Shinde Vs Thackeray: 19 जून 1966 को बाला साहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) ने शिवसेना का गठन किया था. पिता की बनाई 57 साल पुरानी पार्टी का चुनाव चिन्ह ठाकरे परिवार के हाथ से निकल गया. भारतीय चुनाव आयोग के फैसले में यह तय हुआ कि ठाकरे गुट के बजाय शिंदे गुट के पास आधिकारिक नाम शिवसेना और पार्टी का चुनाव चिह्न ‘धनुष और तीर’ रहेगा. इससे ठाकरे गुट को बड़ा झटका लगा है. इससे पहले भी कई ऐसे राजनीतिक दल हैं जिन्होंने अलग होने के बाद वास्तविक चुनवी चिह्न की मांग की है.
चुनाव आयोग ने बताया कि उसने शिंदे गुट के पक्ष में फैसला विधानसभा में कुल 67 विधायकों में से 40 एमएलए का समर्थन उनके पास होने के कारण दिया है. वहीं संसद में भी शिंदे गुट के पास ज्यादा सांसद हैं. आयोग ने कहा कि 13 सांसद शिंदे गुट के साथ हैं, तो वहीं 7 उद्धव ठाकरे के साथ. यही कारण है कि शिंदे गुट को वास्तविक चुनवी चिह्न दिया गया है और ठाकरे गुट से 6 दशक पुराना चिह्न वापस ले लिया गया.
पहले भी सामने आए हैं ऐसे मामले
1969- 1969 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में विभाजन हुआ था. इसके बाद दो दल कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आई) का गठन हुआ था. इसके बाद 1978 में कांग्रेस एक बार फिर विभाजित हुई जब कांग्रेस (इंदिरा) और कांग्रेस (उर्स) बनाई गई.
1980- इसके बाद 1980 में तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक दो गुटों में विभाजित हो गई. इसके बाद जनता दल में भी इसी तरह का विभाजन देखा गया और जेडीयू और जेडीएस अलग हो गए.
2012- इसके बाद साल 2012 में उत्तराखंड आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने वाला क्रांति दल दो गुटों में बंट गया था. इसके बाद उत्तर प्रदेश में साल 2017 में समाजवादी पार्टी विभाजित हो गईं.
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