आजकल लोगों को एक चिट्ठी मिल रही है, जिसमें लिखा होता है कि आपकी कार की चुनाव ड्यूटी लगा दी गयी है. इसे दुरुस्त हालत में फलानी तारीख को फलानी जगह लेकर पहुंच जाएं. आपकी गाड़ी का इस्तेमाल चुनाव ड्यूटी के लिए किया जाएगा. चिट्ठी मिलते ही प्राइवेट पर्सन के हाथ-पांव फूल जाते हैं. किश्तों में गाड़ी ली अब चुनाव में चलेगी क्या होगा? सरकारी काम है पता नहीं क्या करेंगे?
दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में ये चिट्ठी पहुंची है. ऐसी चिट्ठियां नोएडा और गाजियाबाद में 1000 से ज्यादा लोगों को मिली हैं. ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट ने गाड़ियों को आइडेंटिफाई किया है और फिर जिला प्रशासन ने डिमांड लेटर भेजा है. फॉलोअप का काम लोकल पुलिस के जिम्मे है. चिट्ठी के बाद पुलिस का फोन खड़कते ही गाड़ी मालिक की धड़कन बढ़ जाती है. डीएम की इस चिट्ठी में क्या आदेश दिया जाता है अब जरा वो जानिए.
- रीप्रजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट की धारा 160 के तहत प्राइवेट गाड़ियों को निर्वाचन आयोग कब्जे में ले रहा है. गाड़ी को दी गई तारीख पर पुलिस लाइन्स में जमा करवाना होगा.
- गाड़ी की मरम्मत अपने खर्चे पर करवा कर दुरुस्त हालत में लाएं
- गाड़ी में पेट्रोल और डीजल इस्तेमाल करने वाला विभाग या व्यक्ति भरवाएगा.
- मालिक को गाड़ी के हिसाब से हर दिन का भाड़ा मिलेगा.
- गाड़ी के साथ तिरपाल की भी व्यवस्था मालिक करेगा.
ये तो बात हुई चिट्ठी की, लेकिन लोगों के दिमाग में कई सवाल हैं. क्या निर्वाचन आयोग प्राइवेट व्हीकल को यूं चुनाव के लिए इस्तेमाल कर सकता है? चुनाव ड्यूटी के लिए गाड़ी देना मजबूरी है या फिर इससे इनकार भी किया जा सकता है? और अगर कोई गाड़ी न जमा कराए तो क्या होगा? सवालों के जवाब के लिए हमारी टीम ने गाजियाबाद के संभागीय परिवहन अधिकारी केडी सिंह गौड़ से मिली. ये वही अधिकारी हैं जो अपने इलाके में चुनाव के दौरान परिवहन की व्यवस्था को देखते हैं.
केडी सिंह गौड़ ने बताया कि अधिनियम में स्पष्ट उल्लेख है कि कोई भी वाहन जो सड़क पर चल रहा हो, चाहे वह मोटर चालित हो या न हो यानी वाहन, जहाज, जानवर तांगा, जो मूवमेंट कर सकता हो, उसे लिया जा सकता है जरूरत पड़ने पर. व्यवहारिक तौर पर पहले किया यह जाता है कि हम टैक्सी परमिट या व्यवसायिक रूप में परमिट वाहनों को ही लेते हैं और उनसे काम चल जाता है, लेकिन अगर जरूरत पड़े तो निजी वाहन भी ले सकते हैं.
संभागीय अधिकारी से बात करने पर पता चला कि जरूरत पड़ने पर चुनाव आयोद प्राइवेट गाड़ियों को भी चुनाव ड्यूटी में लगा सकता है. अब उस कानून को भी जान लेते हैं जिसके तहत ये ऑर्डर निर्वाचन आयोग जारी कर रहा है. रिप्रजंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट की धारा 160 में साफ कहा गया है कि इलेक्शन कमीशन चुनाव के लिए किसी भी जगह और प्राइवेट वाहन की मांग कर सकता है. मतपेटियों को लाने ले जाने, पुलिस की सवारी या किसी अन्य ड्यूटी में इस्तेमाल के लिए वाहन, जहाज या जानवर को लिखित आदेश देकर अपने कब्जे में ले सकता है. इसके लिए एक महीने के अंदर सरकार को ई-पेमेंट के जरिए किराया भुगतान करना होगा.
अब सवाल ये बचता है कि अगर कोई आदमी अपनी प्राइवेट गाड़ी,जगह,जानवर और जहाज देने से इनकार करे या न दे पाए तो उसका क्या होगा? इस पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील श्वेता कपूर से बात की. उन्होंने भी कहा कि इसे लेकर प्रावधान है और अगर कोई इसके लिए मना नहीं कर सकता. अगर कोई वाहन देने से इनकार करता है तो एक साल की सजा का प्रावधान है. हालांकि, कोई जैनुअन रीजन हो तो वह इसका हवाला दे सकते हैं, लेकिन इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं है.
फर्ज कीजिए घर में एक ही गाड़ी है. कोई इमरजेंसी है या कोई और जरूरी काम है. कई वजह हो सकती हैं. सरकारी ऑर्डर के बाद अगर कोई आदमी अपनी प्राइवेट गाड़ी चुनाव ड्यूटी में नहीं देना चाहता तो क्या करना होगा. इस सवाल के जवाब में पूर्व चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने बताया कि ज्यादातर हम पैसेंजर व्हीकल या सामान्य सिक्योरिटी फोर्सेज के व्हीकल लेते हैं और सुनिश्चित यह किया जाता है कि उसका किराया समय से दिया जाए ताकि जिसकी गाड़ी ली गई है उसको कोई नुकसान न हो. इमरजेंसी व्हीकल्स जैसे एंबुलेंस को एक्वायर नहीं करते हैं. प्राइवेट गाड़ी देने से माना करने के लिए कोई अधिकारी तो नहीं दिया गया, लेकिन अगर वह अपनी व्यक्तगित जरूरत साबित कर सकता है कि इमरजेंसी बहुत ज्यादा है तो कुछ हो सकता है.
अब ये बात क्लियर है कि जरूरत पड़ने पर चुनाव आयोग प्राइवेट गाड़ी की चुनावी ड्यूटी लगा सकता है. हांलाकि अगर वजह जेनुइन हो तो बचाव के तरीके भी है. सरकार गाड़ी के बदले किराया देती है. वैसे ये बात भी सामने आई कि कॉमर्शियल गाड़ी खत्म होने पर ही प्राइवेट गाड़ी की ओर हाथ बढ़ाना चाहिए.
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