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Northeast India: जिन 3 राज्यों में चुनाव हुए वहां 80% से ज्यादा प्रत्याशी ईसाई, जानिए सिर्फ 100 साल में कैसे आया इतना बड़ा जनसांख्यिकी बदलाव

पूर्वोत्‍तर के 3 राज्यों त्रिपुरा-मेघालय और नगालैंड में विधानसभा चुनाव हुए हैं. ये ऐसे राज्य हैं, जहां सियासी दलों के अधिकतर उम्मीदवार ईसाई ही चुने गए. इस डेमोग्राफिक चेंज को समझने की कोशिश करते हैं.

Northeast India Demography: पूर्वोत्तर भारत के 3 राज्‍यों त्रिपुरा (Tripura), नगालैंड (Nagaland) और मेघालय (Meghalaya) में हुए विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2023) के नतीजे सामने आ रहे हैं. मेघालय को छोड़कर अन्‍य दोनों राज्‍यों के चुनावी रुझान में बीजेपी को बहुमत मिल चुका है. पूर्वोत्‍तर के राज्‍यों में ईसाई बहुल मतदाताओं की संख्‍या ज्‍यादा है. इसलिए, इधर चुनावों में हिंदुत्‍व का शोर नहीं गूंजा. बीजेपी ने दो-तीन प्रत्‍याशियों को छोड़कर अपने सभी चेहरे ईसाई मजहब से ही चुने. ऐसे में लोगों की नजर इस पर भी गई है कि पूर्वोत्तर की जनसांख्यिकी में ऐसा बदलाव कैसे आया कि ईसाइयों की तादाद ही सबसे ज्‍यादा हो चुकी है.

ईसाइयों की तादाद में बढ़ोतरी का हिसाब

सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज (सीपीएस) के ताजा आंकड़ों में पूर्वोत्तर भारत में ईसाइयों की बढ़ती जनसंख्‍या का विश्लेषण किया गया है. सीपीएस ने 2011 की रिलीजन डेटा सेंसस के आधार पर जो नोट पब्लिश किया है, उसके अनुसार बीती एक सदी में पूर्वोत्तर की जनसांख्यिकी में भारी बदलाव आया है. पूर्वोत्तर का इलाका आज भारत में ईसाई सघनता का एक प्रमुख क्षेत्र है.

2011 में गिने गए 2.78 करोड़ ईसाइयों में से 78 लाख पूर्वोत्तर (असम सहित) में हैं. दक्षिणी तमिलनाडु और केरल से तटीय कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र तक फैले तटीय क्षेत्र के बाद भारत में ईसाइयों की सघनता पूर्वोत्‍तर में ही है.

हालांकि, ऐसा नहीं है कि पूर्वोत्‍तर में ईसाइयों की इतनी सघन बसावट बहुत पहले से हो, अन्य क्षेत्रों के विपरीत यहां पर ईसाई मजहब का प्रसार पूरी तरह से बीसवीं शताब्दी से हुआ. पूर्वोत्तर में अधिकांश ईसाई बसावट 1931-51 के दौरान हुई, और 1941-51 के दौरान इसमें खासा वृद्धि हुई. बताया जाता है कि उसके बाद 1951 से इसका विस्‍तार बेरोकटोक जारी है. मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड की जनजातीय आबादी अब लगभग पूरी तरह से ईसाई बन गई है.

मेघालय

ईसाईयत के विस्तार का गवाह बनने वाला पूर्वोत्तर का सबसे पहला हिस्सा मेघालय था. ऐसा काफी हद तक इसलिए था क्योंकि ब्रिटिश शासकों ने स्कूली शिक्षा की जिम्मेदारी और बजट ईसाई मिशनरियों को सौंप दिया था.

भारत में ईसाई मजहब के अनुयायी बहुत पहले से हैं, लेकिन मेघालय में इनकी बसावट आजादी के बाद नजर में आई है. 1950 के बाद से मेघालय की जनसंख्या में ईसाइयों की हिस्सेदारी दशक-दर-दशक तेजी से बढ़ती रही है और 2011 में यह लगभग 75 प्रतिशत तक पहुंच गई. ऐसा लगता है कि मेघालय की कुछ जनजातियां अभी भी धर्मांतरण का विरोध कर रही हैं.

मिजोरम

मेघालय के बाद ईसाइयों की बसावट वाला अगला राज्य मिजोरम था. जहां 1911-1931 के दौरान कुल जनसंख्या में ईसाइयों की संख्या और हिस्सेदारी में अचानक उछाल आया. और, 1931 से 1951 तक अगले दो दशकों में, मिजोरम की लगभग पूरी आदिवासी आबादी ईसाई मजहब में परिवर्तित हो गई. 1951 में मिजोरम की जनसंख्या में ईसाइयों की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत से ऊपर पहुंच गई; जबकि 1911 में यह तीन प्रतिशत से कम थी.

