राज की बातः कंबख्त शराब भी क्या चीज है. कुछ लोगों के लिए शराब हराम है. तो कुछ बोतल में ही माशूक़ा को पा जाते हैं. याद करिये कि लाकडाउन के बाद जब शराब पर रोक हटी तो चाहे दिल्ली हो या उत्तर प्रदेश या फिर कोई और राज्य शराबों की दुकानों पर लगी लंबी क़तारों ने सारे रिकार्ड् तोड़ दिए. भले ही समाज में शराबी शब्द है तो गाली. मगर शायरी में शराब अलग ही शबाब पर होती है. मसलन..
पीता हूं जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी
साक़ी ने जैसे प्यास मिला दी शराब में..
कुछ ऐसे भी बयां करते हैं कि
शराब-ए-इश्क़ में जाने क्या तासीर होती है
कहीं ये ज़हर होती है कहीं अक्सीर होती है..
बहरहाल, शेरो-शायरी की दुनिया से बाहर निकलकर अगर सपाट लहजे में कहें तो भी शराब सेहत के लिए हानिकारक है. ये सब मानते हैं. ज्यादातर जानते भी हैं. यही कारण है कि सरकार ने शराब की बोतल पर लिखवा दिया है कि शराब पीना सेहत के लिए हानिकारक है. साहब जब हानिकारक है तो फिर बिकने ही क्यों दी जाए? तो जवाब ये है कि सब जानते और मानते हुए भी अकेली चीज ऐसी है कि जो बिना किसी विज्ञापन या प्रचार के भी हर साल पहले से ज्यादा बिकती है. वहीं सरकारें भी बोतल के पैकेट पर चाहे जो लिखा हो वे सभी शराब के ज़रिये आय बढ़ाने के रास्ते खोजती रहती हैं.
शराब का अर्थशास्त्र
राज की बात ये शेरों-शायरी नहीं, बल्कि शराब का वो अर्थशास्त्र है जो व्यक्ति या समाज की सेहत की चिंताओं पर भारी पड़ता है. ख़ास बात है कि इस मामले में दल और विचार की सीमाओं से परे सब एक हैं. चाहे वह नई राजनीति के स्वयंभु पुरोधा अरविंद केजरीवाल हों या फिर महान भगवाधारी परंपरा वाले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. शराब से आय बढ़ाने के साधनों को खोजने के लिए सब साथ-साथ हैं. वहीं बिहार की तरह मध्य प्रदेश में भी शराबबंदी के लिए वहाँ की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने मोर्चा खोल दिया है. वहीं शिवराज सिंह चौहान सरकार के ताकतवर नेता और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र ने लोगों को नक़ली शराब से बचाने के नाम पर ज्यादा शराब की दुकानें खोलने का फ़ैसला कर लिया है.
नैतिकता और संस्कृति पर शराब का अर्थशास्त्र किसकदर भारी है, इसके लिए थोड़ा आगे बढ़ते हैं. दिल्ली सरकार ने पहले राज्य में शराब की दुकानों के ताबड़तोड़ लाइसेंस दिए. अब उसकी तैयारी शराब ख़रीदने की उम्र घटाने पर है. अभी तक 25 वर्ष की कम उम्र से व्यक्ति शराब नहीं ख़रीद सकते, अब उसे घटाकर 21 तक लाने की तैयारी है. यह काम केजरीवाल सरकार पूरे लोकतांत्रिक तरीक़े से जनमत संग्रह के साथ करा रही है. दरअसल, पिछले साल शराब से एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने के उपायों के साथ-साथ सही वितरण और नक़ली शराब से बचाने के उपायों को लेकर एक एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट आई थी.
नई एक्साइज पॉलिसी पर सुझाव
उस एक्सपर्ट कमेटी ने रिटेलिंग से सरकार क दखल कम करने, नक़ली शराब रोकने और सबसे अहम एक्साइज से कमाई के उपायों पर राय दी है. इस नई एक्साइज पॉलिसी को नेट पर डालकर दिल्ली सरकार ने सबके सुझाव माँगे थे, जिसकी अवधि 21 जनवरी तक थी. इसी में उम्र 25 से 21 किए जाने का सुझाव भी है. इस साल दिल्ली सरकार को शराब से एक्साइज ड्यूटी क़रीब छह हज़ार करोड़ रुपये मिल रही है. इसे बढ़ाकर सात हज़ार करोड़ रुपये तक करने का लक्ष्य है.
अब आते हैं देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की तरफ़. हिंदुत्व के प्रखर पुरोधा भगवाधारी योगी आदित्यनाथ के निज़ाम में भी बीयर की दुकानें मॉल में भी खूब खुली. अब शराब से एक्साइज ड्यूटी 21 हज़ार करोड़ रुपये क़रीब कमाने की उम्मीद के साथ नया लक्ष्य 34 हज़ार पांच सौ करोड़ रुपये रखने का लक्ष्य रखा गया है. नई आबकारी नीति में शराब के व्यवसाय को बढ़ाने, नक़ली शराब को रोकने के साथ-साथ राजस्व बढ़ाने का ख़ासा ख्याल रखा गया है. इसमें एक उपाय घर में शराब का रोल ओवर स्टाक बढ़ाने का भी है. यानी यदि पहले आप दो बोतल रख सकते थे तो अब चार रख पाएं.
शराब ही ख़ज़ाने की सेहत के लिए वरदान
शराब पर रोक लगाने के बजाय उससे राजस्व कमाने के उपायों के लिए सरकारें क्यों मजबूर है, ये भी समझ लीजिये. तमाम मुफ्त वाली योजनाएं या कल्याणकारी योजनाओं के लिए सरकारों के पास सबसे आसान तरीक़ा शराब से वसूली बढ़ाने का ही बचा है. यह बहस का विषय हो सकता है कि क्या सरकारों को और तरीक़ा नहीं अपनाना चाहिये, लेकिन अभी तो शराब ही ख़ज़ाने की सेहत के लिए वरदान बनी है. इसे आप इसी बात से समझ सकते हैं कि कोरोना के बाद लाकडाउन हुआ और जब शराब की दुकानें खुलीं तो हफ्ते भर में शराब से कमाई का 40-45 फ़ीसद लक्ष्य पूरा हो गया था.
वैसे एक पहलू और भी है जिसे जानना ज़रूरी है. बिहार में शराबबंदी का नुक़सान ही ज्यादा हो रहा है. ढाई लाख मुकदमें लंबित हो गए हैं. साथ ही एक सर्वेक्षण में आया कि बिहार में शराब की खपत बढ़ी ही है कम नहीं हुई है. ऐसे में ज़ाहिर है कि तस्करी और अवैधानिक तरीक़े निकाले जा रहे हैं. कंफ़डेरेशन आफ इंडियन अलकोहोलिक बीवेरेज कंपनीज के डीजी विनोद गिरी कहते हैं कि हमने बिहार सरकार को एक प्रस्ताव दिया है कि शराब बंदी को धीरे-धीरे हटाया जाए. इससे बिहार में नक़ली शराब की बिक्री और तस्करी भी रुकेगी और राज्य को राजस्व का नुक़सान भी नहीं होगा. बाक़ी प्रशासनिक और आर्थिक क़ीमत जितनी चुकानी पड़ रही है, उसकी भरपाई नामुमकिन है. गिरी ने सुझाव दिया है कि शराब की फैक्ट्री में 50 फ़ीसद औरतों को नौकरी दी जाए और शराब पर महिलाओं के उत्थान के लिए कर बढ़ाया जाए. इससे महिलाओं के भले का उद्देश्य भी पूरा होगा.
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