14 विपक्षी पार्टियों ने केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई और ईडी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. विपक्षी दलों की ओर से कोर्ट में पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि 95% केस विपक्षी नेताओं के खिलाफ हैं. हम गिरफ्तारी से पहले और गिरफ्तारी के बाद के दिशा-निर्देशों की मांग कर रहे हैं.
इसी बीच दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के वकील ने ईडी को सीबीआई का प्रॉक्सी एजेंसी बताया. सिसोदिया के वकील ने कहा कि पहले सीबीआई केस में शुरू से जांच कर एक्शन लेती है और जब उसका काम हो जाता है तो फिर ईडी को भिड़ा देती है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक सुनवाई के दौरान सिसोदिया के वकील ने कोर्ट में कहा कि ईडी के पास केस में नया कुछ नहीं रहता है, लेकिन बेल न मिले इसलिए पीएमएलए का उपयोग करती है. एजेंसी पहले भी कई केसों में ऐसा कर चुकी है.
2019 के बाद से ईडी की सक्रियता पर विपक्षी पार्टियां पहले भी गंभीर आरोप लगा चुकी है. ऐसे में आइए उन 3 केसों के बारे में जानते हैं, जब ईडी की सक्रिय होने से नेता बुरी तरह फंस गए.
1. शिक्षक भर्ती घोटाला, पश्चिम बंगाल-
2016 में पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग ने शिक्षा भर्ती की नियुक्तियां प्रकाशित की और एग्जाम आयोजित कराए. आयोग ने 2017 में इसका रिजल्ट जारी किया. रिजल्ट में कई ऐसे नामों को चयन सूची में शामिल किया गया, जिसका नंबर अन्य उम्मीदवारों की तुलना में कम था.
यह मामला कलकत्ता हाईकोर्ट में जस्टिस अभिजीत गांगुली की एकल बेंच में गया. हाईकोर्ट ने नवंबर 2021 में सरकार की सभी दलीलें खारिज करते हुए सीबीआई जांच के आदेश दिए. हाईकोर्ट के आदेश को राज्य सरकार ने डबल बेंच में चुनौती दी, लेकिन सीबीआई जांच के आदेश से राहत नहीं मिली.
अप्रैल 2022 में सीबीआई ने जांच के दौरान इस मामले में पीएमएलए एक्ट के तहत केस दर्ज कर लिया. पीएमएलए में केस दर्ज होने के बाद शिक्षक भर्ती घोटाले में ईडी की एंट्री हो गई है.
ईडी ने मामले में तृणमूल के कद्दावर नेता पार्थ चटर्जी को पहले 2 राउंड पूछताछ के लिए बुलाया और फिर उन्हें मई 2022 में गिरफ्तार कर लिया. ईडी ने इस मामले में पार्थ की 48.22 करोड़ रुपए की संपत्ति कुर्क कर चुकी है.
इतना ही नहीं, नवंबर 2022 में ईडी ने इस मामले में तत्कालीन बोर्ड अध्यक्ष माणिक भट्टाचार्य को भी गिरफ्तार कर लिया. वर्तमान में पार्थ चटर्जी और माणिक दोनों जेल में बंद हैं.
2. आईएनएक्स मीडिया केस, नई दिल्ली
आरोपों के मुताबिक 2007 में पीटर मुखर्जी और इंद्राणी मुखर्जी की कंपनी आईएनएक्स को तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पद का दुरुपयोग करते हुए निवेश संवर्धन बोर्ड से मंजूरी दिलाई. इससे आईएनएक्स को 350 करोड़ रुपए के विदेश फंड मिला. इस प्रक्रिया में चिदंबरम के बेटे कार्ति की कंपनियों को फायदा मिला.
2010 में ईडी ने इस मामले में फेमा (फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट) के तहत केस दर्ज किया. बाद में ईडी ने इस केस को बंद कर दिया. 2017 में सीबीआई ने विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड मिली मंजूरी के दौरान हुई अनियमितता को लेकर केस दर्ज की.
