मुंबई: अगर 2019 में उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने के लिये मंजूरी न देते तो आज शायद उस कुर्सी पर एकनाथ शिंदे होते. महाराष्ट्र की सियासत में एकनाथ शिंदे को ठाकरे परिवार के बाहर सबसे प्रभावशाली शिव सैनिक के तौर पर देखा जाता है.


यही वजह है कि जब बीते शनिवार को नारायण राणे ने एक जनसभा में कहा कि शिंदे शिव सेना से ऊब गये हैं, उनकी हैसीयत सिर्फ फाईलों पर दस्तखत करने की ही रह गई है और जल्द ही उन्हें बीजेपी से जोड़ा जायेगा तो सियासी गलियारों में खलबली मच गई. इस बात की चर्चा छिड़ गयी कि क्या शिव सेना में बगावत होने वाली है और इस बगावत की अगुवाई एकनाथ शिंदे करेंगे?


40 दिन जेल में भी रहना पड़ा


57 साल के शिंदे महाराष्ट्र के नगरविकास मंत्री हैं. 1980 के दशक में एक शाखा प्रमुख के तौर पर शिव सेना से जुड़ने वाले शिंदे ठाणे की कोपरी-पांचपखाडी सीट से 4 बार विधायक चुने जा चुके हैं. अपने सियासी करियर में उन्होने शिव सेना के साथ कई आक्रमक आंदोलनों में हिस्सा लिया जिनमें महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा आंदोलन के दौरान उन्हें 40 दिन जेल में भी रहना पड़ा. उनकी इमेज एक कट्टर और वफादार शिव सैनिक की रही है.


एक वक्त में पार्टी के भीतर जो रूतबा नारायण राणे का हुआ करता था वही रूतबा आज शिंदे का है. राणे के साथ तुलना शिंदे की ताकत भी है और उनकी कमजोरी भी. राणे जब शिव सेना में थे तब उनकी छवि एक दबंग और प्रभावशाली नेता की थी, लेकिन जुलाई 2005 में उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत करने की वजह से उन्हें पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया.


शिंदे मुख्यमंत्री बनते बनते रह गये


साल 2019 में जब शिव सेना ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ा और कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाना तय किया तब फैसला हुआ कि मुख्यमंत्री तीनों में सबसे ज्यादा विधायकों वाली पार्टी शिव सेना से होगा. सवाल ये खड़ा हुआ कि शिव सेना से मुख्यमंत्री कौन होगा? उद्धव ने चुनाव नतीजे आने के बाद विधानसभा में विधायक दल का नेता एकनाथ शिंदे को बना दिया. उस वक्त सभी को ये लगा कि शिंदे ही मुख्यमंत्री बनाये जाएंगे. लेकिन शरद पवार और सोनिया गांधी चाहते थे कि उद्धव ही सीएम बनें. उद्धव पर अपने परिवार से भी सीएम पद स्वीकार करने के लिये दबाव था. ऐसे में शिंदे मुख्यमंत्री बनते बनते रह गये.


अक्टूबर 2019 में जब महाराष्ट्र सरकार बनने से पहले सियासी ड्रामा चल रहा था तब शिंदे के करीबी सूत्र बताते हैं कि बीजेपी की ओर से उनको संपर्क किया गया था कि अपने करीबी विधायकों के साथ बीजेपी की सरकार का समर्थन करें. बीजेपी ये बात जानती है कि शिंदे का शिव सेना विधायकों की एक बड़ी संख्या पर प्रभाव है. शिंदे के बारे में कहा जाता है कि उनके पास बाहुबल भी है और पार्टी का कोषागार भरने का कौशल भी. पर उस वक्त शिंदे ने बीजेपी की ओर से आ रहे संकेतों को गंभीरता से नहीं लिया.


आदित्य ठाकरे के करीबी लोगों का दखल बढ़ा है


नारायण राणे ने अपने हालिया भाषण में शिंदे को लेकर जो बातें कहीं हैं वो सियासी गलियारों में पूरी तरह से निराधार नहीं मानी जा रही. जिस तरह से सरकार और पार्टी में उद्धव ठाकरे के बेटे और मंत्री आदित्य ठाकरे के करीबी लोगों का दखल बढ़ा है, उससे शिंदे जैसे पुराने नेता सकारात्मक तौर पर नहीं ले रहे. कहीं न कहीं उनकी अप्रसन्नता जाहिर हुई है जिसको भुनाने की कोशिश नारायण राणे ने की. हालांकि, एकनाथ शिंदे ने नारायण राणे की ओर से कही गई बातों को खारिज कर दिया है और कहा कि वे पार्टी से संतुष्ट हैं.


शिव सेना की ओर से राणे के बयान को शिव सेना में फूट डालने और महाविकास आघाडी सरकार में उलझन पैदा करने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है पर राजनीति में अक्सर जो बाहरी तौर पर दिखता है वो होता नहीं, विशेषकर महाराष्ट्र की राजनीति ने 2019 में जो हाई-ड्रामा देखा है उसके बाद कहा नहीं जा सकता कि ऊंट कब किस करवट बैठेगा.


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