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धार्मिक मुस्लिम, पूर्व सैनिक..., जानिए इजिप्ट के राष्ट्रपति के बारे में जिन्हें बनाया गया है गणतंत्र दिवस समारोह का मुख्य अतिथि

भारत के गणतंत्र दिवस के मौके पर पहली बार पिरामिडों के देश से खास मेहमान आएंगे. ये सेना से सत्ता तक पहुंचे हैं. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप इन्हें अपना सबसे पसंदीदा तानाशाह कहते हैं.

गणतंत्र दिवस के मौके पर हमेशा से भारत दुनिया के मित्र राष्ट्र के नेताओं को चीफ गेस्ट के तौर पर बुलाता रहा है. इस अहम मौके के लिए इस बार मिस्र (इजिप्ट) के राष्ट्रपति अब्दल फतेह अल-सीसी को न्यौता भेजा गया है. भारत के विदेश मंत्रालय की तरफ से रविवार 27 नवंबर को ही सीसी के गणतंत्र दिवस समारोह 2023 के मुख्य अतिथि होने का ऐलान किया गया. ये पहली बार है जब मिस्र से किसी को खास मेहमान के तौर पर बुलाया जा रहा है. अल-सीसी गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के तौर पर अध्यक्षता करने वाले मिस्र के पहले नेता होंगे. कोराना महामारी की वजह से बीते दो साल ये समारोह बगैर मुख्य अतिथि के मनाए गए. इस बार समारोह के मेहमान बनकर आ रहे अल सीसी देश के लिए भी खास है. 

भारत -मिस्र की राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ

साल 1950 से गणतंत्र दिवस समारोह की शोभा अब-तक मित्र राष्ट्र के नेता बढ़ाते आ रहे हैं. सबसे पहले इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया था. साल 2021 में, यूके में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों ने तत्कालीन प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन को भारत का दौरा करने से रोक दिया. वहीं  2022 में भारत में बढ़ते कोविड मामलों की वजह से 5 मध्य एशियाई गणराज्यों के नेताओं ने इस समारोह के लिए अपनी यात्रा रद्द कर दी थी.

अब पूरे 2 साल बाद मिस्र के राष्ट्रपति अब्दल फतेह समारोह की शोभा बढ़ाने आ रहे हैं.  अल-सीसी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से औपचारिक न्यौता 16 अक्टूबर को विदेश मंत्री एस जयशंकर के हाथ पहले ही भेजा जा चुका है. गणतंत्र दिवस समारोह 2023 में सीसी का शामिल होना इसलिए भी अहम है कि दोनों देश इस साल राजनयिक संबंधों की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. मिस्र की भौगोलिक स्थिति भी इसे एशिया महाद्वीप में अहम बनाती है. दरअसल मिस्र पूर्वोत्तर एशिया और पश्चिम एशिया के बीच महत्वपूर्ण कड़ी है.

दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सीसी 2016 में भी मुलाकात कर चुके है. उस वक्त दोनों नेताओं ने आतंकवाद और कट्टरपंथ दोनों चुनौतियों से असरदार तरीके से निपटने के लिए आपस में रक्षा और सुरक्षा सहयोग बड़े पैमाने पर बढ़ाने का फैसला लिया था. दोनों ही देश आतंकवाद की समस्या से जूझ रहे हैं. इस वजह से भी सीसी का भारत में इस महत्वपूर्ण मौके पर आना बहुत मायने रखता है. दुनिया में अल-सीसी की पहचान एक राजनेता से अधिक एक सैन्य जनरल के तौर पर अधिक होती है. इसकी वजह है इनका सेना के जरिए सत्ता पर काबिज होना.

कौन है अब्दल फतह अल-सीसी?

