Electoral Bonds: सरकार ने एसबीआई बैंक को कमीशन के तौर पर दिए 4.35 करोड़ रुपये, RTI में दिया गया जवाब
केंद्र सरकार को एसबीआई बैंक को इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री के लिए 4.35 करोड़ रुपये देने हैं. जिनमें से 13 फेज के लिए 4.1 करोड़ रुपयों का भुगतान किया जा चुका है. फिलहाल 25 लाख अभी बचा हुआ है. एक आरटीआई के जवाब में एसबीआई बैंक ने ये जानकारी दी है.
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सरकार ने चुनावी बॉन्ड की बिक्री के लिए भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को कमीशन के रूप में 4.10 करोड़ रुपये दिए हैं. यह इन बांडों की छपाई पर खर्च किए गए 1.86 करोड़ रुपये से अतिरिक्त है. लोकेश गुप्ता द्वारा फाइल की गई आरटीआई एप्लीकेशन के जवाब में एसबीआई ने कहा कि, "सरकार द्वारा बैंक को 15 फेज की देय कुल बिक्री, बंधन बिक्री के 4.35 करोड़ रुपये दिये जाने हैं. जिनमें से 4.10 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है . वहीं 14वें और 15वें फेज के लिए कमीशन का भुगतान अभी नहीं किया गया है."
चुनावी बॉन्ड के जरिए 6,535 करोड़ रुपये का डोनेशन किया गया
बैंक ने ये भी कहा कि 2018 में योजना के शुरू होने के बाद से अब तक कुल 6,64,250 चुनावी बांड प्रिंटेड किए गए हैं. वहीं चुनावी बॉन्ड के जरिए 6,535 करोड़ रुपये का डोनेशन किया गया है. एसबीआई के अनुसार, बांडों की छपाई के लिए सरकार द्वारा कोई कमीशन नहीं दिया गया है, लेकिन जीएसटी में शामिल 1,86,05,720 रुपये की छपाई शुल्क का भुगतान अब तक किया गया है. SBI ने 1 जनवरी से 10 जनवरी, 2021 तक बिक्री के 15 वें चरण में 42.10 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे थे. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अक्टूबर में 282 करोड़ रुपये के बांड बेचे गए थे.
कॉर्पोरेट घरानों और उद्योगपतियों ने दिया डोनेशन
द इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक मुख्य रूप से कॉर्पोरेट घरानों और उद्योगपतियों ने डोनर्स के तौर पर साल 2018 में 1,056.73 करोड़ रुपये, साल 2019 में 5,071.99 करोड़ रुपये और 2020 में 363.96 करोड़ रुपये दिए.
जानें क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?
इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक माध्यम है. यह ब्याज मुक्त होता है. इसे भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के द्वारा जारी किया जाता है जिसे कोई भी संस्था या भारतीय नागरिक खरीद सकते हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड को जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीने में खरीदा जा सकता है. बॉन्ड खरीदे जाने के 15 दिन तक मान्य रहता है. इसमें राजनीतिक दल को यह बताने की जरूरत नहीं है कि उन्हें किस व्यक्ति या संस्था ने चंदा दिया है.इलेक्टोरल बॉन्ड लाने के पीछे सरकार ने ये तर्क दिया था कि इसके माध्यम से राजनीतिक दलों को मिलने वाले पैसे में पारदर्शिता आएगी. इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों की पहचान बैंक के पास रहती है. हालांकि, चंदा देने वाले व्यक्ति की पहचान सार्वजनिक नहीं की जाती है और इसी बिंदू का सबसे अधिक विरोध किया जा रहा है.
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