नई दिल्ली: कोरोना महामारी से देश की अर्थव्यवस्था को कितनी चोट पहुंची इसका सबूत अलग अलग सरकारी और गैर सरकारी आंकड़ों में सामने आ चुका है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ इस वित्तीय वर्ष (2020 - 21) की दूसरी तिमाही में आर्थिक विकास की दर में क़रीब 24 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज़ की गई थी. जाहिर है गिरती अर्थव्यवस्था का असर देश में रोज़गार की स्थिति पर भी पड़ा था.
सांख्यिकी और क्रियान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक:
- लॉक डाउन के पहले तीन महीनों ( अप्रैल - जून 2020 ) के दौरान देश में शहरी बेरोज़गारी दर 20.9 फ़ीसदी तक पहुंच गई थी.
- जबकि ये दर उसके पहले तीन महीनों ( जनवरी - मार्च 2020 ) के दौरान 9.1 फ़ीसदी और अप्रैल - जून 2019 के दौरान 8.9 फ़ीसदी थी
- अप्रैल - जून 2020 के दौरान 15 - 29 साल के बीच के लोगों में तो बेरोज़गारी दर 34 फ़ीसदी तक पहुंच गई.
सरकार भी मानती है कि लॉक डाउन की शुरुआत में रोज़गार की हालत ठीक नहीं थी. लॉकडाउन के चलते जिन क्षेत्रों में सबसे ज़्यादा रोज़गार का संकट पैदा हुआ उनमें आतिथ्य सत्कार ( Hospitality), एयरलाइन्स, पर्यटन और अन्य सेवा क्षेत्र शामिल हैं. वहीं इसी हफ़्ते लोकसभा में सरकार ने एक और आंकड़ा पेश किया जो सरकार के लिए अच्छी ख़बर नहीं है. श्रम मंत्रालय के मुताबिक, पिछले साल अप्रैल से दिसंबर के बीच 70 लाख से भी ज़्यादा पीएफ खाते बंद हुए जबकि करीब डेढ़ करोड़ से ज़्यादा खातों में से कुछ पैसों की निकासी हुई.
हालांकि, इस साल की शुरुआत अच्छी ख़बर लेकर आई है. अर्थव्यवस्था का मूल्यांकन करने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी (CMIE) ने इस साल जनवरी और फरवरी के दौरान बेरोज़गारी के जो आंकड़े जारी किए हैं.
क्या कहते हैं आंकड़े
- जनवरी में बेरोज़गारी दर घटकर 6.5 फ़ीसदी रह गई.
- वहीं दिसम्बर 2020 में बेरोज़गारी दर 9.1 दर्ज़ की गई थी.
सरकार के लिए एक और राहत की बात ये है कि पिछले साल अप्रैल से दिसम्बर के बीच क़रीब 53 लाख नए पीएफ खाते खोले गए. आम तौर पर नए पीएफ खातों के खुलने का सम्बन्ध संगठित क्षेत्र में नए रोज़गार सृजन से होता है.