब से इस्तेमाल करेंगे.
कोर्ट ने कहा कि यह एक नीतिगत फैसला होना चाहिए. आप एक महामारी के वक्त में सिर्फ अलग-अलग अस्पतालों के ऊपर ही नहीं छोड़ सकते. आप लोगों ने क्या सोचा है यह बताइए. केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि कुछ मामलों में डॉक्टर इस इंजेक्शन के साथ और दूसरी दवाओं को भी दे रहे हैं. लिहाजा डॉक्टर ही बेहतर पोजीशन में होंगे यह तय करने के लिए कि किस मरीज को कब इंजेक्शन की जरूरत है या नहीं.
केंद्र सरकार ने अस्पतालों में मौजूद मरीज और उनको दी जा रही इंजेक्शन के बारे में जानकारी कोर्ट के सामने रखी. इस बीच कोर्ट में कुछ मरीजों की तरफ से पेश हो रहे हैं. वकील ने कहा की हालत यह है कि मरीजों को इंजेक्शन मिल नहीं रहा. उसके चलते उनकी हालत खराब होती जा रही है. कोर्ट टिप्पणी करते हुए कहा कि आपको पता होना चाहिए कि इस इंजेक्शन के खिलाफ दिल्ली में नहीं बल्कि देश भर में है. लिहाजा हम कोई ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकते जिससे किसी दूसरे का हक प्रभावित हो रहा हो.
कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आज से महीने भर पहले किसी ने सोचा भी नहीं था कि अचानक ब्लैक फंगस की बीमारी हमारे सामने खड़ी होगी और उसकी दवाई की इतनी बड़ी किल्लत होगी. बस गनीमत यह है कि यह बीमारी संक्रामक नहीं है. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकारें भी इसका उत्पादन बढ़ाने को लेकर लगातार प्रयास कर रही है. वहीं कल इसको इंपोर्ट ड्यूटी से भी छूट दे दी गई है.
हाई कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, "एक ऐसी परेशानी है जिसका सामना हम सब कर रहे हैं. हम सब इस नर्क वाले माहौल में रहने को मजबूर हैं. हम अगर लोगों की मदद करना भी चाहे तब भी नहीं कर पा रहे. कोर्ट ने कहा कि आपके पास जीवन जीने का मौलिक अधिकार है, लेकिन फिर भी हम किसी से यह नहीं कह सकते कि वह दूसरे का हक छीन कर आपको आपका अधिकार दे.
इस बीच केंद्र सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार ने इस बीमारी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली इंजेक्शन के 2 लाख 30 हज़ार वायल 6 देशों से आयात किए हैं जो अगले कुछ हफ्तों में भारत पहुंच जाएंगे. इस बीच चीन से इंजेक्शन को तैयार करने के लिए जरूरी रॉ मैटेरियल भी आयात करने को लेकर बात चल रही है.
इस बीच दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि केंद्र सरकार को इस महामारी को लेकर जैसे प्रयास करने चाहिए थे वो नहीं किये. केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि यहां पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार दिल्ली सरकार के बीच थोड़ी नोकझोंक भी हुई. केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि दिल्ली सरकार हमको ना बताए कि हमको क्या करना है. क्योंकि केंद्र सरकार अपनी तरफ से हर संभव प्रयास कर रही है, लेकिन दिल्ली सरकार को बताना चाहिए कि उसने अब तक क्या किया है.
कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि क्या वह सोमवार तक बता सकते हैं कि इंजेक्शन की उपलब्धता का क्या स्टेटस है और विदेशों से आयात किए गए इंजेक्शन कब तक भारत पहुंच जाएंगे. हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह यह भी बताएं कि आखिर 2,30,000 इंजेक्शन को ही आयात करने का फैसला क्यों किया गया. क्या इतनी ही उपलब्धता थी या उपलब्धता ज़्यादा थी, लेकिन फिर भी इतने ही इंजेक्शन आयात किए गए.
वहीं दिल्ली के अस्पतालों में बेडों की ताजा स्थिति और नए अस्पताल की इमारत तैयार करने के मुद्दे पर दिल्ली हाई कोर्ट सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि द्वारका में बन रहा इंदिरा गांधी अस्पताल अगले तीन महीनों में पूरा कर लिया जाएगा. हालांकि पहले इसको 1 साल में पूरा करने का लक्ष्य था, लेकिन फिलहाल मौजूदा हालात को देखते हुए अब इसको अगस्त तक पूरा कर लिया जाएगा.
कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि दिल्ली में फिलहाल आईसीयू और वेंटिलेटर बेड की क्या स्थिति है. कोर्ट ने कहा कि आज की तारीख में हमको संभावित कोरोना की तीसरी वेव को देखते हुए तैयारी करनी जरूरी है. कोर्ट की टिप्पणी पर दिल्ली सरकार के वकील ने जवाब देने के लिए 2 दिनों की मोहलत मांगी. कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर सोमवार यानी कि 31 मई को सुनवाई करेंगे.
इसके बाद हाइ कोर्ट ने दिल्ली में ऑक्सीजन सप्लाई और ऑक्सीजन टैंकर के मसले पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार से जवाब मांगा. दिल्ली सरकार ने कोर्ट को बताया कि हमने जरूरत के हिसाब से क्रायोजेनिक टैंकर का इंतजाम करना शुरू कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि क्योंकि कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या कम हुई है. इस वजह से हमको यहां पर ढीला नहीं पड़ना है. दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि हमने कोरोना के फेज़ 1 और फेज़ 2 से सीख लेते हुए आगे की तैयारी शुरू कर दी है.
केंद्र सरकार ने कहा कि हम देश भर में तैयारियों को ध्यान रखते हुए कार्रवाई कर रहे हैं. दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि हम 3rd वेव को ध्यान में रखकर अपनी तैयारी कर रहे हैं. दिल्ली सरकार ने 3rd वेव को ध्यान में रखते हुए एक हाई पावर कमेटी का भी गठन कर दिया है.
दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि शुरुआत में ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए कुछ वित्तीय समस्याएं सामने आ रही थी. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कुछ खर्च ऐसे होते हैं जिनको वहन करना जरूरी होता है. कोर्ट ने कहा कि आईआईटी के प्रोफेसर ने कोर्ट को जानकारी दी कि दिल्ली सरकार को 207 से 366 MT तक ऑक्सीजन अपने पास रखने का इंतजाम करना चाहिए. लेकिन मौजूदा स्थिति में सिर्फ 20 से 30 मीट्रिक टन ही दिल्ली सरकार के पास है. इस दौरान कोर्ट में मौजूद एक वरिष्ठ वकील ने कहा अभी वह वक्त है जब ऑक्सीजन की मांग कम है इसी वक्त पर ऑक्सीजन का भंडारण बढ़ाया जा सकता है.
कोर्ट ने कहा कि अगर दिल्ली सरकार ऑक्सीजन प्लांट को बड़ी संख्या में लगा लेती है तो इससे कई सारी दिक्कतें कम हो जाएंगी. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि भले ही अस्पतालों में इन ऑक्सीजन प्लांट की अभी उतनी ज्यादा जरूरत ना हो, लेकिन फिर भी इनको लगाया जाना जरूरी है. जैसे कि भविष्य में कभी जरूरत पड़ने पर उनका इस्तेमाल किया जा सके. कोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा कि इसको लेकर एक टाइमलाइन तैयार की जाए कि कब तक यह सब को मिल सकता है, जिससे कि हम भविष्य में आने वाली दिक्कतों का सामना कर सकें. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ये तैयारी एक तरह से इंश्योरेंस पॉलिसी की तरह है. आप पैसा जमा करते जाते हैं क्योंकि आपको यह नहीं पता कि कब विपत्ति में आपको उसकी जरूरत पड़ जाए.
इस बीच कोर्ट के सलाहकार ने कोर्ट में ऑक्सीजन के ऑडिट की भी बात कही. जिस पर दिल्ली सरकार के वकील ने आपत्ति दर्ज करवाई. दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि हम इन मामलों में सपोर्ट नहीं है. हम अस्पताल में मौजूद एक्सपर्ट्स की जरूरत के हिसाब से उनको ऑक्सिजन मुहैया कराते हैं. दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि हमको ऑक्सीजन ऑडिट से दिक्कत नहीं है, क्योंकि कुछ छुपाने को नहीं है. लेकिन जिस तरह का ऑक्सीजन ऑडिट केंद्र सरकार करवाना चाहती है, वह सही नहीं है. क्योंकि केंद्र सरकार इसके जरिए एक सरकार को कटघरे में खड़ा कर उस पर निशाना साधना चाहती है.
कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार की बात नहीं बल्कि कई विशेषज्ञ भी कह रहे हैं कि इस तरह का ऑडिट होना चाहिए, जिससे कि यह पता चल सके कि आखिर ऑक्सीजन की कमी को दूर कैसे किया जा सकता है. कैसे उसकी बर्बादी को रोका जा सकता है. क्या जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन दिल्ली में सप्लाई की गई, और क्या जो ऑक्सीजन मीटर है वह सही है या नहीं. दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि अगर ऑडिट सही मंशा से किया जा रहा है तो उसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं है.