Election Commission On Freebiees: केंद्रीय निर्वाचन आयोग (Central Election Commission) ने देशभर में चुनाव से पहले फ्री योजनाओं को लेकर किए जाने वाले वादों पर मंगलवार (4 अक्टूबर) को सभी राजनीतिक दलों (Political Parties) को चिट्ठी लिखी. आयोग ने 'रेवड़ी कल्चर' पर सख्ती दिखाते हुए चुनावी वादों की वजह से वित्तीय व्यवहार्यता (Financial Practicability) के बारे में मतदाताओं को प्रामाणिक जानकारी देने को भी कहा. निर्वाचन आयोग ने कहा कि वह चुनावी वादों की पूरी जानकारी ना देने और उसके वित्तीय स्थिरता पर पड़ने वाले अवांछनीय प्रभाव की अनदेखी नहीं कर सकता है.
चुनाव आयोग ने 19 अक्टूबर तक मांगा जवाब
चुनाव आयोग के मुताबिक, खोखले चुनावी वादों के दूरगामी प्रभाव होते हैं. निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को लिखी अपनी चिट्ठी में सभी वादों को डिटेल में बताने का प्रस्ताव दिया. साथ ही उसके तमाम फायदे और आर्थिक पक्ष का ब्योरा देने को भी कहा. आयोग ने सभी दलों से 19 अक्टूबर तक अपनी राय भेजने के लिए कहा है.
सुधार के प्रस्ताव के जरिये, निर्वाचन आयोग का मकसद मतदाताओं को घोषणापत्र में चुनावी वादों की वित्तीय व्यवहार्यता के बारे में सूचित करने के साथ ही यह भी अवगत कराना है कि क्या वे राज्य या केंद्र सरकार की वित्तीय क्षमता के भीतर हैं या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार (3 अगस्त) को देशभर में चुनाव से पहले मुफ्त योजनाओं के वादे के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की थी. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान 'रेवड़ी कल्चर' पर सख्ती दिखाते हुए चुनाव से पहले इसका हल निकालने के लिए केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और याचिका के सभी पक्षों से एक संस्था के गठन पर सुझाव मांगा है.
दरअसल, याचिकाकर्ता ने कोर्ट के समक्ष कहा कि ये फ्री योजनाएं देश, राज्य और जनता के बोझ को बढ़ाती हैं. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने सवाल किया कि आखिर इन मुफ्त की योजनाओं का असर किसकी जेब पर पड़ता है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इन 'रेवड़ी कल्चर' से निपटने के लिए एक निकाय बनाने की आवश्यकता है. कोर्ट ने इसमें फ्री-बी (freebies) पाने वाले और उसका विरोध करने वालों को इसमें शामिल करने को कहा.
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