Shiv Sena Symbol for Andheri East Bypoll: मुंबई के सियासी मैदान में इस बार मशाल बनाम ढाल-तलवार की जंग होगी. अगले महीने होने जा रहे अंधेरी ईस्ट विधानसभा पर होने वाले उपचुनाव को लेकर इलेक्शन कमीशन ने ठाकरे गुट की शिव सेना को बतौर चुनाव चिह्न मशाल दिया है, जबकि शिंदे गुट की शिव सेना को ढाल-तलवार सिंबल मिला है. सालों से पार्टी का चुनाव चिह्न रहे धनुष बाण को आयोग ने फ्रीज कर दिया है.


किसी भी राजनीतिक दल की पहचान उसका नाम और चुनाव चिह्न होता है. इस साल जून तक शिव सेना का सिंबल धनुष बाण था, लेकिन पार्टी में बगावत के बाद शिव सेना दो गुटों में बंट गई. एक गुट एकनाथ शिंदे का बना तो दूसरा गुट उद्धव ठाकरे का. दोनों ही गुट अपने आप को असली शिव सेना बता रहे हैं. असली शिव सेना किसकी है, इसका फैसला चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट को करना है. इस बीच मुंबई के अंधेरी ईस्ट विधानसभा सीट पर उपचुनाव घोषित हो गए. बता दें कि साल 2019 के विधानसभा चुनाव में शिव सेना ने 56 सीटों पर जीत हासिल की थी. 


क्यों हो रहे उपचुनाव?


अंधेरी ईस्ट से विधायक रमेश लटके की इस साल दुबई में हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. यह उपचुनाव ठाकरे गुट और शिंदे गुट की पहली अग्नि परीक्षा है. तीन नवंबर को मतदान होगा और 6 नवंबर को वोटों की गिनती होगी. चुनाव आयोग ने ठाकरे गुट को 'शिवसेना, उद्धव बालासाहेब ठाकरे' नाम दिया है. उद्धव गुट को मशाल बतौर चुनाव चिह्न मिलना एक तरह से इतिहास को दोहराने जैसा है. इससे पहले भी शिव सेना मशाल सिंबल पर चुनाव लड़ चुकी है. साल 1985 में मजगांव विधानसभा सीट से छगन भुजबल ने मशाल चिह्न के साथ चुनाव लड़ा था. 


शिंदे गुट ने यह चुनाव चिह्न मांगा था


शिंदे गुट ने चुनाव चिह्न के लिए त्रिशूल पसंद किया था लेकिन नियमों के मुताबिक धर्म से जुड़े किसी प्रतीक को बतौर चुनाव चिह्न इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इससे पहले त्रिशूल के अलावा गदा का भी विकल्प चुनाव आयोग के सामने रखा था लेकिन इसे भी धार्मिक प्रतीक बताते हुए आयोग ने खारिज कर दिया. इसके बाद इलेक्शन कमीशन ने शिंदे गुट को मंगलवार (11 अक्टूबर) सुबह 8 बजे तक का समय देते हुए तीन विकल्प पेश करने के लिए कहा था. फिर शिंदे गुट ने के विकल्प ढाल-तलवार को चुनाव आयोग ने मान लिया. ढाल तलवार चुनाव चिह्न पर सत्तर के दशक में शिव सेना के उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे थे.


शिंदे गुट का दावा है कि बालासाहेब ठाकरे के विचारों के असली वारिस वो हैं क्योंकि उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने के लिए हिंदुत्व की विचारधारा के साथ समझौता कर लिया था. ऐसे में शिंदे गुट ने अपनी पार्टी का नाम चुना– 'बालासाहेब की शिव सेना' जिसे कि चुनाव आयोग ने मंजूर कर लिया.


वैसे दोनो ही गुटों के नाम और चुनाव चिह्न अस्थायी हैं. अंधेरी उपचुनाव के बाद और बीएमसी इलेक्शन से पहले मुमकिन है कि दोनों के नाम और चुनाव चिह्न फिर से बदल दिए जाए. वैसे यह भी संभावना है कि तब तक तय हो जाए कि असली शिव सेना किसकी है. जो भी असली शिवसेना होगा उसे धनुष-बाण वाला पुराना चुनाव चिह्न मिल जाएगा.


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