सीबीआई ने मामले में पी चिदंबरम के बेटे कार्ति मार्च 2018 को गिरफ्तार कर लिया. हालांकि, 23 दिन के भीतर ही कार्ति को जमानत मिल गई. मई 2018 में पी चिदंबरम को भी दिल्ली हाईकोर्ट से राहत मिल गई. हाईकोर्ट से मिली राहत को ईडी ने ज्यादा दिनों तक नहीं रहने दिया.
2018 में ही ईडी ने इस मामले में पीएमएलए के तहत केस दर्ज कर दिया. अक्टूबर 2018 में ईडी कार्ति के भारत, यूरोपियन संघ और स्पेन में मौजूद संपत्तियों को अटैच कर लिया. ईडी का एक्शन जारी रहा और अगस्त 2019 में प्रवर्तन निदेशालय ने कार्ति चिदंबरम को नई दिल्ली का जोर बाग हाउस खाली करने का निर्देश दिया.
सीबीआई और ईडी की संयुक्त कार्रवाई के बीच चिदंबरम ने गिरफ्तारी पर रोक के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट सीबीआई एक्शन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. इसके बाद 20 अगस्त 2019 को सीबीआई ने पी चिदंबरम को गिरफ्तार कर लिया.
सीबीआई की गिरफ्तारी के बाद ईडी ने भी अपने रिमांड मांग ली. ईडी और सीबीआई के संयुक्त एक्शन की वजह से चिदंबरम को 106 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था. इस मामले में चिदंबरम को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी.
3. गौ-तस्करी केस, पश्चिम बंगाल
2015-2017 के बीच पश्चिम बंगाल बॉर्डर के आसपास 20 हजार से अधिक मवेशियों के कटे हुए सिर मिले थे. इसके बाद मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई. सीबीआई ने 2019 और 2020 में राज्य के कई ठिकानों पर छापेमारी की. 2020 में सीबीआई ने गौ-तस्करी केस में बीएसएफ के अधिकारियों को अरेस्ट किया था.
इसी साल सीबीआई ने एनामुल हक नामक एक पशु तस्कर को गिरफ्तार किया था. एनामुल के साथ ही जांच एजेंसी ने बीएसएफ के कमांडेंट सतीश कुमार को भी अरेस्ट किया था.
नवंबर 2020 में सीबीआई एक्शन के बीच इस मामले में वित्तीय लेन-देन की जांच ईडी ने शुरू कर दी. ईडी ने इस मामले में शुरुआत में तृणमल कांग्रेस नेता अभिषेक बनर्जी के करीबी विनय मिश्रा और उनके भाई विकास मिश्रा पर शिकंजा कसा.
जनवरी 2022 में सीबीआई की ओर से गिरफ्तार किए गए एनामुल हक को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दिया. एनामुल को जमानत मिलने के बाद ईडी सक्रिय हो गई और फरवरी 2022 में उसे फिर मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तार कर लिया गया.
ईडी की पूछताछ में केस का तार ममता बनर्जी के करीबी नेता और बीरभूम में तृणमूल के जिलाध्यक्ष अनुब्रत मंडल से जुड़ता गया. एनामुल के बयान को आधार बनाकर अगस्त 2022 में सीबीआई ने अनुब्रत मंडल को गिरफ्तार कर लिया. जांच एजेंसी का कहना था कि मंडल पशु तस्करों को राजनीतिक सुरक्षा देता था.
इधर, नवंबर 2022 में ईडी ने भी अनुब्रत मंडल पर शिकंजा कस दिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया. ईडी ने दिसंबर 2022 में दिल्ली में मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज कर दिया. वर्तमान में अनुब्रत दिल्ली में ईडी की कस्टडी में हैं और उनसे इस मामले में पूछताछ की जा रही है.
