Ashok Gehlot Defeat In Rajasthan: राजस्थान में बीजेपी के हाथों मिली हार तीन बार के मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत की पांच दशकों की राजनीति का सबसे बड़ा झटका है. हार के बाद गहलोत ने खुद को जनसेवक बताते हुए कहा कि वे लोगों की सेवा करते रहेंगे, लेकिन सवाल है कि अशोक गहलोत की भूमिका अब क्या होगी?


माना जा रहा है अशोक गहलोत अब कांग्रेस के केंद्रीय संगठन में आ सकते हैं और आगामी लोकसभा चुनाव भी लड़ सकते हैं, लेकिन राजस्थान की राजनीति में उनकी वापसी बेहद मुश्किल नजर आती है. 


अशोक गहलोत के सिर फूटेगा हार का ठीकरा!


इसकी सीधी वजह यही है कि विधानसभा चुनाव में हार का ठीकरा गहलोत के सिर ही फूटेगा. विधायकों, मंत्रियों के खिलाफ नाराजगी को खत्म करने के लिए कांग्रेस नेतृत्व ने बड़ी संख्या में विधायकों की टिकट काटने का फैसला किया था, लेकिन गहलोत ने ऐसा नहीं होने दिया. गहलोत सरकार के डेढ़ दर्जन मंत्री चुनाव हार गए. पुराने विधायकों में से ज्यादातर हार गए, जबकि कांग्रेस की टिकट पर ही नए चेहरों ने दमदार प्रदर्शन किया. 


बीते साल सितंबर में सीएम बदलने की कवायद के बीच कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ उनके समर्थकों की ओर से की गई बगावत के बाद से माना जाता है कि गहलोत और गांधी परिवार के बीच दूरी बन चुकी है.


राजस्थान पर गहलोत की पकड़ क्यों होगी ढीली?


पहले भी सीएम रहते दो बार विधानसभा चुनाव हारने के बाद गहलोत केंद्र की राजनीति में शिफ्ट हो चुके हैं. हालांकि इस दौरान अपने कद की वजह से उन्होंने प्रदेश की सियासत पर भी अपनी पकड़ बनाए रखी, लेकिन इस बार परिस्थितियां बदली हुई है. प्रदेश के कांग्रेस नेतृत्व में अब सचिन पायलट और हरीश चौधरी जैसे नेता तेजी से आगे बढ़ेंगे, जिन्हें गहलोत विरोधी माना जाता है. राहुल गांधी भी अशोक गहलोत को अब राजस्थान में हावी नहीं होने देंगे. एक अहम बात यह भी है कि अगले विधानसभा चुनाव तक गहलोत की उम्र 77 साल हो जाएगी. इसीलिए प्रदेश की राजनीति में उनकी वापसी लगभग असम्भव है. 


2024 का लोकसभा चुनाव गहलोत के लिए नहीं होगा आसान! 


संभव है कि पार्टी अशोक गहलोत से आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने को कहे. ऐसे में वो जोधपुर से चुनाव लड़ सकते हैं, जहां से वो पांच बार सांसद रह चुके हैं. जोधपुर में गहलोत का सामना केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से होगा, जिन्होंने पिछली बार उनके बेटे वैभव गहलोत को हराया था. जाहिर है लोकसभा चुनाव में भी गहलोत की कड़ी परीक्षा होगी. ये देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे अशोक गहलोत को केंद्रीय संगठन में क्या जिम्मेदारी देते हैं! 


सवा साल पहले अशोक गहलोत का कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय था, लेकिन उससे पहले राजस्थान में नया सीएम तय करने के लिए जयपुर में बुलाई गई विधायक दल की बैठक उनके समर्थक विधायकों की बगावत के कारण नहीं हो पाई. 


राजस्थान में सम्मान ही बचा पाए गहलोत


कांग्रेस अध्यक्ष की रेस से बाहर हो अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने रहे. चुनाव में उन्हें उम्मीद थी कि ओल्ड पेंशन स्कीम, चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना और सस्ते एलपीजी सिलेंडर जैसे कामों के कारण लोग राजस्थान में सरकार बदलने की परंपरा तोड़ते हुए उन्हें फिर मौका देंगे, लेकिन जादूगर के नाम से मशहूर अशोक गहलोत का जादू नहीं चला. गनीमत यही रही कि मजबूत प्रचार अभियान के कारण हार के बावजूद 69 सीटों के कारण गहलोत का "सम्मान" बच गया.


जहां तक राजस्थान को लेकर कांग्रेस की आगे की रणनीति का सवाल है तो गहलोत के बाद सबसे बड़े नेता के तौर पर सचिन पायलट स्थापित हो चुके हैं. केंद्रीय मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री रह चुके पायलट की नजर अब नेता विपक्ष की कुर्सी पर होगी. इसके अलावा बाड़मेर से आने वाले जाट नेता हरीश चौधरी और राष्ट्रीय महासचिव भंवर जितेंद्र सिंह को भी अगले चुनाव के मद्देनजर राजस्थान में कांग्रेस का भविष्य माना जाता है.


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