नई दिल्लीः मोरेटोरियम अवधि के दौरान टाली गई ईएमआई पर ब्याज न लेने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई अगस्त के पहले सप्ताह के लिए टाल दी है. कोर्ट ने कहा है कि इस बीच सरकार और रिज़र्व बैंक स्थिति की समीक्षा करें. देखें कि लोगों को किस तरह राहत दी जा सकती है.
आज इस मसले पर हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि सरकार इसे बैंक और ग्राहकों के बीच का मसला बता कर पल्ला नहीं झाड़ सकती. कोर्ट ने यह भी कहा कि बैंक हज़ारों करोड़ रुपए एनपीए में डाल देते हैं. लेकिन कुछ महीनों के लिए स्थगित ईएमआई पर ब्याज लेना चाहते हैं.
इस पर बैंकों की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा, “बैंक इस अवधि के दौरान भी अपने ग्राहकों की जमा रकम पर चक्रवृद्धि ब्याज दे रहे हैं. अगर उन्होंने लोन पर ब्याज न लिया तो इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा.“ बैंकों की तरफ से ही पेश मुकुल रोहतगी ने कहा, “ऐसा कभी भी नहीं कहा गया था कि ईएमआई का भुगतान टालने की जो सुविधा दी जा रही है, वह फ्री है. लोगों को यह पता था कि इस रकम पर ब्याज लिया जाएगा. इसलिए, 90 फीसदी लोगों ने यह सुविधा नहीं ली. ब्याज न लेने से बैंकों का बहुत बड़ा नुकसान होगा."
केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने बड़े लोन और छोटे लोन के लिए अलग-अलग व्यवस्था बनाए जाने का सुझाव दिया. इस पर कोर्ट आश्वस्त नज़र नहीं आया. जजों ने कहा कि सरकार की भूमिका बस मोरेटोरियम के ऐलान तक सीमित नहीं रहनी चाहिए या तो सरकार इस अवधि के लिए बकाया रकम के ब्याज के मसले पर बैंकों की सहायता करे या बैंक ब्याज के बिना काम चलाएं.
बैंकों के वकील साल्वे ने सुनवाई टालने का सुझाव देते हुए कहा, “अभी कई सेक्टर का हाल बुरा है. हो सकता है, उन्हें मदद की ज़रूरत पड़े. कल को बैंकों से उनकी सहायता के लिए कहा जा सकता है. बैंक अभी खुद ठीक से नहीं जानते हैं कि मोरेटोरियम का उनकी वित्तीय स्थिति पर क्या असर पड़ेगा. बेहतर हो कि सुनवाई 3 महीने बाद की जाए. तब पूरी स्थिति का आकलन किया जा सकेगा.“
कोर्ट ने उस सुझाव से सहमति जताते हुए सुनवाई टाल दी. कोर्ट ने सरकार और रिज़र्व बैंक से स्थिति की समीक्षा कर लोगों को राहत देने पर विचार करने के लिए कहा है.
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