सुप्रीम कोर्ट ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में गाडलिंग, जगताप की जमानत याचिका पर सुनवाई टाली
सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण की उस याचिका पर भी सुनवाई स्थगित कर दी जिसमें उसने कार्यकर्ता महेश राउत को दी गई जमानत को चुनौती दी है.

सुप्रीम कोर्ट ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में गिरफ्तार अधिवक्ता सुरेंद्र गाडलिंग और कार्यकर्ता ज्योति जगताप की जमानत याचिका पर सुनवाई गुरुवार (27 मार्च, 2025) को दो सप्ताह के लिए टाल दी.
जस्टिस एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की उस याचिका पर भी सुनवाई स्थगित कर दी जिसमें उसने कार्यकर्ता महेश राउत को दी गई जमानत को चुनौती दी है.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने राउत को जमानत दी थी, लेकिन एनआईए ने इसे चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध किया था जिसके बाद आदेश पर रोक लगा दी गई.
गाडलिंग पर माओवादियों को सहायता प्रदान करने और मामले में फरार लोगों सहित विभिन्न सह-आरोपियों के साथ कथित तौर पर साजिश रचने का आरोप है.
उन पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम और भादंसं के विभिन्न प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है. अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि गाडलिंग ने भूमिगत माओवादियों को सरकारी गतिविधियों और कुछ क्षेत्रों के मानचित्रों के बारे में गुप्त जानकारी दी थी.
गाडलिंग ने कथित तौर पर माओवादियों से सुरजागढ़ खदानों के संचालन का विरोध करने के लिए कहा और कई स्थानीय लोगों को आंदोलन में शामिल होने के लिए उकसाया.
उन पर 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से जुड़े एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में भी आरोप है. पुलिस ने दावा किया कि भाषणों के चलते अगले दिन पुणे जिले के कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क उठी.
उच्च न्यायालय ने कहा था कि जगताप, कबीर कला मंच (केकेएम) समूह की एक सक्रिय सदस्य थी जिसने 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में अपने मंचीय नाटक के दौरान न केवल आक्रामक, बल्कि अत्यधिक भड़काऊ नारे लगाए.
अदालत ने कहा था, 'हमारा मानना है कि अपीलकर्ता (जगताप) के खिलाफ एनआईए के आरोपों या अभियोग को प्रथम दृष्टया सत्य मानने के लिए उचित आधार हैं. उसने आतंकी कृत्य की साजिश रची, प्रयास किया, उसे बढ़ावा दिया.'
एनआईए के अनुसार, केकेएम, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का एक मुखौटा संगठन है. उच्च न्यायालय ने कार्यकर्ता-सह-गायिका द्वारा दायर उस अपील को खारिज कर दिया था, जिसमें फरवरी 2022 में एक विशेष अदालत द्वारा उसे जमानत दिए जाने से इनकार करने के आदेश को चुनौती दी गई थी.
एल्गार परिषद सम्मेलन 2017 में शनिवारवाड़ा में आयोजित किया गया था, जो पुणे शहर के मध्य में स्थित 18वीं शताब्दी का किला है.
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