नई दिल्ली: पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की करारी शिकस्त के बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों की कर्जमाफी पर फैसला ले सकते हैं. यह कदम 2019 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी की सरकार का मास्टर स्ट्रोक साबित हो सकता है. बीजेपी को हिंदी पट्टी के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता गंवानी पड़ी है. जहां ज्यादातर लोग कृषि पर निर्भर हैं. कांग्रेस ने इन तीनों ही राज्यों में कृषि लोन माफ करने का एलान किया था और बीजेपी पर किसान विरोधी होने का आरोप लगाया था. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी की हार की एक वजह किसानों में नाराजगी है.
सूत्रों के मुताबिक, देश के 26.3 करोड़ (263 मिलियन) किसानों और उन पर आश्रित लोगों की मदद के लिए केंद्र की मोदी सरकार कर्जमाफी की योजना जल्द ही तैयार करेगी. न्यूज़ एजेंसी रॉयर्टस के मुताबिक, सरकारी सूत्रों ने बताया कि करीब 4 लाख करोड़ रुपये (56 बिलियन डॉलर) तक के कर्ज की माफी हो सकती है. पूर्व की यूपीए सरकार ने साल 2008 में करीब 72 हजार करोड़ रुपये तक की कर्जमाफी की थी. इसका फायदा मिला और उसे 2009 के चुनाव लगातार दूसरी बार सत्ता मिली थी.
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उत्तर प्रदेश के एक किसान नेता धर्मेंद्र मलिक ने बताया कि हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में हार की बड़ी वजह किसानों में नाराजगी है. उन्होंने कहा, ''चुनाव नतीजों ने साफतौर पर मोदी सरकार के खिलाफ किसानों के गुस्से को दर्शाया है. किसान जानते हैं कि राज्य सरकार घाटे की वजह से किसानों का कर्ज माफ नहीं कर सकती है, ऐसे में मोदी सरकार ही इस कदम की ओर आगे बढ़ सकती है.''
ध्यान रहे कि हालिया विधानसभा चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने छोटे किसानों की कर्जमाफी का एलान किया है. उत्ततर प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब समेत अन्य राज्यों ने कर्जमाफ किये हैं. देशभर में किसान कर्जमाफी की मांग उठती रही है. इसको लेकर दिल्ली, मुंबई, मंदसौर, जयपुर में किसान कई दफे आंदोलन कर चुके है.
कर्जमाफी को लेकर अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इससे सरकार का राजकोषीय घाटा और बढ़ सकता है. कर्जमाफी से बैंकों के लिए भी जोखिम गहरा सकता है. सूत्रों और विश्लेषकों का कहना है कि अगर सरकार के पास सीमित राजकोषीय गुंजाइश होगी तब यह कुछ ही क्षेत्रों में कर्जमाफी कर पाएगी.