नई दिल्ली: लोकसभा और विधानसभा चुनाव पर जारी राजनीतिक बहसों के बीच चुनाव आयोग ने कहा है कि ये करा पाना संभव नहीं है. मुख्य चुनाव आयुक्त ओम प्रकाश रावत से जब पूछा गया कि क्या लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना संभव है तो उन्होंने कहा, 'कोई संभावना नहीं.' साथ ही उन्होंने कहा कि दोनों चुनाव एक साथ कराने के लिए कानूनी ढांचा तैयार किए जाने की जरूरत है.


रावत ने कहा कि सांसदों को कानून बनाने के लिए कम से कम एक वर्ष लगेंगे. इस प्रक्रिया में समय लगता है. जैसे ही संविधान में संशोधन के लिए विधेयक तैयार होगा, हम (चुनाव आयोग) समझ जाएंगे कि चीजें अब आगे बढ़ रही हैं.


पिछले दिनों एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए जाने के मुद्दे पर नए सिरे से बहस शुरू हो गई थी. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अध्यक्ष अमित शाह ने कानून मंत्रालय को पत्र लिखकर इसका समर्थन किया था. ऐसी खबर आई थी की बीजेपी एक साथ 11 राज्यों और लोकसभा का चुनाव कराए जाने के पक्ष में है. हालांकि बाद में पार्टी ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था. वहीं कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस्तीफा देकर चुनाव कराने की मांग की थी. ज्यादातर विपक्षी पार्टियां एक साथ चुनाव कराए जाने का विरोध करती रही है.


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हाल के दिनों में ऐसी अटकलें थीं कि इस साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में निर्धारित विधानसभा चुनावों को टाला जा सकता है और उन्हें अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनावों के साथ कराया जा सकता है. मिजोरम विधानसभा का कार्यकाल 15 दिसंबर को समाप्त हो रहा है जबकि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभाओं का कार्यकाल क्रमश: पांच जनवरी, सात जनवरी और 20 जनवरी, 2019 को पूरा होगा.


ईवीएम मशीनों की ‘‘नाकामी’’ की शिकायतों से जुड़े एक प्रश्न पर रावत ने अफसोस जताया कि भारत के कई हिस्सों में ईवीएम प्रणाली के बारे में व्यापक समझ नहीं है. उन्होंने कहा कि नाकामी की दर 0.5 से 0.6 प्रतिशत है और मशीनों की विफलता की ऐसी दर स्वीकार्य है.


उन्होंने कहा कि मेघालय विधानसभा उपचुनाव में वीवीपीएटी के खराब होने की शिकायतें आयीं लेकिन उनसे बचा जा सकता था, अगर अधिकारियों ने उच्च नमी कागज का इस्तेमाल किया होता. यह ध्यान रखना था कि राज्य में काफी बारिश होती है.


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रावत ने कहा, " क्या आप जानते हैं कि चेरापूंजी में सबसे ज्यादा वर्षा होती है, उसी राज्य में है." एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि चुनावों में नोटा विकल्प का प्रतिशत आमतौर पर 1.2 से 1.4 प्रतिशत के बीच होता है. एक अन्य सवाल के जवाब में रावत ने कहा कि चुनाव आयोग को पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त है और यह देखा जा सकता है कि पिछले साल गुजरात में राज्यसभा चुनाव के दौरान चुनाव अधिकारी राजनीतिक दबाव में नहीं झुके.