EAC PM on Bibek Debroy Article: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय के हालिया आर्टिकल पर बढ़ते विवाद के दो दिन बाद EAC-PM की भी प्रतिक्रिया आई है. काउंसिल और सरकार ने आर्टिकल से खुद को अलग करते हुए कहा कि यह उनके निजी विचार हैं. गुरुवार (17 अगस्त) को काउंसिल की तरफ से इस संबंध में एक बयान भी जारी किया गया. इसमें काउंसिल ने कहा कि बिबेक देबरॉय ने जो कहा है वह उनके अपने विचार हैं और इससे काउंसिल का कोई संबंध नहीं.


15 अगस्त को मिंट न्यूजपेपर में 'दियर इज ए केस फोर वी द पीपल टू एंब्रास ए न्यू कॉन्सटीट्यूशन' टाइटल से छपे ओपिनियन पीस में बिबेक देबरॉय ने लिखा, 'अब हमारे वह संविधान नहीं रह गया है जो 1950 में हमें विरासत में मिला था. इसमें संशोधन किया गया है और हमेशा बेहतर के लिए नहीं. हालांकि, 1973 से हमें यही बताया गया कि संविधान की बुनियादी संरचना को बदला नहीं जा सकता है, भले ही संसद के जरिए लोकतंत्र की जो भी चाहता हो; अगर इसके खिलाफ कुछ होगा तो उसकी व्याख्या कोर्ट करेगा. जहां तक ​​मैं इसे समझता हूं, 1973 का फैसला मौजूदा संविधान में संशोधन पर लागू होता है, नए संविधान पर लागू नहीं होता है.' 


बिबेक देबरॉय ने आर्टिकल में और क्या लिखा?
उन्होंने एक स्टडी का हवाला दिया, जिसमें कई देशों के लिखित संविधानों का अध्ययन किया गया और पाया कि उनकी औसत आयु 17 साल रह गई है. यह 2023 है और 1950 के बाद 73 साल हो चुके हैं. बिबेकदेबरॉय ने भारत के संविधान को औपनिवेशक विरासत बताते हुए कहा कि हमारा संविधान गवर्मेंट ऑफ इंडिया के एक्ट 195 पर आधारित है. इसका मतलब है कि यह भी एक औपनिवेशक विरासत है.


बिबेक देबरॉय ने आगे लिखा, 'हम जो भी चर्चा करते हैं वह संविधान से शुरू होती है और संविधान पर ही खत्म होती है. कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा. हमें ड्रॉइंग बोर्ड पर वापस जाकर शुरुआत के सिद्धांतों से शुरू करना चाहिए और पूछना चाहिए कि प्रस्तावना में सामाजिक, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, आजादी और समानता का अब क्या मतलब है. हम लोगों को खुद को एक नया संविधान देना होगा.'


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