मणिपुर

स्वतंत्रता के बाद के दशकों में इस राज्य का मुख्य रूप से ईसाईकरण किया गया. मणिपुर में अब ईसाइयों की हिस्सेदारी 41 प्रतिशत है. 1931 में यह लगभग 2 प्रतिशत और 1951 में 12 प्रतिशत थी. कुल जनसंख्या में ईसाइयों का हिस्सा पड़ोसी राज्यों की तुलना में कम लगता है, लेकिन यह मुख्य रूप से मणिपुर घाटी की बड़ी गैर-आदिवासी आबादी के कारण है. मणिपुर के पहाड़ी जिले, जिनमें मुख्य रूप से आदिवासी आबादी है, वो लोग अब लगभग पूरी तरह से ईसाई हैं.

नगालैंड

नगालैंड का ईसाईकरण ज्यादातर स्वतंत्रता के बाद और उसके बाद के दशकों में हुआ. 1911 में राज्य की जनसंख्या में ईसाइयों की हिस्सेदारी लगभग दो प्रतिशत थी, जो 1931 में बढ़कर 13 प्रतिशत और 1951 में 46 प्रतिशत हो गई. 1991 तक ईसाइयों की हिस्सेदारी 87 प्रतिशत से ऊपर पहुंच गई. उस समय तक, नगालैंड की जनजातीय आबादी लगभग पूरी तरह से ईसाई बन चुकी थी. उस वर्ष गिने गए 10.61 लाख अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या में से 10.44 लाख ईसाई थे, और वे अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या के 98 प्रतिशत से अधिक थे.

अरुणाचल प्रदेश

अरुणाचल प्रदेश 1971 तक चर्च की पहुंच से बाहर रहा, जब क्षेत्र को सिविल एडमिनिस्‍ट्रेशन के दायरे में लाया गया, तब से यहां ईसाइयों की हिस्सेदारी दशक-दर-दशक तेजी से बढ़ रही है और अब 30 प्रतिशत से ऊपर पहुंच गई है. अरुणाचल प्रदेश की कई जनजातियों ने अब बड़े पैमाने पर ईसाई बहुमत हासिल कर लिया है.

असम

असम, मेघालय की तरह, 1901 में पहले से ही एक महत्वपूर्ण ईसाई उपस्थिति हासिल कर चुका था. उस समय राज्य में लगभग 22,000 ईसाई गिने जाते थे. वे ईसाई ज्यादातर ऊपरी असम के चाय बागानों में प्रवासी जनजातियों से थे. उसके बाद असम में ईसाइयों की संख्या 85 गुना तक बढ़ गई, और उनकी पहुंच कई स्वदेशी जनजातियों तक हो गई. हालांकि, आबादी में उनका हिस्सा आसपास के पहाड़ी राज्यों की तुलना में आज भी बहुत कम है. यहां 1901 में ईसाइयों की हिस्सेदारी 0.4 प्रतिशत थी. और, 2011 में उनकी हिस्सेदारी 3.75 प्रतिशत तक पहुंच गई.

हालांकि, असम में कार्बी आंगलोंग और दीमा हसाओ के आदिवासी बहुल जिलों और कुछ बोडो जिलों में उनका हिस्सा बहुत अधिक है.

त्रिपुरा

1951 में त्रिपुरा में केवल लगभग 5,000 ईसाई थे. आज यह संख्या 1.6 लाख है. अधिकांश वृद्धि 1981 के बाद और विशेष रूप से पिछले दो दशकों के दौरान हुई है.

सिक्किम

पूर्वोत्तर के पड़ोस में स्थित सिक्किम में भी 1971 से ईसाई धर्म का तेजी से विस्तार हुआ है. वहां की आबादी में ईसाइयों की हिस्सेदारी 1971 में 0.8 प्रतिशत से कम से लगभग 10 प्रतिशत तक पहुंच गई है. इसी तरह यहां के पड़ोसी जिले पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में भी ईसाइयों की हिस्सेदारी में तेजी से वृद्धि हुई है.

यह भी पढ़ें: Pradyot Kishore Manikya Debbarma: राजसी घराने का वो शख्स जो है त्रिपुरा चुनाव में 'किंगमेकर', प्रद्योत देबबर्मा बनवाएंगे BJP की सरकार? जानिए कैसे

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