सीबीआई से ज्यादा ईडी एक्टिव क्यों, 3 वजह
पिछले 3 सालों से विपक्षी नेताओं को सीबीआई से ज्यादा ईडी का डर सताने लगा है. सीबीआई के कई मामलों में ईडी की एंट्री से मुसिबत और अधिक बढ़ जाती है. आइए जानते हैं क्यों और कैसे सीबीआई से ज्यादा ईडी एक्टिव है...
1. सजा दर अधिक- हाल ही में संसद में एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया कि मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी की सजा दर 96 फीसदी से अधिक है. यह अब तक का रिकॉर्ड भी है. ईडी के मुकाबले सीबीआई की सजा दर काफी कम है.
2021 में लोकसभा एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया था सीबीआई में गए मामलों में सजा दर 70 फीसदी ही है. यानी सीबीआई अगर 100 मामलों की जांच करती है, तो करीब 70 मामले में ही सजा हो पाती है.
अगस्त 2022 में बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने एक रैली में दावा किया था कि बंगाल में सीबीआई के अधिकारियों ने राज्य सरकार से सेटिंग कर लिया है, इसलिए ईडी को भेजा गया है.
2. 9 राज्यों में सीबीआई बैन- सेंट्रल एजेंसी के एक्शन को देखते हुए अब तक 9 राज्यों में सीबीआई की एंट्री पर रोक लगा दी गई है. इनमें छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल का नाम सबसे ऊपर है.
कई राज्यों में बैन से पहले सीबीआई केस रजिस्टर्ड कर चुकी है. ऐसे में उन राज्यों में जांच भी प्रभावित हो रही है. ईडी के मामले में ऐसा नहीं है. ईडी को केस दर्ज कर गिरफ्तारी के लिए परमिशन की भी जरूरत नहीं है. यही वजह है कि सीबीआई के मुकाबले ईडी ज्यादा सक्रिय है.
3. जमानत का खेल- अगर किसी आरोपी को सीबीआई गिरफ्तार करती है तो उसके जमानत के विरोध में जांच एजेंसी को तथ्य रखने पड़ते हैं, कई मामलों में सीबीआई गिरफ्तार आरोपियों की जमानत सर्वोच्च न्यायालयों में नहीं रोक पाई.
वहीं ईडी की गिरफ्तारी में आरोपियों को खुद को बेकसूर साबित करने के लिए तथ्य कोर्ट को देने पड़ते हैं. यानी उसे खुद को मामले में निर्दोष बताने के लिए सबूत देने होते हैं.
ऐसे में आरोपियों को जमानत लेने में काफी वक्त लग जाता है. ईडी चार्जशीट भी जल्दी फाइल कर देती है, जिससे कई बार जमानत का स्कोप ही बंद हो जाता है.
एक खेल सीबीआई और ईडी की संयुक्त गिरफ्तारी में भी होता है. कई बार सीबीआई के गिरफ्तार आरोपी को ईडी भी गिरफ्तार कर लेती है. ऐसे में आरोपित का रिमांड काफी दिनों का हो जाता है. इसी बीच सीबीआई चार्जशीट फाइल कर देती है, जिससे जमानत लेने का आधार ही नहीं बचता है.
अब जाते-जाते जान लीजिए पीएमएलए क्या है?
साल 2002 में मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) को पारित किया गया था. मनी लॉन्ड्रिंग का मतलब है गैर-कानूनी तरीकों से कमाए गए पैसों को लीगल तरीके से कमाए गए धन के रूप में बदलना. 1 जुलाई 2005 में इस अधिनियम को लागू कर दिया गया.
इस एक्ट के अंतर्गत अपराधों की जांच की जिम्मेदारी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की है. इस केस में अगर कोई दोषी पाया जाता है, तो कम से कम 3 वर्ष का कठोर कारावास की सजा का प्रवाधान है, जिसे 7 वर्ष तक भी बढ़ाया जा सकता है.