किसने सोचा होगा कि काहिरा के अल-गमलेया इलाके में 1954 में जन्में अब्दल फतह अल-सीसी कभी मिस्र की कमान संभालेंगे, लेकिन ऐसा हुआ और गमलेया के फर्नीचर, सीप और लकड़ी के सजावटी गहने बनाने वाले कारोबारी हसन का ये बेटा मिस्र की सत्ता के शिखर पर जा पहुंचा.  शख्सियत न्यूज़ वीक पत्रिका और डेली बीस्ट वेबसाइट के मध्य पूर्व संवाददाता माइक गिग्लियो के मुताबिक अल- सीसी का खानदान बेहद धार्मिक और वतनपरस्त रहा है.

माना जाता है कि काहिरा के पुराने शहर के यहूदी क्वार्टर के किनारे मौजूद एक गली में पले-बढ़े अल-सीसी को कुरान मुंह जुबानी याद है. कम पैसे से जिंदगी का सफर करने वाले मिस्र के मौजूदा राष्ट्रपति अल-सीसी पढ़ाई में तेज होने के साथ ही महत्वाकांक्षी थे. यही महत्वकांक्षा उन्हें पढ़ाई के लिए मिस्र की सैन्य अकादमी में खींच लाई.

बाद में 1992 में यूके ज्वाइंट सर्विसेज कमांड एंड स्टाफ कॉलेज में उन्होंने अपनी सेना की ट्रेनिंग जारी रखी. उनकी सैन्य जीवन को समझने की चाह यहीं नहीं खत्म हुई. इसके बाद उन्होंने 2006 में पेंसिल्वेनिया में यूएस आर्मी वॉर कॉलेज से मास्टर डिग्री ली. इस कॉलेज में उनकी टीचर शरीफ ज़ुहर उन्हें ‘ तेज दिमाग वाले शार्गिद के तौर पर याद करती हैं जो हमेशा विचारों में खोए रहते थे.

कॉलेज के दिनों में लिखा रिसर्च पेपर

इतना ही नहीं अलसीसी ने कॉलेज के दिनों में ही ‘मध्य पूर्व में लोकतंत्र’ रिसर्च पेपर लिख डाला था. इसमें उन्होंने साफ किया कि लोकतंत्र में मजहबी व्यवहार का होना जरूरी है. उन्हें सरकारों के धर्मनिरपेक्ष शासन से भी एतराज रहा. सीसी ने रिसर्च पेपर में कहा कि सरकारों के धर्मनिरपेक्ष शासन से आबादी का बड़ा भाग हाशिए में हो जाता है. सेना को समझने की उनकी मेहनत रंग लाई और वो वक्त के साथ सेना के उच्च पदों पर पहुंचे.

वो मिस्र में मिलिट्री इंटेलिजेंस के चीफ के पद तक पहुंचे.इसके बाद उन्होंने देश के रक्षा मंत्री की जिम्मेदारियां भी निभाईं. काहिरा की अमेरिकन यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग के प्रमुख खालिद फहमी के मुताबिक अब्दल फतह अल-सीसी भी वर्दी के इस्तेमाल के आकर्षण से बच नहीं पाए. मिस्र के सरकारी टीवी में पूर्व राष्ट्रपति मोर्सी को पद से हटने के वीडियो में अल सीसी ही छाए रहे थे. उस वक्त उन्हें देश की जनता ने एक सजीले सैन्य नौजवान की तरह लिया था.

सेना से सत्ता की डगर का आगाज

बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तत्कालीन जनरल अल-सीसी 2011 में उस वक्त मशहूर हुए जब उन्हें सशस्त्र बलों की सर्वोच्च परिषद (स्कैफ़) का सदस्य बनाया गया. राष्ट्रपति हुस्‍नी मुबारक को सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद मिस्र की बागडोर सेना के हाथ में ही आई थी.  तब मिस्र के युवाओं ने ट्यूनीशिया की बगावत की तर्ज पर राष्ट्रपति हुस्‍नी मुबारक के खिलाफ विद्रोह को अंजाम दिया था. सोशल मीडिया के जरिए लोगों ने आम लोगों को एकजुट किया और इससे मिस्र में जमकर विरोध प्रदर्शन हुए.

बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी देश की राजधानी काहिरा के सेंट्रल तहरीर स्‍क्‍वायर पर 18 दिनों तक डटे रहे. आखिरकार सेना भी हुस्‍नी के खिलाफ हो गई और 11 फरवरी 2011 को उन्हें पद से हटा दिया गया. यह 2011 के अरब वसंत विरोध के दौरान था. इस दौर में दशकों तक सत्ता पर काबिज रहने के बाद उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया के देशों में कई शासकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. मुबारक ने 1981 से लेकर 2011 तक मिस्र पर शासन किया था. 

मोर्सी को किया बेदखल

एक प्रभावशाली सुन्नी इस्लामवादी आंदोलन मुस्लिम ब्रदरहुड के एक अहम शख्स मोहम्मद मोर्सी जून 2012 में मिस्र के पहले लोकतांत्रिक तौर से निर्वाचित 5वें राष्ट्रपति बने. इसके दो महीने बाद ही उन्होंने जनरल अल-सीसी को रक्षा मंत्री और सेना के  कमांडर-इन-चीफ का पद सौंपा. देश में पूर्व राष्ट्रपति हुस्‍नी मुबारक के वक्त शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों ने एक साल बाद ही एक बार फिर आग पकड़ ली.

अल-सीसी ने मोर्सी को "लोगों की इच्छा" को मानने का अल्टीमेटम दिया. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर वो ऐसा नहीं करेंगे तो सेना सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ले लेगी. आखिरकार जुलाई 2013 में मोर्सी की सरकार का तख्तापलट कर दिया गया. इसके बाद उनके मोर्सी और ब्रदरहुड समर्थकों पर हिंसक कार्रवाई हुई. देश में तब मुस्लिम ब्रदरहुड समर्थकों में अल-सीसी के लिए नफरत बढ़ गई थी.

मुस्लिम ब्रदरहुड के सदस्य और यूनिवर्सिटी लेक्चरर महमूद खलीफा के साल 2013 के एक बयान के मुताबिक, जनरल अल-सीसी की नियुक्ति के वक्त ये आम राय थी कि “जनरल सीसी एक मजहबी शख्स हैं. लेकिन ऐसा नहीं था, उनकी मजहबी होने की बातें केवल खुद को फायदा पहुंचाने की एक चाल थी” इसके बाद अल-सिसी ने 2014 में चुनाव लड़ने के लिए सेना से इस्तीफा दे दिया और जीत गए. तब उन्होंने कहा कि वह मिस्र में वर्षों की राजनीतिक अस्थिरता के बाद सबसे पहले आर्थिक विकास की दिशा में काम करेंगे.

मिस्र अल-सीसी की छांव में

मौजूदा वक्त में मिस्र के पर्यटन उद्योग महामारी के गंभीर सदमों और असर से जूझ रहा है. एपी के मुताबिक, यूक्रेन में युद्ध ने दुनिया के सबसे बड़े गेहूं आयातक के लिए मुद्रास्फीति में और बढ़ोतरी की है. यहां 80 फीसदी गेहूं युद्धग्रस्त काला सागर क्षेत्र से आता है. प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग और विपक्षी आवाजों को कुचलने की वजह से अल-सीसी सरकार की मानवाधिकार संगठनों ने जमकर आलोचना की है. 

जबकि सरकार ने  दावा किया है कि देश को चरमपंथी ताकतों से बचाने के लिए ऐसा किया गया है. द वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक 2019 में, अल-सीसी के साथ बैठक का इंतजार करते हुए  तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने कहा था,"मेरा पसंदीदा तानाशाह कहां है?" हालांकि व्हाइट हाउस ने ट्रंप की इस बयान पर कुछ कहने से इंकार कर दिया था. इस सबके बाद भी अल-सीसी 2018 में फिर से चुने गए थे. वो 2024 में फिर से चुनाव लड़ सकते हैं. इस देश में हाल में हुए संविधान संशोधनों के जरिए उन्हें 2030 तक बने पद पर बने रहने की मंजूरी दी जा सकती है. 

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