नई दिल्लीः मोरेटोरियम अवधि के दौरान कर्ज़ पर ब्याज माफी की मांग पर सुनवाई के दौरान आज सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्टता दी. कोर्ट ने साफ किया कि सुनवाई इस मसले पर नहीं हो रही है कि 6 महीने के लिए स्थगित की गई ईएमआई में ब्याज का हिस्सा लिया ही न जाए. सुनवाई का विषय यह है कि इस दौरान स्थगित ईएमआई पर भी बैंक ब्याज न लगा दें.


सुनवाई कर रही 3 जजों की बेंच के अध्यक्ष जस्टिस अशोक भूषण ने कहा, "हम यह जानना चाहते हैं कि कहीं बैंक बकाया ब्याज की राशि पर भी तो ब्याज वसूलने की मंशा नहीं रखते." कोर्ट ने सरकार और आरबीआई को इस मसले पर आपस में चर्चा करने की इजाज़त दी. अगले बुधवार यानी 17 जून को मसले पर फिर सुनवाई होगी.


सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका में कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. उन्हें 6 महीने तक बैंक से लिए गए कर्ज की किश्त न देने की राहत दी गई है. लेकिन बैंक इस अवधि के लिए ब्याज वसूल रहे हैं. यह गलत है. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर रिजर्व बैंक से जवाब मांगा था.


रिजर्व बैंक ने हलफनामा दाखिल कर कहा है कि लोगों को 6 महीने का ईएमआई अभी न देकर बाद में देने की छूट दी गई है. लेकिन अगर इस अवधि के लिए ब्याज भी नहीं लिया गया तो बैंकों की वित्तीय सेहत पर इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा. सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को को ही लगभग दो लाख करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ेगा.


कोर्ट में दाखिल हलफनामे में आरबीआई ने यह भी कहा है कि बैंकों की खस्ता स्थिति का असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. बैंकों के लिए अपने पास पैसा जमा कराने वाले ग्राहकों को ब्याज देना भी मुश्किल हो जाएगा. इसलिए, बैंकों को अपने कर्ज़दारों से इस अवधि का ब्याज न लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.


रिज़र्व बैंक के हलफनामे पर टिप्पणी करते हुए आज कोर्ट ने कहा कि उसकी सुनवाई ईएमआई से ब्याज की राशि हटा देने पर नहीं है. लेकिन इस बात पर स्पष्टता होनी चाहिए कि अभी नहीं चुकाए गए ईएमआई पर 6 महीने का ब्याज तो नहीं जोड़ा जाएगा. कोर्ट ने वित्त मंत्रालय और रिज़र्व बैंक को आपस मे विचार कर अगले हफ्ते स्थिति स्पष्ट करने को कहा है.


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