नई दिल्लीः एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने गुरुवार को कहा कि उसका मानना है कि पत्रकारों को स्वस्थ और सभ्य आलोचना से किसी छूट का दावा नहीं करना चाहिए लेकिन साथ ही उन पर किसी तरह का ठप्पा लगाना उनकी गरिमा कम करने और उन्हें धमकाने के ''पसंदीदा हथकंडे'' के तौर पर सामने आया है. गिल्ड ने एक बयान में कहा, ''हमने देखा कि हमारे नेता इसका कुछ समय से इस्तेमाल कर रहे हैं . हाल फिलहाल में भाजपा के शीर्ष नेताओं के साथ आप के नेताओं ने पत्रकारों के लिए प्रेस्टीच्यूट , खबरों के कारोबारी, बाजारू और दलाल जैसे अपमानजनक शब्दों का स्पष्ट तौर पर इस्तेमाल किया.''

उसने इस सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार लेने वाले पत्रकार की आलोचना के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्दों पर भी चिंता जताई.

गिल्ड की कार्यकारी समिति के सदस्यों के बीच लंबी बैठक के बाद यह बयान जारी किया गया. कुछ सदस्यों ने ऐसे बयान जारी करने का विरोध करते हुए कहा कि गांधी की टिप्पणी अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला या खतरे की तरह नहीं है.


बैठक में ''लगातार गिरावट'' पर चिंता जताते हुए तीन मीडिया संस्थाओं ने गुरुवार को नेताओं से एक-दूसरे और मीडिया की आलोचना के दौरान संयमित रहने का आग्रह किया.

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन वुमेन प्रेस कोर्प और प्रेस एसोसिएशन ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा कि पत्रकारों से निष्पक्षता की उम्मीद की जाती है जबकि वे भी राजनीतिक वर्ग से संयम बरतने की उम्मीद करते हैं खासतौर से तब जब आम चुनाव नजदीक आने के साथ राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो रही हैं.

उन्होंने कहा, ''मीडिया के लिए एक पूर्व केंद्रीय मंत्री द्वारा 'प्रेस्टीट्यूट' और हाल में एक राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष द्वारा 'दब्बू' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना ठीक नहीं है.

तीनों संस्थाओं ने राज्य तथा केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों की आलोचना करने वाले सोशल मीडिया पोस्ट के लिए मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद वांगखेम को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जेल में डालने पर ''गहरी चिंता'' जताई.

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