Indelible Ink: किसी भी चुनाव में वोटिंग के बाद अंगुली पर एक स्याही लगा दी जाती है, जिससे वोट कर चुका शख्स दोबारा वोट न कर पाए. एक पहचान के तौर पर इस अमिट स्याही को लगाया जाता है. कभी आपने सोचा है कि ये स्याही आती कहां से है? चुनाव आयोग इसी स्याही का इस्तेमाल क्यों करता है? इसे बनाता कौन है? निर्वाचन आयोग इस स्याही के लिए कितने रुपये खर्च करता है?


मन में उठते इन्ही सवालों के जवाब आज आपको एबीपी न्यूज की इस खास रिपोर्ट में मिल जाएंगे. इस अमिट स्याही की एक-एक जानकारी यहां मिल जाएगी. दरअसल एबीपी न्यूज की टीम ने कर्नाटक की उसी फैक्ट्री का दौरा किया, जहां पर इस अमिट स्याही को बनाया जाता है. इसी फैक्ट्री में वोटिंग मशीन को सील करने वाली वैक्स भी तैयार की जाती है.  


क्या है अमिट स्याही की कहानी


मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड कंपनी... कर्नाटक सरकार की पीएसयू है. देश में एक मात्र कंपनी है जिसके पास इस स्याही को बनाने का अधिकार है. साल 1962 के बाद से लेकर अब तक हुए देश के सभी चुनावों में इसी फैक्ट्री से तैयार हुई स्याही का इस्तेमाल किया गया है. इसी स्याही का इस्तेमाल गांव के सरपंच से लेकर लोकसभा के चुनाव तक किया जाता है.


केमिकल कंपोजिशन रखा जाता है गुप्त


इस स्याही को तैयार करने में कौन सा केमिकल या नेचुरल कलर इस्तेमाल होता है इसे पूरी तरह से गुप्त रखा जाता है या ये कहें कि खुद चुनाव आयोग केमिकल कंपोजिशन तैयार कर फैक्ट्री को देता है. कंपनी के एमडी कुमारस्वामी ने बताया कि इसमें इस्तेमाल होने वाले केमिकल और कलर कंपोजिशन चुनाव आयोग ने तय किए हैं जो 1962 में दिए गए फॉर्मूले के आधार पर होता है. इसे जैसे ही उंगलियों पर नाखून और चमड़े पर लगाया जाता है उसके 30 सेकंड्स में ही इसका रंग गहरा होने लगता है. कंपनी का दावा है कि एक बार उंगलियों पर लगने के बाद आप चाहे जितनी कोशिश कर लें ये हट नहीं सकता.  


फैक्ट्री का इतिहास


कंपनी की शुरुआत मैसूर के बडियार महाराजा कृष्णदेवराज ने साल 1937 में की थी. कंपनी के एमडी कुमारस्वामी ने बताया कि कर्नाटक चुनाव के लिए कंपनी ने 10 सीसी की 1 लाख 30 हजार वायल स्याही तैयार करके चुनाव आयोग को सौप दिया है. ईवीएम मशीन को सील करने के लिए इस्तेमाल में आने वाले 90,000 सील वैक्स भी चुनाव आयोग को दिए जा चुके हैं. एक वायल स्याही की कीमत फिलहाल 164 रुपये निर्धारित है. हालांकि स्याही की कीमत का निर्धारण उसमें प्रयुक्त होने वाले रॉ मैटीरियल की कीमत पर निर्भर करता है.


लोकसभा चुनाव की तैयारियां अभी से शुरू


फैक्ट्री के एमडी कुमारस्वामी ने ये भी बताया कि अभी से लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी भी शुरू हो गई हैं. 2024 के आम चुनाव में 30 लाख वायल अमिट स्याही का ऑर्डर मिल चुका है. इसकी आयु अधिकतम 6 महीने ही होती है, इसलिए चुनाव की तिथि के 1 से 3 महीने के अंदर ही इसकी सप्लाई की जाती है. इसे समय से तैयार किया जा सके, इसलिए चुनाव आयोग से कम से कम 6 महीने पहले इसका आर्डर ले लिया जाता है.


दुनियाभर के 30 देशों में देते हैं स्याही


एमपीवीएल के एमडी कुमारस्वामी ने बताया कि मलेशिया, कंबोडिया, दक्षिण अफ्रीका, मालदीव, तुर्की, अफगानिस्तान, नाइजीरिया, पापुआ न्यू गिनी, बुर्कीना फासो, बुरुंडी और टोगो समेत एशिया और अफ्रीका के करीब 30 देश हैं, जहां के आम चुनाव में मैसूर की ये स्याही उपलब्ध करवाई जा चुकी है. एक आंकड़े के मुताबिक, पिछले लोकसभा चुनाव में करीब 384 करोड़ लागत की स्याही का उपयोग हुआ था. जबकि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में 3,000 लीटर स्याही का इस्तेमाल हुआ था.


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