नई दिल्ली: लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है. इसका सबसे बुरा प्रभाव रोजगार पर पड़ा है. भारतीय अर्थव्यवस्था की निगरानी करने वाली संस्था CMIE के मुताबिक 3 मई को समाप्त हुए सप्ताह में बेरोज़गारी दर का आंकड़ा 27.1% तक पहुंच गया. हालांकि 10 मई को खत्म हुए सप्ताह में इस दर में कमी आई और ये आंकड़ा 21% तक आ गया. क्या इसके लिए लॉकडाउन ही जिम्मेदार हैं ? अगर ऐसा है तो लॉकडाउन के बाद आख़िर क्या हो सरकार की रणनीति ?


लॉकडाउन के संभावित परिणामों को भांपते हुए केंद्र सरकार की ओर से 20 मार्च को केंद्रीय श्रम सचिव हीरालाल सामरिया ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों के साथ साथ सरकारी और निजी क्षेत्र के सभी नियोक्ताओं के लिए एक पत्र लिखा. इस पत्र के माध्यम से एडवाइजरी जारी करते हुए सभी नियोक्ताओं से सहयोग की अपील की गई कि किसी भी कर्मचारी को उनकी नौकरी से न तो बेदखल किया जाए और न ही उनकी तनख़्वाह घटाई जाए. पत्र में ख़ासकर उन कर्मचारियों का ज़िक्र किया गया जो अनौपचारिक ( Casual ) तौर पर या ठेका पर ( Contractual ) काम कर रहे हों । श्रम सचिव ने लिखा कि नौकरी से हटाए जाने का परिणाम कोरोना से लड़ने के हौसले में कमी के तौर पर भी दिख सकता है ।



सरकार की ओर से पीएम गरीब कल्याण योजना की घोषणा के रूप में एक और अहम पहल सामने आई. इस पैकेज का एक अहम हिस्सा था रोज़गार बचाने के लिए छोटी कम्पनियों को दिया गया राहत. 27 मार्च को पैकेज का ऐलान करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार ऐसे सभी कर्मचारियों का ईपीएफ योगदान अपनी तरफ़ से करेगी जिनका मासिक वेतन 15000 रुपए से कम हो और वो ऐसी कम्पनी में काम करते हों जहां 100 से कम कर्मचारी काम करते हों. सीतारमण ने ऐलान किया कि कर्मचारी के साथ साथ नियोक्ता का मिलाकर 24 फ़ीसदी हिस्सा केंद्र सरकार तीन महीने तक जमा करेगी. ज़ाहिर है सरकार की कोशिश सभी छोटी कम्पनियों पर से बोझ कम करना था ताकि वो कर्मचारियों को नौकरियों से न निकालें.


हालांकि कर्मचारियों और मज़दूरों की समस्याएं बढ़ती गईं. इसी के मद्देनज़र केंद्र सरकार ने देशभर में श्रमिकों और कर्मचारियों को आ रही समस्याओं के निपटारे के लिए 20 कंट्रोल रूम के गठन का ऐलान किया. उसके बाद 17 अप्रैल को श्रम मंत्री सन्तोष गंगवार ने सभी राज्यों के श्रम मंत्रियों को पत्र लिखकर अपने यहां एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने को कहा. इस नोडल अधिकारी का मुख्य काम केंद्र सरकार की ओर से गठित किए गए कंट्रोल रूम के साथ समन्वय स्थापित कर श्रमिकों की परेशानियों का निपटारा था.


जानकर मानते हैं कि लॉकडाउन का समय धीरे धीरे खात्मे की ओर है. ऐसे में सरकार को अब सबसे ज़्यादा ध्यान छोटे और मंझोले सेक्टर के उद्योग धंधों में लगाना होगा. आंकड़ों के मुताबिक़ देश में पंजीकृत क़रीब 6.50 लाख छोटी और मंझोली औद्योगिक इकाईयां हैं. इनमें 11 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर रोज़गार देने की क्षमता है. इनमें से ज़्यादातर उद्योग धंधे फ़िलहाल ठप्प पड़े हैं और लॉकडाउन के बाद वापस पटरी पर आने काइंतज़ार कर रहे हैं. जानकारों का मानना है कि इस सेक्टर को प्रोत्साहन की ज़रूरत है. ऐसा माना जा रहा है कि सरकार इस सेक्टर को कुछ प्रोत्साहन यानि स्टिमुलस पैकेज देने पर विचार कर रही है. औद्योगिक संगठन फिक्की ने सरकार से इस सेक्टर के लिए 4 लाख करोड़ रुपए के प्रोत्साहन पैकेज की मांग की है. हालांकि कुछ जानकर सरकार की माली हालत देखते हुए प्रोत्साहन पैकेज देना आसान नहीं मानते हैं.